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मुश्किल में श्रीलंका के राष्ट्रपति और पीएम, जानिए क्या है मामला

कोलंबो। श्रीलंका के विपक्षी दल (Sri Lankan opposition party) बुधवार को संसद में एसएलपीपी गठबंधन सरकार (SLPP Coalition Government) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तैयार हैं। वहीं, संकटग्रस्त सरकार (government in trouble) ने नए संविधान के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति के गठन की घोषणा की है। मुख्य विपक्षी दल समागी जना बालवेगया (एसजेबी) ने कहा कि वे सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे, जबकि मुख्य तमिल पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) संयुक्त रूप से राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे। एसजेबी के वरिष्ठ नेता अजित परेरा ने कहा कि हम कल (बुधवार) अविश्वास प्रस्ताव सौंपेंगे।

अविश्वास प्रस्ताव में हारने पर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना होगा
विश्लेषकों का कहना है कि अगर सरकार एसजेबी (government sjb) के अविश्वास प्रस्ताव में हार जाती है तो प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और कैबिनेट को इस्तीफा देना होगा। पूर्व प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा कि राष्ट्रपति के इस्तीफा देने के लिए टीएनए/यूएनपी प्रस्ताव के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। यह समस्या तभी हल हो सकती है जब राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री में से कोई भी इस्तीफा दे दे। निर्णय उनके ऊपर है।


संविधान के अनुच्छेद 38 के तहत एक राष्ट्रपति को तभी हटाया जा सकता है जब उन्होंने स्वेच्छा से या महाभियोग की लंबी प्रक्रिया के बाद इस्तीफा दे दिया हो। इन दिनों श्रीलंका में राजनीतिक बैठकों की झड़ी लग गई है क्योंकि महिंद्रा राजपक्षे ने अंतरिम अवधि के लिए मिली-जुली सरकार हेतु रास्ता बनाने के लिए इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है। शक्तिशाली बौद्ध पुजारियों ने अंतरिम सरकार के लिए रास्ता बनाने के लिए राजपक्षे के इस्तीफे की भी मांग की है।

सरकार ने मंगलवार को एक नए संविधान के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति के गठन की घोषणा की। अर्थव्यवस्था को संभालने में नाकामी के लिए सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध के बीच प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने एक जवाबदेह प्रशासन बनाने के लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव दिया था।

राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने बड़े भाई को बर्खास्त करने के लिए अनिच्छा दिखाते हुए पार्टियों से कहा कि अगर 225 सदस्यीय विधानसभा में 113 का बहुमत हासिल करने पर वह एक सर्वदलीय अंतरिम सरकार बना सकेंगे। बता दें कि किसी भी प्रस्ताव को बहस के लिए आदेश पत्र में शामिल होने से पहले सात दिनों के नोटिस की आवश्यकता होती है।

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