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मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों द्वारा किये गये नकद सहायता वादों या वितरण पर नोटिस जारी किया सुप्रीम कोर्ट ने

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों द्वारा (By Chief Ministers of Madhya Pradesh and Rajasthan) किये गये नकद सहायता वादों या वितरण पर (On Promises or Distribution of Cash Assistance Made) नोटिस जारी किया (Issued Notice) । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें चुनावी राज्यों मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों द्वारा किये गये नकद सहायता वादों या वितरण को रिश्वतखोरी और अनुचित प्रभाव घोषित करने की माँग की गई है।


भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. की पीठ चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका की जांच करने पर सहमति व्यक्त की और केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और संबंधित दोनों राज्यों से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। याचिकाकर्ता ने कहा, “सरकार ‘सार्वजनिक हित’ में जो कुछ भी कहती है, उसका ‘सार्वजनिक हित’ में होना जरूरी नहीं है। सरकार को नकदी वितरित करने की अनुमति देने से ज्यादा क्रूर कुछ नहीं हो सकता। चुनाव से छह महीने पहले ये चीजें शुरू हो जाती हैं।” याचिका में कहा गया है कि अवैध मुफ्त वितरण के कारण बोझ अंततः करदाताओं पर पड़ता है।

पीठ ने अपनी आपत्ति जताते हुए कहा, ‘चुनाव से पहले तमाम तरह के वादे किये जाते हैं और वह उन पर नियंत्रण नहीं रख सकती।’ हालाँकि, उसने आदेश दिया कि वह वर्तमान याचिका को अश्विनी कुमार उपाध्याय मामले में शीर्ष अदालत द्वारा निपटाए जा रहे “मुफ्त” के मौजूदा मुद्दे के साथ टैग किया जायेगा। पीठ ने मामले में मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के कार्यालय को प्रतिवादी के रूप में नामित करने के लिए याचिकाकर्ता से भी सवाल किया और उनकी जगह “संबंधित राज्य सरकारों” को रखने के लिए कहा।

याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्रीय बैंक को दोनों राज्यों को आगे ऋण देने से रोकने के लिए उन्होंने आरबीआई को भी प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल किया। याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से अतार्किक मुफ्त वस्तुओं का वादा या वितरण आईपीसी की धारा 171-बी और धारा 171-सी के तहत रिश्वतखोरी और अनुचित प्रभाव के समान है। याचिका में कहा गया है कि कथित तौर पर सार्वजनिक उद्देश्य के लिए समेकित निधि के उपयोग के लिए चुनाव से पहले मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं के लिए व्यापक दिशानिर्देश तैयार किए जाने चाहिए।

अधिवक्ता उपाध्याय द्वारा दायर लंबित मामले में शीर्ष अदालत ने पहले टिप्पणी की थी कि राजनीतिक दलों द्वारा घोषित मुफ्त सुविधाएं राज्यों को आसन्न दिवालियापन की ओर धकेल सकती हैं और मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु मामले में माना था कि तमिलनाडु विधानसभा चुनाव जीतने के बाद द्रमुक द्वारा मुफ्त रंगीन टीवी सेटों के वितरण को “भ्रष्ट” नहीं कहा जा सकता है।

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