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आचार्य शंकर: राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक

– वीरेन्द्र सिंह परिहार जगतगुरु श्री शंकराचार्य का जन्म उस समय हुआ था, जब बौद्ध धर्म पतनात्मक स्थिति की ओर जा रहा था, धर्म के नाम पर अनाचार फैल रहा था। विडम्बना यह कि अनेक वर्षों तक राजाश्रय प्राप्त होने के चलते बौद्धों को सत्ता का स्वाद लग चुका था। विदेशियों ने ढलती हुई बौद्ध […]

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महाकाल लोक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

– डॉ दिलीप अग्निहोत्री भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। सभ्यताओं के प्रादुर्भाव के साथ वह तिरोहित भी हुई। मध्यकाल में आक्रांताओं के आस्था के स्थलों पर बेहिसाब हमलों के बाबजूद यह शाश्वत संस्कृति गरिमा के साथ कायम है। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ […]

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गौरक्षपीठ, योगी और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

– दिलीप अग्निहोत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संन्यास और राष्ट्रसेवा का भाव गौरक्षपीठ से विरासत में मिला है। इस वैचारिक और ऐतिहासिक पीठ का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जागरण में उल्लेखनीय योगदान है। पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ इसका सतत संवर्धन कर रहे हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री पद के संवैधानिक दायित्व का […]

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भाजपा की रगों में दौड़ता है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री भाजपा अपने जन्मकाल से ही सुशासन और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित है। यही उसका वैचारिक आधार और संबल है। इसके बल पर ही उसने जनता का विश्वास प्राप्त किया है। केंद्र और उत्तर प्रदेश में लगातर दूसरी बार पूर्ण बहुमत से उसे सरकार बनाने का अवसर मिला है। वस्तुतः जनसंघ […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सम्मान

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री उत्तर प्रदेश जनकल्याण की करीब 45 योजनाओं के क्रियान्वयन में नंबर वन रहा है। प्रदेश के लिए गौरव की यह यात्रा आगे बढ़ी है। गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में प्रदर्शित उसकी झांकी को इसबार भी प्रथम पुरस्कार मिला है। उत्तर प्रदेश को लगातार दूसरी बार यह प्रतिष्ठा मिली। पिछली बार […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की छाया में गणतंत्र

– प्रमोद भार्गव भारतीय गणतंत्र स्वतंत्रता के 75वें अमृत महोत्सव में सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की छाया में आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। सनातन हिंदू संस्कृति ही अखंड भारत की संरचना का वह मूल गुण-धर्म है, जो इसे हजारों साल से एक रूप में पिरोये हुए है। इस एकरूपता को मजबूत करने की दृष्टि से भगवान […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से प्रेरणा

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री भारतीय चिंतन व संस्कृति में मानव कल्याण की कामना की गई। इसमें कभी संकुचित विचारों को महत्व नहीं दिया गया। समय-समय पर अनेक संन्यासियों व संतों ने इस संस्कृति के मूल भाव का सन्देश दिया। सभी ने समरसता के अनुरूप आचरण को अपरिहार्य बताया। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वाभिमान पर भी […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रभाव के जागरण का उत्सव

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री दशहरा का महत्व असत्य और अधर्म प्रवृत्ति पर विजय तक सीमित नहीं है। इसमें भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी समावेश है। प्रभु श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। विभीषण सहित सभी प्रमुख लोगों ने प्रभु राम से लंका का अपने साम्राज्य में सम्मलित करने का निवेदन किया […]