खरी-खरी

विकास नहीं विश्वास यात्रा निकालिए… खामोश रहकर नहीं जनता की आवाज बनकर दिखाइए

विधायक-पार्षद इसलिए चुने जाते हैं, ताकि लोग उनसे अपना दर्द साझा कर सकें… रोजमर्रा की परेशानियों का हल निकल सके… क्षेत्र का विकास जनता की जरूरतों की तर्ज पर हो सके… अधिकारियों की तानाशाही और कर्मचारियों की मनमानी पर लगाम लग सके… लेकिन जब जनता के द्वारा चुना गया व्यक्ति जनता की तरह ही असहाय हो जाएगा… कुछ कर नहीं पाएगा… उन्हीं अधिकारियों-कर्मचारियों की मनमानी की भेंट चढ़ जाएगा तो लोकतंत्र का मतलब कहां रह जाएगा… जनता द्वारा जनता के लिए चुना गया लोक भी तंत्र के अधीन नजर आएगा… ऐसा इंदौर शहर में बरसों से होता चला आ रहा है… विधायक खामोश रहते हैं… जो चल रहा है उसे देखते रहते हैं… कभी कहते हैं तो कोई सुनता नहीं है… कोई सुनता है तो समझता नहीं है… इसलिए समझने के बजाय सहने की परिपाटी अब आदत बन चुकी है… जनता ने भी उम्मीद छोड़ दी है… वो भी नेता को अपने जैसा मजबूर मानते हैैं.. अपनी ही बिरादरी का समझकर खामोश हो जाते हैं… किसी का घर तोड़ दिया जाता है… घर तोडऩे का मुआवजा तक नहीं दिया जाता है.. नए नियम बनाए जाते हैं… जो बनाए जाते हैं, वो भोपाल में अटक जाते हैं… नए के चक्कर में पुराने नियम खत्म कर दिए जाते हैं… करोड़ों खर्च कर सडक़ें बनाई जाती हैं, लेकिन शहर की गलियां गड्ढों में जीवन बिताती है… रोशन इंदौर की बस्तियां अंधेरे से निकल नहीं पाती हैं… मनमाना संपत्ति कर लगाया जाता है… जिन गांवों में विकास नहीं है, उन्हें भी नगर निगम की सीमा में शामिल कर लिया जाता है… लेकिन वहां बुयिनादी जरूरतों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है… सडक़ बन जाती है तो पानी नहीं पहुंच पाता है… पानी तो पानी ड्रेनेज और जल निकासी की व्यवस्था दूर-दूर तक नजर नहीं आती है… नेताओं की बिरादरी इस बात का जवाब नहीं दे पाती है कि संपत्ति उनकी, कर निगम का तो व्यवस्थाओं का जिम्मा किसका होगा… शहर की कराहती अंदरुनी हालत में फिर एक उम्मीद की किरण नजर आती है… गली-मोहल्लों में चुनाव कराए जाते हैं.. नगर निगम में वर्षों बाद पार्षद चुनकर आते हैं.. महापौर को अपना दर्द सुनाते हैं तो संगठन अनुशासन का चाबुक लेकर खड़ा हो जाता है… जनता की आवाज और नेताओं की मांग को अनुशासनहीनता कहा जाता है… महापौर को… पार्षदों को खामोश रखने का पाठ पढ़ाया जाता है… और जैसा चल रहा है, वैसा चलने के लिए मजबूर किया जाता है… यह लोकतंत्र नहीं रोगतंत्र है… इसका इलाज होना चाहिए.. समय रहते हकीकत को समझना चाहिए… चंद महीनों बाद प्रदेश की सरकार जनता के बीच जाएगी, तब नेताओं की खामोशी जवाब नहीं दे पाएगी… जनता की चीखें उन्हें दरवाजे से लौटाएगी… जनता जब सवाल करने पर उतर आएगी तो विकास की सारी यात्राएं धरी रह जाएंगी.. आपका अनुशासन शासन के लिए बाधा बन जाएगा… मुख्यमंत्री से लेकर सरकार तक का किया गया विकास बौना नजर आएगा… जनता के दर्द को जुबान बनने दीजिए… विधायकों और पार्षदों को अपनी बात कहने दीजिए… ताकि लोगों के दर्द पर निराकरण का मरहम लग सके और नेता खुद को जनता का प्रतिनिधि कह सके… वरना नेता अधिकारियों के अधीन होकर रह जाएगा… उनकी पीठ थपथपाएगा… उनके कामों का श्रेय लेकर विकास यात्रा में शामिल हो जाएगा… लेकिन जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पाएगा…

Share:

Next Post

कुत्ते के काटने के मामले में मालिक को केवल तीन महीने की कैद, 12 साल बाद अदालत ने सुनाई सजा

Mon Feb 6 , 2023
मुंबई। मुंबई के गिरगांव स्थित अदालत ने एक व्यवसायी को तीन महीने की कैद की सजा सुनाई है। अदालत का यह फैसला घटना के 12 साल बाद आया है। रिपोर्ट के मुताबिक दोषी के पालतू कुत्ते रॉटवीलर ने 12 साल पहले एक व्यक्ति को काट लिया था जिसके बाद वह बुरी तरह से जख्मी हो […]