भोपाल। सुर सम्राट तानसेन (Sur Samrat Tansen) की नगरी ग्वालियर में आयोजित पांच दिवसीय विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह (World Sangeet Samagra Tansen Festival) का गुरुवार को समापन हुआ। सुर साज के इस मेले में राग रस की ऐसी खुशबू बिखरी कि जिसकी महक एक अरसे तक रसिकों के जेहन में रची बसी रहेगी। गुरुवार शाम को आखिरी सभा में गायकों, वादकों ने बाबा तानसेन को सुरों से खिराजे अकीदत पेश की। इसी के साथ संगीत के इस कुम्भ का समापन हो गया।
समारोह की गुरुवार को सांध्यकालीन एवं अंतिम सभा का आगाज शारदा नाद संगीत महाविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुआ। उन्होंने राग श्री में गायन पेश किया। वैशाली मोघे के स्वर संयोजन में बंदिश के बोल थे-“प्रथम नाद सुर साधे”। इस प्रस्तुति में हारमोनियम पर अनूप मोघे और पखावज पर यमुनेश नागर ने संगत की।
इसके बाद सांध्यकालीन सभा की पहली प्रस्तुति इंदौर की वैशाली बकोरे ने ख्याल गायन की दी। वैशाली के गायन का शास्त्रीय और सुगम पक्ष दोनों ही नफासत भरे हैं। आवाज में एक मिठास और कशिश तो है ही जो तीनों सप्तकों में आसानी से घूमती फिरती है। उन्होंने अपने गायन के लिए राग मधुवंती का चयन किया। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे -“लाल के नैना।” जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे- “ऐरी सखी कासे कहूं जी की बतियां”। वैशाली ने दोनों ही बन्दिशों को रागदारी की बारीकियों का निर्वहन करते हुए पेश किया। राग की बढ़त करने से लेकर तानों की अदायगी तक गायन रस भरा रहा। उन्होंने अति द्रुत तीनताल में तराना भी गाया और समापन ब्रह्मानंद के भजन -“हरि नाम सुमिर सुखधाम” से किया। उनके साथ तबले पर निशांत शर्मा और हारमोनियम पर अर्चना शर्मा ने संगत की।
सभा की अगली प्रस्तुति में मुंबई से आईं ग्वालियर की बेटी राधिका उमड़ेकर का विचित्र वीणा वादन हुआ। राधिका देश की इकलौती विचित्र वीणा वादिका हैं। ग्वालियर के दरबारी गायक पंडित बाला भाऊ उमडेकर की पौत्री एवं विख्यात सितार वादक श्रीराम उमडेकर की बेटी राधिका ने राग किरवानी में अपना वादन पेश किया। आलाप, जोड़ से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो गतें पेश की। दोनों ही गतें तीनताल में थी। राधिका का वादन साफ सुथरा और रागदारी से परिपूर्ण माधुर्य से भरा था। उनके साथ तबले पर मनोज पाटीदार और पखावज पर जगतनारायण शर्मा ने संगत की, जबकि तानपुरे पर साथ दिया उन्हीं की बेटी आरोही बुधकर ने।
तानसेन समारोह 2021 की अंतिम प्रस्तुति देने के लिए मंच पर उपस्थित थीं देश की ख्यातिप्राप्त गायिका विदुषी सान्या पाटनकर। मधुर आवाज की धनी सान्या जी ने गुरु शिष्य परम्परा के अन्तर्गत मूर्धन्य गायिका डॉ. अश्विनी भिड़े देशपांडे जी से गायन की शिक्षा प्राप्त की है। जयपुर अतरोली घराने की गायकी से सजा राग नंद का चयन कर उन्होंने अपने गायन की शुरुआत की। इसमें बड़ा ख्याल “ढुंढो वारे सैंया” जो विलंबित तीनताल में निबद्ध था, इसी राग में मध्यलय रचना अद्दा तीनताल “अज हू ना आए” प्रस्तुत करते हुए द्रुत तीनताल में सरगम गीत भी गाया। क्रमबद्ध आलाप चारी और विशुद्ध गायकी से सजे गायन को श्रोताओं ने भरपूर सराहा।
सान्या पाटनकर ने अपनी अन्य प्रस्तुतियों में तराना, टप्पा और मराठी नाट्य गीत गाकर तानसेन समारोह को उत्कृष्टता तक पहुंचाया। उनके साथ ऊर्जा से परिपूर्ण तबला संगति मनोज पाटीदार व युवा हारमोनियम संगति विवेक जेन ने बड़ी कुशलता पूर्वक गायन किया तथा सहयोग पूर्वी टोनपे ने किया। (एजेंसी, हि.स.)
Share: