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पुतिन-जिनपिंग के गैरहाजिर रहने से G-20 समिट के एजेंडे पर नहीं पड़ेगा फर्क, रूस-चीन पड़े अलग-थलग!

नई दिल्ली (New Delhi)। जी-20 शिखर सम्मेलन (G-20 Summit) में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) और रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) के शामिल नहीं होने के अलग-अलग निहितार्थ हैं। इससे हालांकि जी-20 शिखर सम्मेलन के एजेंडे पर कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन उनकी अनुपस्थिति क्षेत्रीय और वैश्विक भू राजनीति के नजरिये से कई मायने रखती है।

डेढ़ साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) के चलते दुनिया दो ध्रुवों में बंटती दिखाई दे रही है। एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश हैं तो दूसरी तरफ रूस और चीन एक समूह में साथ खड़े नजर आते हैं। इनके बीच जो खाई सृजित हुई है वह इस सम्मेलन में दोनों राष्ट्राध्यक्षों की गैर मौजूदगी से और गहरी होगी। क्योंकि भारत की अध्यक्षता में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक अवसर हो सकता था कि युद्ध के संकट के समाधान की कोई राह निकले, जिसके लिए भारत हमेशा से इच्छुक रहा है।


चीन-रूस अलग- थलग पड़े
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह के अनुसार चीन का ब्रिक्स में शामिल होना और जी-20 में नहीं आना यह दर्शाता है कि चीन एवं रूस न सिर्फ एक साथ खड़े हैं बल्कि वे दुनिया के अलग-थलग भी पड़ चुके हैं। उनकी मौजूदगी में भारत मध्यस्थता को लेकर कोई पहल कर सकता था। इसी प्रकार भारत और चीन के बीच पिछले तीन सालों से एलएसी के मुद्दे पर तनाव बना हुआ है। ब्रिक्स में जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हाल में इस मुद्दे पर बात हुई थी। यह उम्मीद थी कि वे यदि दिल्ली आते तो यह बातचीत आगे बढ़ती। मेजबान के रूप में भारत के पास आपसी तालमेल को बेहतर करने का एक अवसर भी होता।

नेताओं की अनुपस्थिति से फैसलों पर फर्क नहीं
विदेश मंत्रालय के अनुसार ज्यादातर जी-20 शिखर सम्मेलनों में कोई न कोई राष्ट्राध्यक्ष अनुपस्थित रहा है। शुरूआती कुछ सम्मेलन ही ऐसे थे जिनमें सभी राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए थे। लेकिन राष्ट्राध्यक्ष के शामिल नहीं होने से शिखर सम्मेलन के एजेंडे या उसमें लिए जाने वाले फैसलों पर कोई असर नहीं पड़ता है। जी-20 के एजेंडे में अर्थव्यवस्था, जलवायु वित्त, डिजिटल मुद्दे आदि हैं जिन पर पिछले एक साल में दो सौ से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं। इस सम्मेलन में उस पर राष्ट्रों के रुख पर अंतिम स्वीकृति लगनी होती है।

पुतिन को गिरफ्तारी का भय नहीं
विशेषज्ञ उन अटकलों को भी खारिज करते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन तथाकथित गिरफ्तारी के भय से भारत नहीं आ रहे हैं। दरअसल, जिस अन्तरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) से उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ है, भारत उसका सदस्य नहीं है। इसलिए भारत के लिए उसका आदेश बाध्यकारी नहीं है। हालांकि यह बात सही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पुतिन ने विदेशी के दौरे सीमित कर दिए हैं। लेकिन वह पिछले साल उजबेकिस्तान में हुई एससीओ की बैठक में मौजूद रहे थे। ब्रिक्स में वह नहीं गए। पर अफ्रीका आईसीसी का सदस्य है। पुतिन के नहीं आने को लेकर एक तर्क यह भी है कि वह पश्चिम देशों और अमेरिका की मौजूदगी में यूक्रेन मामले पर किसी भी खराब संदर्भ से बचना चाहते हैं। वह अपने मेजबान और मित्र भारत को भी किसी दुविधा में नहीं डालना चाहते हैं। वैसे, अब भारत के लिए भी यह चुनौती है कि इस मुद्दे पर कोई ऐसा संदर्भ नहीं जुड़े जो रूस पर चोट करता हो। संभवत इसी बात को ध्यान में रखकर यूक्रेन को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया है।

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