खरी-खरी ब्‍लॉगर

चिराग यूं ही बुझते रहेंगे

जिस चिराग को अनुभव का तेल न मिले… जो चिराग ठोकरों की आग में न तपेे… जिस चिराग को चापलूसी की बाती रोशन करे… वो चिराग भला कब तक रोशन रहे… पासवान की हथेली का चिराग भी कुछ ऐसी ही कच्ची माटी और बुझी बाती के साथ रोशन होने की जिद कर रहा था… उसे पिता की बख्शी हुई अग्नि का इस कदर गुमान था… वो अपने सपने के हर महल को चकाचौंध करना चाहता था, मगर आग से खेलने की नादानी इस कदर भारी पड़ी कि उसका दामन ही नहीं, उसकी विरासत भी जलकर खाक हो गई… यह कहानी अकेले रामविलास के खत्म हुए वैभव और ठंडे पड़े चिराग की नहीं है, बल्कि इस देश के हर घर, हर परिवार, हर गरीब, हर अमीर और हर उस सर्वशक्तिमान की है, जो अपने बच्चों को बिना सन्मति अपनी सम्पत्ति सौंप जाते हैं… बिना अनुभव के श थमाते हैं… विरासत में शक्तियां तो थमातेे हैं, लेकिन शत्रुओं से लडऩे का सामथ्र्य नहीं सीखाते हैं…भले-बुरे की पहचान नहीं कराते हैं… अपने-परायों का भेद नहीं समझा पाते हैं… संघर्ष से जी चुराते हैं… गलत फैसलों को पलट नहीं पाते हैं… गलतियों को स्वीकारने से पहले ही टूट जाते हैं और पिता के बरसों के शौर्य और पराक्रम को पलभर में मिटा डालते हैं, फिर वो पासवान का पुत्र चिराग हो या इंदिराजी का बेटा राजीव या फिर सोनिया का लाड़ला राहुल… विरासत में यकायक मिली शक्तियों को परीक्षा समझने के बजाय इन्होंने परिणाम मान लिया… तोहफे में मिले वजूद को पुरस्कार मान लिया… सत्ता की कुर्सी को अधिकार मान लिया… ऊंचाई को संसार मान लिया… जमीन की हकीकत को दुत्कारते इन नौनिहालों ने न कुर्सियों की चुभन को महसूस किया… न घात लगाए दुश्मनों से चौकन्ना रहे… सामथ्र्य को शक्ति समझे राजीव गांधी ने श्रीलंका के विदेशी पचड़ों में पैर फंसाया और अपनी जान को गंवाया… सोनिया ने पति की मौत को सबक बनाया और एक-दो साल का वक्त सत्ता समझने में लगाया… पहले नेताओं को लड़ाकर कमजोर बनाया… फिर मौका देखकर पैर जमाया… लेकिन तब भी जलती भट्ठी में हाथ नहीं फंसाया… बल्कि मनमोहनसिंह के कंधे से निशाना लगाया… सोनिया ने बिना तोहमत के वक्त तो बिताया, लेकिन पुत्र राहुल को तैयार किए बिना ही कुर्सी पर बैठाया… अब हालत यह है कि सामथ्र्य तो है, लेकिन समझ नहीं है… हथियार तो है, लेकिन प्रहार नहीं है… शक्ति तो है, लेकिन युक्ति नहीं है… हर दिन की लड़ाई और पराजय की कुंठा ऐसे चिरागों को बुझाती रहेगी… जब तक अनुभव की आग में सत्ता के चिराग नहीं पकेंगे, तब तक इसी तरह झुलसते रहेंगे…

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