नई दिल्ली। देश में ज्यादातर विपक्षी दल पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) (Old Pension Scheme (OPS)) को वापस लाने की बात कह रहे हैं। पुरानी पेंशन योजना वर्तमान व भविष्य के सरकारी कर्मचारियों (government employees) को पसंद आएगी, क्योंकि यह योजना सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों (retired government employees) और उनके जीवनसाथी (कर्मचारियों की मृत्यु के बाद) को पेंशन भुगतान की गारंटी (pension payment guarantee) प्रदान करती है। इसके लिए कर्मचारियों को किसी प्रकार का योगदान भी नहीं देना होता।
नई पेंशन योजना (एनपीएस) भविष्य की सुरक्षित कमाई के मामले में पुरानी पेंशन योजना के आसपास भी नहीं पहुंचती। नई पेंशन योजना में कर्मचारियों व सरकार दोनों का योगदान होता है। वहीं सेवानिवृत्ति के वक्त रिटर्न आय के स्तर के एक निश्चित अनुपात में मिलने के बजाए बाजार आधारित मिलते हैं, लेकिन सवाल है कि यदि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना इतनी बेहतर थी, तो केंद्र और अधिकांश राज्य एनपीएस में क्यों चले गए? इसका जवाब है कि यह सस्ता नहीं है।
क्या ओपीएस में वापसी का वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों का ऐसा करना सही है? एक विश्लेषण बताता है कि यह खराब राजनीति और खराब अर्थशास्त्र दोनों है। क्योंकि, इसकी राजनीतिक अपील बहुत सीमित है तथा यह राज्य की वित्तीय स्थिति को पूरी तरह से अस्थिर बना सकता है।
पुरानी पेंशन योजना का आर्थिक बोझ राज्यों पर बढ़ रहा है
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार राज्यों के अपने राजस्व में पेंशन खर्च का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है। यह शुरुआत में 10% से कम था और 2020-21 तक बढ़कर 25% से अधिक हो गया था। केंद्र और राज्य दोनों को उम्मीद है कि एनपीएस के तहत सेवानिवृत्त होने के बाद यह बोझ कम हो जाएगा। यदि राज्य ओपीएस की ओर लौटते हैं तो परिणाम ठीक उल्टा होगा। यह राज्यों की वित्तीय स्थिति को और खराब कर देगा।
राज्य अपने राजस्व का कितना हिस्सा पेंशन पर खर्च कर रहे
1986-87 में 8.7%
2020-21 में 25.9%
टैक्स का कितना पेंशन पर खर्च कर रहे राज्य (2020-21)
बिहार 58.9%
उत्तराखंड 58.3%
उत्तर प्रदेश 42%
झारखंड 31.5%
पश्चिम बंगाल 32.8%
(स्त्रोत-एसबीआई रिसर्च इकोरैप)
क्या ओपीएस चुनाव जिता सकती है?
इस साल हुआ उत्तर प्रदेश का चुनाव ताजा उदाहरण है। समाजवादी पार्टी (सपा) ने चुनाव में ओपीएस में वापसी का वादा किया था और सरकारी कर्मचारियों ने इसे बड़े उत्साह से लिया था। चुनाव ड्यूटी पर सरकारी कर्मचारी पोस्टल बैलेट से वोट डालते हैं। अगर सिर्फ पोस्टल बैलेट के आधार पर जीत-हार तय हो रही होती तो सपा 45 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 71.5 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज करती, लेकिन वहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को स्पष्ट बहुमत मिला। इससे कम से कम इतना तो साबित हो जाता है कि यह वादा चुनाव नहीं जिता सकता।