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BJP के लिए आसान नहीं MP-CG की राह, राजस्थान में ध्रुवीकरण की संभावना

नई दिल्ली। साल 2024 के लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha Elections) के पहले सेमीफाइनल (first semifinal) के रूप में देखे जा रहे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) और राजस्थान (Rajasthan) के विधानसभा चुनाव (assembly elections) को लेकर भाजपा (BJP) ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। पार्टी नेतृत्व को विभिन्न स्तरों खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जो प्रारंभिक अनुमान मिले हैं, उसमें राजस्थान में वह बेहतर स्थिति में है, लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में काफी सतर्कता बरतने की जरूरत है। इन राज्यों में अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। गौरतलब है कि पिछली बार भाजपा तीनों में ही चुनाव हार गई थी, हालांकि बाद में उसने कांग्रेस में टूट से अपनी सरकार बना ली थी।


इन तीनों राज्यों में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन अब कांग्रेस केवल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ही सत्ता में है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में हुई टूट के बाद भाजपा ने वहां पर अपनी सरकार बना ली है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा को विभिन्न स्तरों से जो अनुमान मिले हैं, उनके अनुसार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश उसके लिए काफी कठिनाई भरे हो सकते हैं। मध्य प्रदेश में हाल में स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा को झटका भी लगा है। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार को बीते चार साल में कोई बड़ी चुनौती नहीं दे सकी है। भाजपा वहां पर प्रभावी नेतृत्व के संकट से भी जूझ रही है।

मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव में लगा झटका
सूत्रों के अनुसार भाजपा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए अपनी अलग रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत पार्टी ने पूर्वोत्तर में संगठन में काम कर रहे अजय जामवाल को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का क्षेत्रीय संगठन मंत्री नियुक्त किया है और उनका केंद्र रायपुर रखा गया है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में भाजपा ने सवा साल बाद ही अपनी सरकार बना ली थी, क्योंकि कांग्रेस में ज्योतिराज सिंधिया के नेतृत्व में बड़ी टूट होने से कमलनाथ सरकार का पतन हो गया था। उसके बाद भाजपा को हाल में नगर निगम और स्थानीय निकाय के चुनाव में काफी झटका भी लगा है, जबकि 16 में से 5 नगर निगम के मेयर उसके हाथ से निकल गए। इनमें ग्वालियर चंबल क्षेत्र भी शामिल है, जहां उसके कई दिग्गज नेता हैं। इसके अलावा महाकौशल में भी उसे झटका लगा है, जो कांग्रेस नेता कमलनाथ का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है।

सूक्ष्म प्रबंधन पर होगा काम
पार्टी में यह महसूस किया जा रहा है कि लंबे समय से मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान की छवि अब उतनी प्रभावी नहीं रही है। इसके अलावा संगठन स्तर पर भी नेताओं का टकराव बढ़ने से चुनावी रणनीति पर असर पड़ रहा है। हालांकि, मध्य प्रदेश उन राज्यों में है, जहां भाजपा संगठन सबसे मजबूत माना जाता है। सूत्रों के अनुसार नए क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल राष्ट्रीय संयुक्त संगठन मंत्री शिव प्रकाश और मध्य प्रदेश के संगठन मंत्री हितानंद शर्मा के साथ मिलकर सूक्ष्म प्रबंधन पर काम करेंगे।

छत्तीसगढ़ में नेतृत्व का संकट
भाजपा के लिए छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से भी ज्यादा मुश्किल माना जा रहा है, क्योंकि वहां पर कांग्रेस की सरकार को बीते 4 साल में पार्टी कोई चुनौती देती हुई नहीं दिखी है। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का पहले पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा, लेकिन इस बीच भाजपा कोई नया नेतृत्व भी नहीं उभार सकी है। राज्य की लगभग आधी आबादी पिछड़ा वर्ग की है, लेकिन यहां पर आदिवासी समुदाय भी बहुतायत में है। ऐसे में सामाजिक समीकरण साधना बेहद जरूरी है। हालांकि पार्टी का मानना है कि द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद उसे आदिवासी समुदाय में व्यापक समर्थन मिलेगा। लेकिन, पिछड़ा वर्ग समुदाय से आने वाले कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रभाव क्षेत्र में सेंध लगाने के लिए उसके पास कोई बड़ा नेता नहीं है। ऐसे में उसकी निर्भरता केंद्रीय नेतृत्व पर काफी ज्यादा बढ़ी हुई है।

राजस्थान में ध्रुवीकरण का लाभ
राजस्थान में हाल में हुई घटनाओं से भाजपा को काफी लाभ मिलने की उम्मीद है। पार्टी को जो अंदरूनी आकलन है कि राज्य में ध्रुवीकरण तेजी से हुआ है और वह भाजपा के लिए चुनाव में लाभ की स्थिति बनाएगा। उदयपुर, अलवर, करौली की घटनाओं ने राज्य के सामाजिक समीकरणों को प्रभावित किया है। हालांकि भाजपा वहां पर अपने नेताओं की अंदरूनी टकराव से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का समर्थक खेमा और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का समर्थन वाला वर्ग अभी भी टकराव की स्थिति में है। केंद्रीय नेतृत्व बार बार सभी को समन्वय के साथ काम करने के निर्देश दे रहा है।

सामूहिक नेतृत्व पर जोर
भाजपा की भावी रणनीति में माना जा रहा है कि वह तीनों ही राज्यों में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने जाएगी। मध्यप्रदेश में उसकी अपनी सरकार है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा भी है, लेकिन पार्टी ऐसा कोई वादा नहीं करेगी कि चुनाव के बाद शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री रहेंगे। हालांकि अभी भी पार्टी में कई बदलाव किए जाने की संभावना है, इसमें सरकार और संगठन दोनों ही प्रभावित हो सकते हैं।

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