आचंलिक

गणेश जी के जन्मोत्सव की कथा सभी अमंगल को दूर कर देता है -पं.हर्षित शास्त्री

सीहोर। अग्रवाल पंचायती भवन में चल रही शिव महापुराण कथा में पंडित हर्षित शास्त्री ने कार्तिकेय जन्म की कथा का प्रसंग कहा गया। जिसमें जब तारकासुर नामक असुर के पाप अनाचार से सभी देवता पीडि़त हो गए, तब सभी देवताओं ने महादेव से प्रार्थना करें कि प्रभु आपके पुत्र के द्वारा तारकासुर का वध होगा इसलिए आप कृपा करें भगवान शिव ने फिर देवताओं की बात को स्वीकार करके उन पर कृपा करें और अपना अमोघ तेज पार्वती जी में प्रविष्ट किया। उनके तेज को पार्वती जी नहीं झेल सकी बेहोश हो मूर्छित होकर गिर पड़ी, फिर उनका तेज अग्नि ने ग्रहण किया, अग्नि भी जब उनके तेज को ग्रहण नहीं कर सकें, तो उन्होंने सप्त ऋषि में से छह ऋषियों की पत्नियों में उनके रोमो के माध्यम से उनके तेज को समाहित किया। जब वह ऋषि पत्नियों को भी बहुत तेज सहन नहीं हो सका, तो उन्होंने गंगा जी में उसको प्रदान किया और गंगा जी ने पर्वतों में प्रदान कर दिया। वहीं पर कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ जब भगवान का जन्म हुआ तब पार्वती जी के स्तन से दूध की धारा चल पड़ी।



भगवान शिव के तेज को जिन जिन माताओं ने ग्रहण किया था सभी के मन कार्तिकेय जी को दूध पिलाने का भाव जागृत हुआ। कार्तिकेय जी ने सभी माताओं के भाव को समझ लिया और 6 मुख बना लिए 6 माताओं के मुख से दूध पिया क्योंकि जो माताओं ने भगवान शिव के तेज को धारण किया था। वह कृतिका हुई उनका नाम कृतिका हुआ इसीलिए भगवान का नाम कार्तिकेय हुआ। भगवान शिव ने जब कार्तिकेय जी को देखा तो प्रसन्न हो गए और वरदान दिया तुम समस्त गणों के स्वामी होंगे इसलिए तु हारा एक नाम स्वामी भी होगा। ऐसा वरदान भगवान श्री शिव ने कार्तिकेय जी को दिया फिर ब्रह्मा जी के द्वारा प्रार्थना करने पर शंकर जी ने कार्तिकेय जी को युद्ध के लिए भेजा जहां पर माता पार्वती ने कार्तिकेय जी का विजय तिलक करके उनको भेजा ।तिलक होने के बाद में कार्तिकेय जी का भीषण युद्ध हुआ युद्ध में तारकासुर का वध करके भगवान कार्तिकेय पुना लौटे। इधर एक दिन माता पार्वती अपनी सखियों के सदस्यों के साथ स्नान कर रही थी तभी भगवान शिव वहां पर आ गए नंदीश्वर के रोकने पर भी भगवान शिव ने कहा कि वह हमें ही रोकना चाहते हो और फिर भोले बाबा चले गए पार्वती जी असहज हो गए। इसके बाद में भगवान एक दिन भगवान कार्तिकेय और गणेश जी दोनों की जब बड़े हो गए तो उनके मन में विवाह की कामना जागृत हुई दोनों ने विवाह के लिए रिद्धि और सिद्धि का चयन किया इसके पश्चात भगवान ने कहा जो भी प्रथम परिक्रमा करके पृथ्वी की तीन परिक्रमा करके आएगा वही रिद्धि सिद्धि से विवाह उसका होगा। ऐसा भाव भगवान ने प्रकट किया इसके पश्चात गणेश जी ने माता-पिता को बिठा करके उनकी ही टीम परिक्रमा की और कहा माता-पिता ही समस्त पृथ्वी का सारा हैं और भगवान गणेश जी का विवाह रिद्धि सिद्धि के साथ हुआ। कार्तिकेय जी रुष्ट हो गए और दक्षिण दिशा की तरफ चले गए वहीं पर विराजने लगे।
कथा के आज की कथा के विश्राम के समय मु य यजमान बृजमोहन सोनी, मनोज शर्मा, अंकुर शर्मा के साथ में मु य रूप से अखिलेश राय, नमिता राय उपस्थित रहे।

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