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बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने की अनोखी परंपरा, मुख्य पुजारी को स्त्री वेश करना पड़ता है धारण!

डेस्क: उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत और उत्तराखंड के चार धामों में से एक धाम बद्रीनाथ धाम स्थित है. धाम के कपाट मार्च-अप्रैल में सभी भक्तों के लिए खोले जाते हैं और अक्टूबर- नवंबर में कपाट बंद कर दिए जाते हैं. हालांकि भगवान बद्री विशाल के कपाट बंद होने की प्रक्रिया बेहद अनूठी है. कपाट बंद होने की प्रक्रिया लगभग पांच दिन तक चलती है.

इसमें भगवान गणेश, आदि केदार, खड्ग पुस्तक और महालक्ष्मी की पूजा होती है. सबसे पहले गणेश पूजन होता है. उसके बाद गणेश की मूर्ति को बद्रीनाथ धाम के गर्भ गृह में विराजित करवा दिया जाता है और गणेश मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. तत्पश्चात आदि केदार के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और खड्ग पुस्तकों का पूजन कर उन्हें भी मंदिर में रख दिया जाता है.


यह प्रक्रिया लगभग पांच दिन तक चलती है, जिसमें पांचवें दिन मंदिर के मुख्य पुजारी (रावल) पुरुष होने के बावजूद न सिर्फ स्त्रियों के समान वेशभूषा धारण करते हैं बल्कि उन्हीं के समान पूरा श्रृंगार करते हैं. इसके पीछे बेहद रोचक वजह है. दरअसल मुख्य पुजारी स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी के विग्रह को उठाकर मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की पंचायत में विराजित करते हैं.

मान्यता है कि उद्धव जी भगवान कृष्ण के बाल सखा होने के साथ साथ उनसे उम्र में बड़े भी हैं, जिस रिश्ते से वे माता लक्ष्मी के जेठ हुए. हिन्दू परंपरा के अनुसार, जेठ के सामने बहू नहीं आती है, इसलिए मंदिर से उद्धव जी के बाहर आने के बाद ही माता लक्ष्मी मंदिर में विराजित होती हैं. माता लक्ष्मी की विग्रह डोली को पर (दूसरा पुरुष) न छुए उसके लिए मंदिर के पुजारी माता लक्ष्मी की सखी अर्थात स्त्री रूप धारण कर माता के विग्रह को उठाते हैं.

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