ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

भरी मीटिंग में क्या बोल गए कांग्रेस के नेताजी?
कांग्रेस जिस दौर से गुजर रही है, उसमें कोई क्या बोल देता है, उसका भान उसको नहीं रहता। पिछले दिनों गांधी भवन में हुई कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक में एक युवा नेता ने कहा कि जब हम हमारे कार्यक्रमों में 300-300 रुपए में बाइयां लाते हैं और वे हमारे साथ चलती हैं तो फिर सरकार तो बाइयों को हर महीने साढ़े 12 सौ रुपए दे रही हैं। बाइयां उनको वोट क्यों नहीं देंगी? किसी ने धीरे बोलने का इशारा किया तो एक नेताजी ने दरवाजा बंद करवा दिया, लेकिन ये ध्यान नहीं दिया कि दीवारों के भी कान होते हैं। बात दीवार से बाहर आ गई। आपको बता दें कि ये वे नेताजी हैं जो इन दिनों फॉम में हैं और एक बड़े जवाबदार पद पर भी हैं। नेताजी के मुंह से ऐसे बोल कांग्रेस की हकीकत बयां कर रहे हैं।

आधी-अधूरी बनी भाजपा की मीडिया टीम
भाजपा ने अपनी चुनाव प्रबंधन समिति में मीडिया टीम भी बनाई है, लेकिन इस टीम में उन्होंने गिने-चुने लोगों को लिया और कुछ पुराने मीडिया प्रभारियों को भी शामिल कर लिया, लेकिन जिले के सहमीडिया प्रभारी राजेश शर्मा और शहर के नीतिन द्विवेदी को इसमें जगह नहीं दी गई। वहीं कुछ और अनुभवियों को भी इस टीम से दूर रखा गया। हालांकि काम उनसे ही काम करवाया जा रहा है। बाकी पुराने तो बड़े नेताओं के सामने ही मुंह दिखाई के लिए आते हैं।


ये टिकट की जलसेवा है या कुछ और
राजनीति में कुछ काम अलग हटकर भी किए जाते हैं। हालांकि प्रदेश की सत्ता से 20 साल से दूर कांग्रेस के नेता अब इस मामले में कोई नवाचार नहीं करते, लेकिन एक कांग्रेसी ने जलसेवा शुरू कर दी है और टैंकरों के लिए नंबर भी जारी कर दिए हैं। वैसे आपको बता दें कि इनका नाम लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी के रूप में चल रहा है जो अभी तक तय नहीं हुआ है। नेताजी के साथ वाले ही कह रहे हैं कि पैसा है तो खर्चा करेंगे ही। देखना यह है कि टिकट नहीं मिला तो टैंकर चलेंगे या नहीं?

राजनीतिक जमावट बिछाने में लगे हैं महापौर
सबको मालूम है कि महापौर बनने के पहले पुष्यमित्र भार्गव सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता थे और अब वे जनप्रतिनिधि हैं। वैसे अभाविप के समय महापौर के पास एक बड़ी टीम हुआ करती थी, जो बाद में इधर-उधर हो गई। महापौर बनने के बाद कई पुराने चेहरे महापौर के आगे-पीछे घूम रहे थे। उसमें से कुछ को महापौर ने अपना प्रतिनिधि बनाकर पिछले दिनों नियुक्ति पत्र भी थमा दिए। इसे महापौर की हर क्षेत्र में राजनीतिक जमावट के रूप में देखा जा रहा है। वैसे महापौर अब इंदौर की राजनीति में भी पैठ जमाने में लगे हैं और चार नंबर से बाहर भी पैर पसार रहे हैं।


शुक्ला की स्पीड
तुलसी सिलावट जिस तरह से भाजपा में घुलमिल गए हैं, अब उसी तरह से संजय शुक्ला निकले। भाजपा में आने के बाद शुक्ला हर उस नेता के घर ढोंक लगा आए हैं जो इंदौर में भाजपा कर्णधार हैं। बड़े नेताओं से तो वे पहले ही मिल लिए थे। बाकायदा सोशल मीडिया पर इसका प्रचार भी किया जा रहा है। शुक्ला वैसे तो कह रहे हैं कि किसी शर्त के साथ वे नहीं आए हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि शुक्ला को जल्द ही कोई जवाबदारी दी जा सकती है। शुक्ला अपने साथ विशाल पटेल को ले जाना नहीं भूलते। वैसे कांग्रेस में रहते दोनों की जोड़ खूब चर्चित रही है।


नुकसान में टंडन
दलबदल में सबसे ज्यादा नुकसान में है तो वो है प्रमोद टंडन, पर टंडन करते भी तो क्या करते। किसी ने सोचा नहीं था कि 20 साल बाद फिर भाजपा प्रदेश में अपनी सरकार बना लेगी। बड़े ही शान से उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दिया और उसके कई कारण भी गिना डाले। जिस पार्टी में उन्हें मंच पर बिठाया जाता था, उसे किनारा कर वे कांग्रेस में आ गए, लेकिन अभी तक न तो कोई बड़ा पद मिला है और न ही कोई ऐसी जवाबदारी कि वे अपने आपको साबित कर सके। नुकसान तो टंडन का हुआ है, लेकिन वे उसे जाहिर होने नहीं दे रहे हैं।

मिश्रा की टिप्पणी या भड़ास
कांग्रेस छोडक़र जाने वालों पर मीडिया विभाग के प्रमुख केके मिश्रा ने ऐसी टिपप्णी की कि वह टिप्पणी से ज्यादा भड़ास दिख रही थी। वैसे मिश्रा एक सुलझे हुए नेता हैं, लेकिन कांग्रेस छोडक़र जाने वालों ने उन्हें इतना व्यथित कर दिया कि इस टिप्पणी में उन्होंने कई अमर्यादित शब्दों का उपयोग भी कर दिया। उन्होंने दलबदलुओं को दौलत के शौकीन, आर्थिक हित साधने वालों के साथ-साथ और भी कुछ उपाधियां दे डाली और एक को तो भूमाफिया तक बता डाला। खैर सवाल तो कांग्रेस पर भी उठता है कि जब ऐसे लोग कांग्रेस में थे तो वह इनको बाहर क्यों नहीं कर रही थी। लंबे समय बाद मिश्रा की इस टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई, लेकिन राजनीति में कसमें, वादें, प्यार और वफा जैसा कुछ नहीं होता। अक्सर ऐसी स्थिति राजनीति में बनती रहती है।

कांग्रेस छोडक़र जिनको जाना था वे जा रहे हैं और कुछ कांग्रेसी मन बना रहे हैं। इनको रोकने के लिए कुछ बड़े नेताओं ने अपने प_ों को जासूसी में लगाया है जो साब लोगों को बता रहे हैं कि कौन किधर और किससे मिल रहा है। वैसे पटवारी की टीम भी काम पर लगी है, लेकिन वे समझाने जाते हैं और कोई मानता नहीं। कुछ कांग्रेसी तो कह रहे हैं कि पटवारी का बड़बोलापन कुछ कांग्रेसी नहीं पचा पा रहे हैं। इसलिए भगदड़ मची हुई है। – संजीव मालवीय

Share:

Next Post

बिहार में सीट बंटवारे को लेकर NDA में तस्वीर साफ! जानें टिकट का गणित

Mon Mar 18 , 2024
पटना: लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही पूरा देश इलेक्शन मोड में आ गया है लेकिन दूसरी तरफ सियासी दलों में अभी भी सीटों के बंटवारे को लेकर सस्पेंस बरकरार है. बात चाहे एनडीए की हो या फिर इंडिया गठबंधन की, किसी भी तरफ से अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं […]