ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे


पिंटू और सज्जन की जुगलबंदी
पिंटू जोशी को तीन नंबर विधानसभा का चुनाव लडऩा है, लेकिन पिछली बार की तरह उनके चाचा यानी अश्विन जोशी राह में बड़ा रोड़ा हैं। इंदौर में कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले महेश जोशी के पुत्र पिंटू अभी से ही राजनीतिक बिसान बिछाने में लगे हुए हैं। ठीक अपने पिता की तरह वे बड़ी सावधानी से हर मोहरंे देखकर चल रहे हैं और एक बड़ी चाल उनकी जब सामने आई, तब दीवाली मिलन में सज्जनसिंह वर्मा उनके सरकारी बंगले पर पहुंच गए और करीब डेढ़ घंटे तक वहीं रहे। इस दौरान कई कांग्रेसी नेता उनसे मिलने पिंटू के बंगले पर ही पहुंचे। पिंटू को भी मालूम है कि 3 नंबर के टिकट की राह इतनी आसान नहीं है। इसके लिए कांग्रेस के इंदौरी क्षत्रपों को साधना होगा और उन्होंने इसकी तैयारी अभी से ही शुरू कर दी है।
कांग्रेस के हारने से खुश हैं अरुण समर्थक
खंडवा की हार से कुछ कांग्रेसी खुश हैं और वे मन ही मन बड़े नेताओं को कोस रहे हैं। उनका कहना है कि अगर अरुण यादव को इमोशनल ब्लैकमेल नहीं किया जाता और उन्हें टिकट दे दिया जाता तो आज कुछ और अलग दिन होते, लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति खंडवा सीट को खा गई। अरुण के समर्थक अभी तक यह कह रहे हैं कि अगर यही रहा तो 2023 का जो हल्ला मच रहा है, उसमें औंधे मुंह ही कांग्रेस गिरने वाली है, क्योंकि ऐनवक्त पर टिकट ऐसों को दे दिया जाता है तो उसके काबिल नहीं रहता।


भाजपाई भी मान रहे आयातित ही जीत रहे
भाजपा ने भले ही तीन सीटों पर विजय प्राप्त कर ली हो, लेकिन दबी जुबान में भाजपा के कुछ नेता जोबट और पृथ्वीपुर सीट को लेकर कह रहे हैं कि आयातित लोग ही जीत रहे हैं। जोबट में भाजपा से सुलोचना को तो पृथ्वीपुर से बसपा से शिशुपाल यादव को लाए और उन्हें जीत दिला दी। कुछ नेता तो यह भी कह रहे हैं कि भाजपा में संगठन महत्वपूर्ण माना जाता है और अगर संगठन में ही ताकत है तो फिर टिकट देकर उसे क्यों नहीं जिताया जाता जो शुरू से संगठन की सेवा में लगा है।
एक-दूसरे को निपटाने में लग गए भाजपाई
उपचुनाव में जिन इलाकों में भाजपा को कम वोट मिले हैं, वहां के प्रभारियों को निपटाने में उनके ही नेता लग गए हैं। वोट का जोड़-घटाव कर बताया जा रहा है कि उन्होंने क्या किया और उनके प्रतिद्वंद्वी ने क्या किया। यह कवायद आने वाले चुनावों को लेकर भी हो रही है। इंदौर में दूसरी पंक्ति के कई नेता ऐसे थे, जिन्हें चुनाव में सहप्रभारी के रूप में भेजा गया था। जहां से भाजपा को बढ़त मिली, वहां तो वाहवाही होती रही, लेकिन जहां कमजोर साबित हुए उनका चिट्ठा बड़े नेताओं के सामने खोला जा रहा है, ताकि उनकी राजनीति में रोड़े अटकाए जा सके। बाकायदा कुछ नेताओं ने तो पाटिल को मिले वोटों की पूरी टेबल बनाकर वरिष्ठ नेताओं को भेजकर बताया है कि उन्होंने क्या किया और दूसरे नेता ने क्या किया?


अल्पसंख्यक नेताओं का चुनावी पर्यटन
खंडवा और जोबट उपचुनाव में प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष रफत वारसी ने इंदौरी नेताओं की भी ड्यूटी लगाई। शोर मचाया गया कि इंदौर के अल्पसंख्यक नेता जी-जान से लगे हैं, लेकिन परिणाम आने के बाद वही हुआ जो हर चुनाव में होता रहा है। भाजपा को अपेक्षित अल्पसंख्यक वोट नहीं मिल पाए। बुरहानपुर और नेपानगर जैसे क्षेत्र जो अल्पसंख्यक बहुल हैं, वहां भी वे ही वोट मिले जो हमेशा से मिलते आए हैं। वैसे इंदौर में भी अल्पसंख्यक इलाकों से वोट मिलते नहीं तो वहां से कैसे मिल जाते?
पेलवान के दांव ने कर दिया सबको चित्त
अपने तुलसी पेलवान ने जो नेपानगर विधानसभा में किया है, उसको लेकर भाजपा के दूसरे नेता भी सकते में हैं। जिस तरह से कांग्रेस के बाद भाजपा में तुलसी पेलवान ने अपने नाम का झंडा गाड़ दिया है, उससे गांव की राजनीति करने वाले दूसरे भाजपा नेता भी परेशान हैं। उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है, क्योंकि तुलसी के आंगन में पुराने कांग्रेस नेता भी घूमने लगे हैं और पंचायत चुनाव में वे भी दावेदारी कर रहे हैं तो निगम के 5 वार्ड भी यहां जुड़े हुए हैं, जिसमें शहरी नेताओं की दावेदारी है।
सांसद लालवानी ने भेजी सत्तू के लिए माला
सत्यनारायण पटेल साफ-सुथरे नेताओं के रूप में जाने जाते हैं और उनकी राजनीति का तरीका भी अलग ही है। सत्तू को कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर की जवाबदारी देकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस पर मोहर भी लगा दी। सत्तू ने कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को एक मंच पर लाकर बता दिया कि वे सबके लिए सर्वमान्य है। आश्चर्य तो तब हुआ जब गांधीभवन में हुए स्वागत समारोह में सांसद शंकर लालवानी की ओर से सत्तू का स्वागत हुआ। लालवानी की ओर से फूलों की माला सत्तू के लिए पहुंचाई गई और बाकायदा मंच से बार-बार कहा गया कि सांसद लालवानी की ओर से माला भिजवाई गई है और उनका स्वागत किया जा रहा है। मतलब विपक्ष भी सत्तू की राजनीति से प्रभावित है। सत्तू 5 नंबर से विधानसभा का चुनाव तो लड़ेंगे ही, लेकिन लालवानी के सामने भी सत्तू सांसद का चुनाव लड़ लें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

प्रदेश के स्थापना दिवस के कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र से लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन का नाम नहीं होने को लेकर उनके समर्थक नाराज हुए और सोशल मीडिया पर विरोध भी हुआ, लेकिन उसे ज्यादा हवा नहीं मिली। कांग्रेसियों ने भी मुद्दा उठाया था, लेकिन जब भाजपाइयों को तवज्जो नहीं मिली तो इन्हें कहां मिलती? -संजीव मालवीय

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