खरी-खरी

जो संत रविदास को समझ न पाए… वो उनका जीवन समझाएं… खुद जातियों में चुनकर सत्ता में आए…और जाति भेद की गाथा गाएं…


संत रविदास ने भी नहीं सोचा होगा कि 500 साल बाद पूरा देश यकायक उन्हें पूजने लग जाएगा… हर नेता उनके गीत गाएगा…उनकी जयंती इतनी धूमधाम से मनाएगा कि हर शख्स हैरान रह जाएगा… देश के प्रधानमंत्री उनकी चरित्रावली में चार चांद लगाएंगे… राज्यों के मुख्यमंत्री उनकी जीवनी लिखने लग जाएंगे… सारे राजनीतिक दल उनके नाम पर एक हो जाएंगे…जिस संत रविदास का डेढ़ पन्ने का पाठ याद करने के लिए स्कूल में बच्चों ने बेतें खाईं…रैदास कहलाने वाले रविदास की जीवनी की जिन लोगों को तब डेढ़ लाइनें याद नहीं आईं, वो पन्ने भर-भरकर गाथा सुना रहे हैं…पूरे देश को रविदास की संत प्रवृत्ति से रूबरू करा रहे हैं…उनके नाम के गीत गा रहे हैं, क्योंकि उत्तरप्रदेश में चुनाव कराए जा रहे हैं…वाराणसी में एक मोची के घर जन्म लेने वाले रैदास ने तब समाज की उपेक्षा से उग्र होकर सामाजिक चेतना व आंदोलन चलाया…रूढिय़ों और परंपराओं को बदलने का हौसला दिखाया… जाति-पंथ और संप्रदाय की जटिल परिस्थितियों को भेदने का हौसला दिखाया…लेकिन आज पांच सौ साल बाद न तो वो जाति भेद मिट पाया…न ही अगड़ों-पिछड़ों की सोच में अंतर आया…और न धर्म-संप्रदायों के भेद को कोई अलग कर पाया…हैरत की बात तो यह है कि जिस संत ने धर्म-जाति, संप्रदाय का कुचक्र मिटाने के लिए जीवन लगाया, आज उनके नाम का उपयोग इसी भेद को साधने के लिए किया जा रहा है…पिछड़ों के वोट हासिल करने के लिए हर दल उनकी जयंती मना रहा है…उन्हें संघर्ष का पुजारी बता रहा है…अभी उत्तरप्रदेश के मतदाताओं को रिझाया जा रहा है…फिर पूरा देश रविदास की दास्तां सुनाएगा…चौराहों पर प्रतिमा लगाई जाएगी…हर साल जयंती मनाई जाएगी… छुट्टियों का एक दिन बढ़ जाएगा… संत रविदास की जयंती पर अवकाश घोषित किया जाएगा…पता नहीं यह देश कहां जाएगा…जब सत्ता की शक्ति और सामथ्र्य अपने मतलब के लिए संत की सोच के खिलाफ ही उन्हें इस्तेमाल करने में लग जाएगी…जाति भेद के खिलाफ लडऩे वाले रविदास का उपयोग भी उनकी जाति के लोगों को रिझाने के लिए किया जाएगा तो संत से बड़े ज्ञानवान तो वो नेता लगने लग जाएंगे, जो हर परिस्थिति का उपयोग करना जानते हैं…पांच सौ साल का अंतर मिटाकर उन्हें उस नाम को हथेली पर सजाना आता है, जिसे पांच मिनट के लिए भी कभी याद नहीं किया जाता है…देश के नेता तो नेता चुनावों से भी जाति भेद नहीं मिट पाया…चुनावों से पहले सीटों का आरक्षण किया जाता है… मतदाताओं की तादाद के आधार पर सीटों को बांटा जाता है…राज्यों की विधानसभाओं से लेकर देश की लोकसभा सीटों पर देश का नेतृत्व जाति के आधार पर चुना जाता है…फिर संत रविदास को क्यों पूजा जाता है…यदि रविदास की जयंती मनाना ही है तो देश से आरक्षण की प्रथा को मिटाइए…शिक्षा से लेकर नौकरी तक में समानता का आधार दिखाइए… हर सीट हर वर्ग के उम्मीदवार को लडऩे और जीतने के लिए सुलभ कराइए…फिर देश को संत रविदास का पाठ पढ़ाइए…

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