ब्‍लॉगर

`संपूर्ण क्रांति’ ने लोकतंत्र को बनाया मजबूत

– मुरली मनोहर श्रीवास्तव

जेपी आंदोलन सामाजिक न्याय और जातिविहीन समाज की परिकल्पना पर आधारित था। इस आंदोलन के कारण उस समय के युवाओं ने अपने नाम में सरनेम लगाना छोड़ दिया था। हालांकि, यह बहुत दिनों तक नहीं चल सका। भारतीय राजनीति में जाति के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों की संख्या बड़े पैमाने पर उभरकर सामने आयी। जेपी आंदोलन में लालू, मुलायम, नीतीश और रामविलास पासवान जैसे नेता उभरकर सामने आए। लोकतंत्र बचाने के लिए आपातकाल विरोधी आंदोलन ने भारत में यह तय कर दिया कि कोई भी नेता या दल इस तरह शासन नहीं कर सकता है। भारत स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी आंदोलन के लिए तैयार है।

सर्वोदय और भू-दान आंदोलन के सफल नहीं होने से दुखी लोकनायक जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र को दोष मुक्त बनाना चाहते थे। धनबल और चुनाव के बढ़ते खर्च को कम करना चाहते थे ताकि जनता का भला हो सके। जेपी का सपना था ऐसा समाज बनाने का, जिसमें नर-नारी के बीच समानता हो और जाति का भेदभाव न हो। मगर आज भी इस खाई को नहीं पाटा जा सका है। लोग चुनावी भंवर में अपनी बिरादरी और धर्म के साथ ही अपनी राजनीतिक गोटियां सेट करने में लगे रहते हैं।

सच कहना अगर बगावत है…

बिहार में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में शुरू किए गए जनांदोलन को शुरुआती दौर में सभी ने काफी हल्के में लिया। यह भी आरोप लगा कि इसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ है। मगर अफवाहों से अलग जेपी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और गांधीवादी शैली पर ‘न मारेंगे, न मानेंगे’ के आधार पर जेपी का आंदोलन धीरे-धीरे जोर पकड़ता गया। इस आंदोलन ने कई नारे दिए और संकल्प व्यक्त किए, जो वर्षों चर्चा में रहा। ‘हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा’, `संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है’, ‘लोक व्यवस्था जाग रही है, भ्रष्ट व्यवस्था कांप रही है’, ‘सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं।’

हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा

बिहार आंदोलन के दौर में 8 अप्रैल, 1974 का दिन महत्त्वपूर्ण था। इस दिन आंदोलन के दूसरे चरण में पटना में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाला गया, जो अभूतपूर्व था। जिस रास्ते से जुलूस गुजरा, उसके दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग खड़े थे। मकानों पर, छतों पर, छज्जों पर अपार भीड़ उमड़ पड़ी थी। जुलूस के साथ चल रही तख्तियां बोल रही थीं-हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,सत्ता ही है जिम्मेदार, क्षुब्ध हृदय है बंद जुबान, लोक व्यवस्था जाग रही है, भ्रष्ट व्यवस्था कांप रही है, जनता खुद ही जाग उठेगी, भ्रष्ट व्यवस्था तभी मिटेगी।

‘लोकनायक’ की उपाधि

5 जून, 1974 को बिहार विधानसभा के विघटन की मांग को लेकर पटना में जे.पी. के नेतृत्व में ऐतिहासिक जुलूस निकला गया। शाम को गांधी मैदान की जनसभा में जेपी ने सामाजिक संरचना को पूरी तरह बदलने की आवश्यकता प्रतिपादित कर क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण और उनके सहयोगियों का विधानसभा के विघटन का ही आंदोलन नहीं है। यह तो एक मंजिल है। आंदोलन के दौरान 9 जुलाई, 1974 को मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने बिहार विधानसभा में एक ऐसा बयान दिया, जिससे स्थिति में और उत्तेजना पैदा हो गई। उन्होंने कहा कि- किसी भी विधायक पर विधानसभा से इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला गया तो जयप्रकाश नारायण को भी ‘असली मुकाम’ पर पहुंचा देंगे। इस बीच विपक्ष के कई सदस्य विधानसभा से इस्तीफा दे चुके थे। 15 जुलाई को बिहार में सभी विश्वविद्यालय और कॉलेज खुलने वाले थे, लेकिन ज्यादातर स्थानों पर छात्रों ने कक्षाओं का बहिष्कार जारी रखा। धरना-सत्याग्रह का दौर चलता रहा। 18 जुलाई को जमशेदपुर और बेगूसराय में पुलिस ने गोलियां चलाईं।

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’, जे.पी.आंदोलन और 1977 के आम चुनाव में संघर्ष की प्रेरक शक्ति बन गई थी। कवि के इस आह्वान ने इतिहास में अपना स्थान बना लिया। 1977 के हुए आम चुनाव में जनादेश का यही मूल था- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

1977 चुनाव में इमरजेंसी के विरुद्ध ऐसे नारे लगे, जो सत्ता को पलटने वाले साबित हुए। संजय गांधी पर अपना गुबार उतारने के लिए एक नारा गढ़ा गया-‘संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी। संजय गांधी के विवादास्पद मारुति कार प्रोजेक्ट पर नारा बना-‘बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है।’ विपक्षी दलों ने एक से एक बढ़कर लुभावने नारे दिए, जो बड़े प्रभावी सिद्ध हुए, जैसे-‘सन् 77 की ललकार, गांव-गांव जनता सरकार।’ इंदिरा कांग्रेस को हराने के लिए चार-पांच दलों के गठजोड़ से जल्दबाजी में बनी जनता पार्टी के पास फंड की कमी थी। लोगों ने नारा दिया, ‘वोट भी देंगे, नोट भी देंगे’ और सचमुच लोगों ने वोट और नोट दोनों दिए, जिससे जनता पार्टी के रूप में केंद्र में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार सत्तासीन हुई।

बिहार के मुजफ्फरपुर जेल में बंद जनता पार्टी के उम्मीदवार जॉर्ज फर्नांडीस के पक्ष में नारे लगाए गए-‘जेल का फाटक तोड़ दो, जॉर्ज फर्नांडीस को छोड़ दो।’ और जब जॉर्ज जीत गए और जेल से रिहा हो गए, तब नारा लगा-‘जेल का फाटक टूट गया, जॉर्ज फर्नांडीस छूट गया। चुनाव परिणाम पर एक नारा लगा- ‘पहले हारी कोर्ट में, फिर हारी वोट में।’

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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