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भारत में पड़ेगी असहनीय गर्मी, इन 11 राज्यों सितम ढाएगा पारा

नई दिल्ली। जलवायु खतरे को लेकर संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्न्मेंटल पैनल ऑन क्लाईमेट चेंज (United Nations Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) की ताजा रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन (carbon emission) में कटौती नहीं हुई तो निकट भविष्य में गर्मी और उमस इंसान की सहनशीलता की सीमा को पार कर जाएगी। यह खतरा भारत समेत कई देशों पर है। रिपोर्ट सोमवार को जारी हुई।

रिपोर्ट के चैप्टर 10 और पेज 57 पर कहा गया है कि भारत उन स्थानों में से एक है जो इन असहनीय परिस्थितियों का अनुभव करेगा।

रिपोर्ट में वेट बल्ब तापमान का जिक्र किया गया है जिसमें तापमान की गणना करते समय गर्मी और उमस को जोड़ा जाता है। एक इंसान के लिए 31 डिग्री सेल्सियस का वेट-बल्ब तापमान बेहद खतरनाक है। 35 डिग्री सेल्सियस में तो छांव में आराम कर रहे स्वस्थ वयस्क के लिए भी लगभग 6 घंटे से अधिक समय तक जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा।


रिकॉर्ड तोड़ेगी गर्मी
रिपोर्ट के चैप्टर 10 और पेज 43 पर बताया गया है कि फिलहाल भारत में वेट बल्ब का तापमान शायद ही कभी 31° डिग्री से अधिक होता है। अभी यह अधिकतम 25-30° डिग्री रहता है। लेकिन उत्सर्जन में वर्तमान में किए वादों के मुताबिक कटौती की जाती है तब भी देश के उत्तरी एवं तटीय हिस्सों में यह 31 डिग्री तक पहुंच सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, अगर उत्सर्जन में ऐसी ही वृद्धि जारी रही, तो भारत के अधिकांश हिस्सों में वेट बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा।

लखनऊ और पटना में सबसे अधिक असर
हैरान करने वाली बात यह है कि रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही तो लखनऊ और पटना 35 डिग्री सेल्सियस के वेट बल्ब तापमान तक पहुंच जाएंगे। इसके बाद भुवनेश्वर, चेन्नई, मुंबई, इंदौर और अहमदाबाद में वेट बल्ब तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने का अनुमान है।

असम, मेघालय, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

समुद्र स्तर में वृद्धि से कृषि और बुनियादी ढांचे को खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सरकारें अपने मौजूदा उत्सर्जन-कटौती के वादों को पूरा करती हैं तो इस सदी में वैश्विक स्तर पर समुद्र का स्तर 44-76 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा। लेकिन तेजी से उत्सर्जन में कटौती के साथ, वृद्धि 28-55 सेमी तक सीमित की जा सकती है। जैसे-जैसे समुद्र स्तर बढ़ता है, खारे पानी की घुसपैठ के कारण अधिक भूमि जलमग्न हो जाएगी, नियमित रूप से बाढ़ आ जाएगी, और जमीन कृषि के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी।

भारत के लिए समुद्र स्तर में वृद्धि और नदी की बाढ़ की आर्थिक लागत भी दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। यदि उत्सर्जन में केवल उतनी ही तेजी से कटौती की जाती है जितना वर्तमान में वादा किया गया था तो प्रत्यक्ष क्षति का अनुमान 24 अरब डॉलर होगा। अधिक उत्सर्जन होने पर यह 36 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। अकेले मुंबई में समुद्र स्तर में वृद्धि से 2050 तक प्रतिवर्ष 162 अरब डॉलर के नुकसान की आशंका है।

खाद्य व पानी की कमी के साथ जीना पड़ेगा
अगर तापमान में वृद्धि जारी रहती है तो फसल उत्पादन में तेजी से कमी आएगी। रिपोर्ट के चैप्टर 5 के पेज 14-15 पर इन बातों का उल्लेख है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती मांग का मतलब है कि भारत में लगभग 40 फीसदी लोग 2050 तक पानी की कमी के साथ जियेंगे, जबकि अभी यह 33 फीसदी है।

भारत के कुछ हिस्सों में चावल का उत्पादन 30 और मक्के का 70 फीसदी गिर सकता है और अगर उत्सर्जन में कटौती की जाती है तो यह आंकड़ा 10 फीसदी हो जाएगा। निरंतर जलवायु परिवर्तन से भारत में मछली उत्पादन में भी गिरावट आएगी।

भारत कहीं और होने वाली घटनाओं से होगा प्रभावित
भारत अपनी सीमा के भीतर होने वाले जलवायु परिवर्तन के असर से प्रभावित होगा। वहीं, अन्य जगहों पर होने वाले परिवर्तनों के परिणामों से भी यह बहुत प्रभावित होगा। दरअसल, जलवायु परिवर्तन अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं, बाजारों, वित्त और व्यापार को प्रभावित करेगा।

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