जबलपुर न्यूज़ (Jabalpur News)

सड़कों पर भारी वाहन दौड़ा रहे अस्वस्थ मानव बम

  • बीमार होने पर भी काम पर जाने की मजबूरी लोगों के लिए बन रही काल का गाल

जबलपुर। कोतवाली थाना अंतर्गत कल हुए मेट्रो बस हादसे के बाद जहां समूचा शहर सहमा हुआ है। वही अब इस पर भी चर्चा जोरों पर शुरू हो गई है की सड़कों पर इस तरह के और मानव बम हो सकते हैं जो बीमार होने के बावजूद भी वाहन चलाकर लोगों के लिए काल बन सकते हैं। यह सच है कि आर्ट अटैक जहां जवान लोगों को आ सकता हैए वही इसका शिकार उम्रदराज लोग भी ज्यादा होते हैं। ऐसे में सवाल उठता है क्या इस तरह की भारी वाहन चलाने वालों किस बात की जांच नहीं की जाती है क्योंकि लगातार भारी वाहन को चलाने वालों को एक और कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है वही अनियमित दिनचर्या के चलते हैं यह बीमारियों का शिकार हो जाते हैंए जो कार्य के दौरान लोगों के लिए काल का गाल बन जाया करते हैं।

नहीं कोई सुविधाएं
मेट्रो बस चालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें किसी प्रकार की कोई स्वास्थ्य सुविधाएं कंपनी द्वारा नहीं दी जा रही है। हालांकि कंपनी द्वारा एएसआई कार्ड जारी किया जाता है। लेकिन कई चालक और परिचालक हैंए जिन्हें कंपनी ने एएसआई कार्ड नहीं दिया है। वही इनका कहना है कि कंपनी द्वारा नये कर्मचारियों का न तो बीमा होता है और न कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल रही है। हालांकि नए कर्मचारियों को सुविधाएं देने की बात कही जा रही है।


नहीं होती स्वास्थ्य जांच
नियमानुसार भारी वाहन चलाने वाले चालकों की स्वास्थ्य जांच अति आवश्यक है। लेकिन मेट्रो बस के चालकों का कहना है किए उनकी किसी भी प्रकार की कोई स्वास्थ्य जांच नहीं होती। वही बीमार होने के बावजूद भी कंपनी द्वारा उनकी तन्खा काटे जाने की बात कह कर उन पर दबाव बनाया जाता है। जिसके कारण बीमार होने के बावजूद भी मेट्रो बस के चालक अपना काम करने मजबूर हैंए काम के अत्यधिक बोझ के चलते बीमार होने पर इस तरह के हादसे होने की संभावनाएं है प्रबल रहती हैं।

कोरोना काल में दी अपनी सेवाएं
मेट्रो बस चालक मृतक हरदेव पाल के सहकर्मी बताते हैं कि कोरोना काल में उनके द्वारा लगातार किट पहनकर काम किया जा रहा था। गौर स्थित कजरवारा निवासी मृतक हरदेव पाल के दो बेटे और एक बेटी है। अपने कार्य के लिए हमेशा सजग रहने वाले हरदेव की मौत होने पर मेट्रो बस सुविधा के प्रबंधकों द्वारा पीडित परिवार को किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं की गयी। इतना ही नहीं चालक परिचालक सहकर्मियों द्वारा आपस में चंदा कर परिवार को अंतिम संस्कार के लिए पैसे मुहैया कराए गए हैं।

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