टीकमगढ़ । मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के निवाड़ी जिले (Niwari District) में एक ऐसा गांव भी है जहां पिछले 39 साल से थाने में कोई केस दर्ज नहीं हुआ. गांव के लोग बड़े बुजुर्गों की पंचायत बुला लेते हैं और आपसी सहमति से मामले सुलझा लेते हैं. लोगों को थाने जाने की नौबत ही नहीं आती. धार्मिक और पर्यटक नगरी ओरछा (orchha) के पास बसा हाथीवर खिरक एक ऐसा गांव है जहां पिछले 39 साल से यानी साल 1983 से गांव के लोगों को पुलिस थाने (police station) की जरूरत ही नहीं पड़ी. थाने में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. 39 सालों में अब तक एक भी अपराध दर्ज नहीं हुआ. गांव के लोग भी थाने और कोर्ट कचहरी से कोसों दूर रहते हैं. जब इस गांव में पृथ्वीपुर एसडीओपी संतोष पटेल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गांव के लोग पुलिस को ही नहीं जानते.
100 साल की बुजुर्ग महिला प्यारी बाई पाल का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं देखा कि गांव में कोई विवाद हुआ है. गांव में पुलिस आई हो. पुलिस कैसी होती है वह नहीं जानती. गांव के कई बुजुर्ग और युवाओं का कहना है कि उन्होंने जब से होश संभाला है तब से गांव में कोई विवाद नहीं हुआ. कभी हल्के-फुल्के विवाद हो ही जाते हैं तो गांव के बुजुर्गों द्वारा पंचायत स्तर पर आपसी सहमति से बैठल कर उसे सुलझा लिए जाते हैं.
खुद एसडीओपी ने चेक कराई क्राइम नोटबुक
पृथ्वीपुर एसडीओपी संतोष पटेल ने बताया जब मुझे पता लगा कि इस गांव में 39 साल से कोई अपराध थाने में दर्ज नहीं हुआ है तो सबसे पहले खुद गांव को देखा गया. वहां के लोगों से बात की और उसके बाद उन्होंने विलेज क्राइम नोटबुक चेक कराई तो पता चला कि यहां साल 1983 से कोई अपराध दर्ज नहीं किया गया है. इस अमन पसंद गांव में एक शख्स असामाजिक किस्म का था लेकिन वह अब गांव में नहीं रहता है. हाथीवर खिरक गांव में 225 लोगों रहते हैं. इस कम आबादी वाले गांव में अमन चैन और शांति और खुशनुमा वातावरण के साथ प्राकृतिक समावेश है.
गांव में पाल और अहिरवार बा ब्राह्मण समाज के लोग रहते हैं. सभी समाज के लोग आपसी भाईचारे और घुल मिलकर रहते हैं. एक दूसरे के सुख दुख में मैं हमेशा साथ देते हैं. अग कोई मनमुटाव और विवाद जैसी स्थिति भी होती है तो वह बड़े बुजुर्ग एक दूसरे को समझा-बुझाकर शांत करा देते हैं. हाथीवर खैरा गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है जिसके साथ साथ बकरी और गाय जैसे जानवरों का पालन करते हैं. बकरी पालन से उन्हें रोजगार मिलता है जिससे उन्हें आर्थिक आमदनी भी होती है. गाय पालन से गांव के लोगों को दूध की कमी नहीं होती है. गांव के लोग घी, दूध का भी व्यवसाय करते हैं. खेती करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.
Share: