नई दिल्ली । आधुनिक भारत(Modern India) में लोग अपनी सभ्यता(Civilization) को छोड़ फॉरेन कल्चर (foreign culture)को अपना रहे हैं. शादी ब्याह(marriage wedding) में भी रीति-रिवाज(customs and traditions) से परे, डेस्टिनेशन वेडिंग और प्री वेडिंग शूट को महत्व दे रहे हैं, लेकिन इन सब चीजों के बावजूद आदिवासी समाज के लोग आज भी अपनी मूल संस्कृति, रीति रिवाज और परंपराओं से जुड़े हुए हैं. इसका ताजा उदाहरण है भिलाला समाज की एक ऐसी परंपरा, जो सैकड़ों वर्षों से खरगोन सहित आदिवासी क्षेत्रों में विवाह में निभाई जा रही है.
जिस परंपरा की हम बात कर रहे हैं…आमतौर पर इसे कई लोग गलत नजरिया से भी देख सकते हैं, लेकिन इस समाज में इस परंपरा को विवाह के दौरान निभाने का मकसद बेहद ही अलग और भावनात्मक और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. दरअसल विवाह के दौरान दूल्हे की मां के स्तनों पर गुड़ लगाकर बेटे को स्तनपान कराया जाता है. यह एक ऐसा संदेश है, जो विवाह के बाद मां के प्रति बेटे की जिम्मेदारी को दर्शाता है.
भिलाला समाज में निभाई जाती है रस्म
समाज में जिला अध्यक्ष, सुभाष पंवार बताते है कि विवाह के दौरान वैसे तो कई सारी रस्में ओर परंपराएं निभाई जाती हैं, जो आमतौर पर सिर्फ आदिवासी समाज में ही देखी जाती है. बचपन के बाद जवानी में विवाह के समय मां का बेटे को स्तनपान कराना भी उन्हीं में से एक है. यह परंपरा भिलाला समाज में खासकर खरगोन सहित झाबुआ जिले में प्रमुख रूप से निभाई जाती है.
बारात के पहले निभाई जाती है रस्म
आगे कहा कि, इसका उद्देश्य मां के प्रति बेटे का फर्ज याद दिलाना होता है. जब दूल्हा बना बेटा दुल्हन को ब्याहने बारात लेकर जाता है, तब दूल्हे की मां के स्तनों पर गुड़ लगाकर दूल्हे को चटाया जाता है. ऐसा इसलिए करते है कि, एक मां नौ महीने अपने खून से बच्चे को सींचती है, जन्म के बाद अपना दूध पिलाकर ही उसे बड़ा करती है. जब बेटा बड़ा हो जाता है, तो घर ग्रहस्ती की जिम्मेदारियों को समझता है, उनका निर्वहन करता है.
याद दिलाया जाता है मां का फर्ज
पंवार कहते है कि, आखरी बार स्तन पान इसलिए कराया जाता है कि, ताकि बेटे को यह एहसास रहे कि, पत्नी, बच्चों के अलावा उसे मां की जिम्मेदारी भी उठाना है. उसके बुढ़ापे का वही सहारा है. क्योंकि इसी मां ने अपना दूध पिलाकर तुम्हे पाला-पोसा है. इसलिए बड़े होकर मां के दूध का कर्ज और फर्ज भूल मत जाना
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