आचंलिक

अनदेखी में ऐतिहासिक भूरी टोरी खंडर में होती जा रही है तब्दील …

सिरोंज। अविभाजित भारत का केंद्र बिंदु है एंव माउंट ऐवरेस्ट की ऊचांई नापने के लिए बनाए मुख्य बिंदुओ में से एक है सिरोंज की भूरी टोरी शहर से छह किलोमीटर दूर गुना रोड़ पर पहाडिय़ों पर इम पुरानी पत्थरों की इमारत बनी हुई है जो की अब खंडहर नुमा है और अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है,देखने में ये आम काले पत्थरों की दिखने वाली इमारत असल में कोई आम नहीं हैं, ये अंग्रेज़ों के लिये बहुत खास थी और इसका नाम है श्भूरी टोरीश् ये नाम शायद अंग्रेजों के गौरे रंग और अंग्रेज़ो की चहल कदमी की वजह से पड़ा होगा। भूरी टोरी अंग्रेज़ो के लिए इसलिए खास थी क्यो की ये अविभाजित भारत का केंद्र बिंदु थी, इसका जि़क्र सिरोंज शहर की तारीख़ी किताब श्आसार ए मालवा श् में मिलता है, जिसमें इस इमारत को सन 1853 में तामीर होना बताया गया है और ज़मीन और माउंट एवरेस्ट की उचांई नापने के लिए बनाया गया था।
जब भारत अविभाजित था यानी पाकिस्तान और बंगलादेश भारत में शामिल थे,तब इन सभी का यानी अभिवाजित भारत का केंद्र बिंदु कहा जाता था। सिरोंज के इतिहासकार बताते हैं श्सर जॉर्ज एवरेस्टश् ने माऊंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापने के लिए इस स्थान पर ट्रिगनोमेट्रिक स्टेशन को कायम किया, इस के लिए उन्होने ग्राम कल्याणपुर जो की सिरोंज के पास है वहां पर ओबसर्वेटरी स्थापित की जो बहुत ही सुविधाजनक स्थिति में हैं और ग्रेट आर्क एवं देशांतर मध्याह्न रेखा से पूर्वी या पश्चिमी अंतर को दो भागों में बांटती है तथा कलकत्ता और करांची को आपस में मिलाती है। विश्व रेखांतर का पर्यवेक्षण किया गया जो प्रथम बिंदु 40.6, 1824 और 1865 के मध्य पाया गया और इसी प्रकार दूसरा बिंदु 39 फिट 7 इंच पूर्व और पाया गाय। यह पर्यवेक्षण सन 1840 में किया गया और ये पर्यवेक्षिका 1853 के आस पास निर्मित की गई थी। सर जार्ज एवरेस्ट के समय से आज तक कल्याणपुर हिल स्टेशन को पाइंट ऑफ ओरिजिन भारतिय विश्व रेखांतर और आकाश वृत्त को छूने वाली लाइन कल्याणपुर और सूरनताल घाटी के बीच आकाश वृत्त को छूने वाली आधार रेखा की मान्यता प्रदान की गई।


ये पॉइंट ऑफ ओरिजन केवल एक है। इसके पूर्ण संदर्भ में ट्राई एंगुलेशन इन इंडिया एंड एडजसेंट कंट्रीज़ में जो 1917 में प्रकाशित हुई थी, देखी जा सकती है, सिरोंज में स्थापित किया गया भूमापन का यह मूल बिंदु एक ऐतिहासिक वस्तु है और इसका जन्म पृथ्वी के जन्म के साथ जुड़ा है। यह बिंदु भारत और उससे जुड़े हुए करीबी निम्न देशों के सर्वे का महत्त्वपूर्ण बिंदु है तथा इसकी मदद के बिना इन देशों का भू गर्भ ज्ञान और मापन सही सही प्राप्त नहीं हो सकता, ये देश हैं बर्मा, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश। 1977 में भू गर्भ और अनुसंधान शाखा भारतिय सरंक्षण विभाग देहरादून के आर.के कपूर और शिवमरण अपने सहयोगियों के साथ सिरोंज आए थे।उनके पास बहुमूल्य विदेशी आटोमेटिक यंत्र थे, जिनकी मदद उन्होंने लगभग एक माह सिरोंज में रहकर इस बिंदु की सहायता और उसकी सही स्थिति की जांच की थी। कपूर ने बताया कि जो यंत्र उनके पास थे उन्होंने जब उन्हें भूरी टोरी के स्थान पर लगाया तो झाडिय़ों के कारण वे चबूतरा उन्हें दिखाई नहीं दिया जहां कि उन्हें एरियल लगाना चाहिए था और इस कारण उनके यंत्र ने ठीक से काम नहीं किया लेकिन थोड़ी देर बाद खोज की तो ऐरियल लगाने का चबूतरा जो की पॉइंट ऑफ ऑरिजिन ऑफ सर्वे है मिल गया और वहां उन्होंने एरियल को फिक्स कर दिया और टेंट लगाकर उसमें अपने यंत्र रख दिए। शिवरन और कपूर के पास जो यंत्र थे वे रेडियो जैसे ऑटोमेटिक थे जो कि अमेरिका में बने थे अमेरिका ने सन 1971 में छह सेटेलाइट क्रमांक 3012, 3013, 3014, 3019, 3020, और 2301 छोड़े थे। जो अब तक वायुमंडल में घूम रहे हैं उनमें से एक सेटेलाइट क्रमांक 2301 वायुमंडल में ही नष्ट हो चुका है और शेष पांच लगातार परिक्रमा कर रहे हैं यह सैटलाइट परिक्रमा करते हुए सिरोंज की धुरी में आते ही अपना संदेश देते हैं । उनके आगमन पर यंत्र अपने आप चालू हो जाते है लाइट संकेत द्वारा उनका आगमन ज्ञात होता है इसके पश्चात प्रत्येक सेटेलाइट अपना संदेश देती है, जो यंत्रों में लगे टेप रिकार्डर में रिकार्ड हो जाता है अंत में वायुमंडल का तापमान भी इन्हीं यंत्रों से में यंत्रों से रिकॉर्ड किया जाता है इन सैटेलाइट के आने का समय बिल्कुल निर्दिष्ट और निश्चित है और निर्दिष्ट समय पर यह सैटेलाइट एक-एक डेढ़- डेढ़ घंटे के अंतर से वायुमंडल में घूमते हुए सिरोंज के भूरी टोरी स्थित बिंदु से गुजरते हैं ये सैटेलाइट पृथ्वी से अपनी दूरी भी बताते हैं। उल्लेखनीय है कि ज्योटिक सर्वे ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा इस सर्वेक्षिका की मरम्मत के लिए पच्चीस सौ रुपये प्रतिवर्ष लोक निर्माण विभाग सिरोंज को दिया जाता था, अब उक्त राशी आना बंद हो गई है ऐसा लोक निर्माण विभाग के अधिकारी बताते हैं वेधशाला की विशेष बनावट यह पर्यवेक्षिका विशेष तौर से बनाई गई है उसके चारों ओर काले पत्थर की पक्की चारदीवारी है इसके व इसके ऊपर छत नहीं डाली गई है उत्तर दक्षिण की दीवारों में दो फीट चौड़ी और छह फीट ऊंची खंदके रखी गई है आज से चालीस पचास वर्ष पूर्व सर्वेक्षण के समय पर्यवेक्षिका जिसके अंदर गैस लालटेनों का तेज प्रकाश कर दूर दूर तक प्रकाश फेंकते थे तथा ग्राम सुरनताल स्थित माप स्तंभ से दूरबीन द्वारा जांच करते थे छत खुली होने का कारण यह भी बताया गया है कि इससे सितारों की गति भी देखी जाती थी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड से यह प्रमाण थी की भूरी टोरी का केंद्र बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन शासन और स्थानीय लोगो की उदासीनता के चलते अब सिर्फ पत्थर की दीवारों का खंडहर मात्र बचा है।

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