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घाटी में मनोज सिन्हा के समक्ष चुनौतियां

– डॉ. रमेश ठाकुर

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने के बाद भी घाटी के हालात चुनौतीपूर्ण हैं। बीते एक साल में केंद्र सरकार ने वहां कई प्रयोग किए, सेना से रियाटर्ड लोगों को कमान सौंपी, कुछ शीर्ष सियासी लोगों की भी नियुक्तियां हुई। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पीएम की विशेष नजर जम्मू-कश्मीर पर बनी हुई है, किसी भी सूरत में उसकी फिजा अन्य राज्यों की तरह करने को वे संकल्पित हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अपने बेहद भरोसेमंद नेता को उप-राज्यपाल के रूप में वहां तैनात किया।

घाटी की वादियों में इस समय भी तमाम चुनौतियाँ हैं। उनसे मुकाबला करने के लिए नए उप-राज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा की नियुक्ति की गई है। सिन्हा देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की गाजीपुर सीट से सांसद रहे हैं और मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रेलमंत्री थे। सबसे बड़ी खासियत उनकी साफ छवि है, इसी वजह से वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद लोगों की कतार में हमेशा शीर्ष पर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मनोज सिन्हा का राजनीतिक करियर शुरू से गैर-विवादित रहा है बल्कि उनका सांसद, मंत्री व प्रशासक के रूप में कार्य का रिकॉर्ड बेहतरीन रहा।

गौरतलब है कि कश्मीर में लंबे समय से राजनीतिक गैप का अभाव था। वहां एक कुशल राजनीतिक नेतृत्व की दरकार है, जिसकी भरपाई शायद मनोज सिन्हा के पहुंचने से पूरी हो। उनसे पहले सत्यपाल मलिक और जीसी मुर्मू ने भी अपने स्तर से जम्मू-कश्मीर में बदलाव के लिए कोशिशें की। लेकिन मनोज सिन्हा में ‘सबका साथ सबका विकास’ स्लोगन को पूरा करने का जबर्दस्त मादा है, उनकी सूझबूझ काबिले तारीफ है। उनकी भाषा की मधुरता सामने वाले को अपना बनाने पर विवश करती है। दरअसल, घाटी के मौजूदा समय में ऐसे ही व्यक्ति की जरूरत है। जबसे वहां समूची राजनीतिक व्यवस्था का रिफ़ॉर्म हुआ है तभी से सियासी बिखराव जैसा माहौल है।

घाटी में दुर्दांत सोच की फसलों को उगाने वालों की कमी नहीं रही। सालभर पहले तक चारों ओर जिहादियों का झुंड दिखता था। चेहरे पर नकाब बांधे पत्थरबाजी करते थे। चौक-चौराहों पर खुलेआम ख़ूनख़राबा करते थे। स्थानीय लोगों का जीना मुश्किल किया हुआ था। लेकिन आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद पाकिस्तानपरस्त और हुर्रियत की सोच पर प्रतिबंध लगते ही स्थिति में कुछ सुधार हुआ। वहां अब अमन-शांति की हवा बहनी शुरू हो गई है। इस गति को और बल देने के लिए केंद्र सरकार पूरी तरह संकल्पित है। मनोज सिन्हा को एलजी के रूप में जम्मू-कश्मीर भेजा जाना उसी कड़ी का अहम हिस्सा है। मनोज सिन्हा की छवि सौम्य भाषा में बोलने वाले राजनेता की रही है, उन्होंने कभी कोई गलत बयानबाज़ी नहीं की। सिन्हा ने पूर्व गवर्नर जीसी मुर्मू की जगह ली है। मुर्मू को दिल्ली बुलाया गया है। संभवतः उन्हें कैग प्रमुख बनाया जाएगा। क्योंकि अगले माह मौजूदा कैग चीफ राजीव महर्षि रिटायर हो रहे हैं।

मनोज सिन्हा के उप-राज्यपाल बनाने के बाद कइयों के मन में एक सवाल कौंध रहा है। सवाल ये है कि सिन्हा का अभी सक्रिय राजनीति में होना भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद होता। लेकिन ये भी तय है, वह सक्रिय राजनीति में फिर से वापसी करेंगे और 2024 का लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे? जम्मू-कश्मीर को फिलहाल तत्काल एक ऐसे राजनेता की जरूरत है, जिसके पास प्रशासनिक अनुभव रहा हो जिससे वह प्रदेश के बिगड़े हालात को पटरी पर ला सके। इस लिहाज से मनोज सिन्हा बिल्कुल सटीक और फिट बैठते हैं।

नेता पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का भरोसा कायम रहे तो वापसी ज्यादा मुश्किल नहीं। ऐसे उदाहरण कांग्रेस में अनेक हैं, जब राज्यपाल बनने के बाद उनके नेताओं ने सक्रिय राजनीति में वापसी की। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह पंजाब के राज्यपाल बनने के बाद फिर से राजनीति में आए थे। वहीं, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित भी केरल की राज्यपाल बनने के बाद दोबारा से सियासत में लौटी। इसमें कोई शक नहीं, इस कतार में कभी मनोज सिन्हा भी शामिल होंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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