भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

आकाशवाणी के मशहूर अनाउंसर अनिल मुंशी के इंतक़ाल से अफसोस की लहर

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।

एक सौ तीन दशमलव पांच मेगाहट्जऱ् पर विविध भारती के भोपाल केंद्र से मैं आपका ‘ध्वनि मित्रÓ अनिल मुंशी बोल रहा हूं… ये आवाज़ अब आपको भोपाल आकाशवाणी पे कभी सुनाई नहीं देगी। पिछली रात अनिल मुंशी चल बसे। वो क़दीमी बर्रुकट भोपाली और भोपाल आकाशवाणी के हर दिल अज़ीज़ आउंसर थे। महज 54 बरस के अपने साथी के अचानक इंतक़ाल की ख़बर जिसने भी सुनी वो अफसोस में डूब गया। अनिल मुंशी भोपाल की अदब, मौसीक़ी और थियेटर की जानी-मानी शख्सियत रही मरहूम श्याम मुंशी साब के छोटे भाई थे। पिछले बरस ही श्याम भाई का कोरोना की वजह से इंतक़ाल हो गया था। अनिल मुंशी गुजिश्ता तकऱीबन 22 बरसों से भोपाल आकाशवाणी के सीनियर आउंसर थे। वो रेडियो पे अपना तार्रुफ़ ‘मैं आपका ध्वनि मित्र अनिल मुंशी बोल रहा हूं…Ó इस जुमले से देते। उन्होंने आकाशवाणी के कई ड्रामों में भी अपनी आवाज़ दी। मालूम हो के करीब दो हफ्ते पेले अनिल भाई को दिल का दौरा पड़ा तो बंसल अस्पताल में उन्हें दो स्टेंट डाले गए थे। बीती रात घर में उनकी तबियत फिर बिगड़ी तो उनकी शरीके हयात और बेटी अस्पताल ले गए। बताया जाता है कि अस्पताल पहुंचने के पहले ही वो दुनिया-ए-फानी छोड़ चुके थे। अनिल मुंशी की आवाज़ में एक ठहराव था, एक खनक थी।



ये कमाल उन्हें उर्द, हिंदी और अंग्रेज़ी के लबो लहजे की बेहतरीन अदायगी की वजह से हासिल था। वैसे इसकी वजह थी उनकी खानदानी तालिमो तरबियत। मुंशी खानदान पिछले ढाई सौ बरसों से नवाबी दौर के वक्त से भोपाल में बसा हुआ है। इनके दादा मरहूम मुंशी मोहनलाल भोपाल की अज़ीमुश्शान हस्ती रहे। वो अरबी, फ़ारसी, उर्दू, संस्कृत और अंग्रेज़ी के गहरे जानकर थे। अनिल मुंशी के वालिद मरहूम मुंशी सुंदरलाल ने भोपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की बुनियाद रखी थी। उन्होंने जंगे आज़ादी और विलीनीकरण तहरीक में शिरकत करी। लिहाज़ा अनिल मुंशी को शुस्ता उर्दू, फारसी और अंग्रेज़ी का हुनर विरासत में मिला था। आकशवाणी मे अपने काम को ऑफबीट स्टायल में करने के लिए वो हमेशा जाने जाएंगे। अनिल मुंशी साब ने हाल ही में कटारा हिल इलाके में दिलोजान से नया घर तामीर करवाया था। उनकी चाहत थी के नाये साल की इब्तिदा में वो अपने नए घर मे शिफ्ट हो जाएंगे। लेकिन होनी को ये मंज़ूर न था। भोपाल आकाशवाणी के पांच अनाउंसरों का एक ग्रुप ‘आकशवाणी के पंचÓ के नाम से मशहूर है। इन पंचों में अनिल मुंशी के अलावा राजुरकर राज, अरविंद सोनी, पुरुषोत्तम श्रीवास और अमिता त्रिवेदी शामिल हैं। राजुरकर राज साब अपने साथी के जाने से बेहद रंजीदा हैं। रुंधे गले से उन्होंने कहा हम पंचों का खास पंच चला गया। अनिल मुंशी अपने पीछे अपनी शरीके हयात और एक बेटी को छोड़ गए हैं। आज सुबह 11 बजे जब आकाशवाणी कालोनी से अनिल मुंशी अपने आखरी सफर के लिए भदभदा श्मशानघाट के लिए निकले तो उनके साथियों की आंखें नम हो गईं।

हमारे बाद अंधेरा रहेगा महफि़ल में
बहुत चराग़ जलाओगे रौशनी के लिए।

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