भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

साप्ताहिक कॉलम: कही अनकही

विश्वास की जोड़ी… प्रदेशभर के प्रमोटी अफसरों की राह खोजी…
इन्दौर कलेक्टर मनीषसिंह और उज्जैन में अशीषसिंह… दोनों ने ही विपरीत परिस्थितियों में जो परिणाम सरकार तक पहुंचाए… हर मोर्चे पर ताकत और तालमेल के साथ काम करते हुए राजनीति और रणनीति को ऐसा आयाम दिया कि नेता भी इनकी तारीफ करते नहीं थकते और अधिकारी भी दौड़-भाग कर काम को अंजाम देने में पीछे नहीं हटते…दोनों की इस जुगल जोड़ी ने इन्दौर में साथ में काम करते हुए कई प्रयोग किए और कोरोना के साथ ही खराब वित्तीय परिस्थितियों में प्रशासन चलाने में महारत दिखाई। कार्यकुशलता के परिणामस्वरूप ही आशीषसिंह का प्रमोशन उज्जैन कलेक्टर के रूप में हुआ और वहां महामारी के नियंत्रण में समानता नजर आई…उज्जैन इन्दौर से पहले खुला…इलाज में मुस्तैदी आई और व्यवस्थाएं सुधरीं तो इन्दौर में भी कलेक्टर ने राजनीतिक तालमेल के साथ काम करते हुए विपरीत परिस्थितियों में शहर खोलने एवं बढ़ते मरीजों की व्यवस्थाओं के लिए अद्भुत प्रयोग किए…इन दोनों कलेक्टर की कार्यकुशलता से न केवल सरकार के मन में प्रमोटी अफसरों के लिए विश्वास बना, बल्कि दूसरे प्रमोटी अफसरों में भी उच्च पदों की उम्मीद जागी है…

ठंडी पड़ गई माफिया विरोधी मुहिम… पहले माफिया-अब माफ किया
इन्दौर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेशभर में शुरू की गई माफिया विरोधी मुहिम न केवल ठंडी पड़ चुकी है, बल्कि अब अदालती राहतों का दौर भी शुरू हो गया है। प्रशासन जहां कोरोना अभियान में जुटा है तो पुलिस अपराध नियंत्रण में लग गई है। इस कारण गिरफ्तार किए गए लोगों की अपराधी विवेचना और चालान पेश करने में वक्त के चलते वकीली कारगुजारियां अपराधियों को जेल से बाहर करने में जुट गई हैं। वैसे भी प्रशासन ने अधिकांश उन्हीं मुलजिमों को मोहरा बनाया है जो पहले भी जेल में रह चुके हैं या पुलिस डायरी में फरार थे। इसीलिए जो फरार थे वह पूरी तैयारी से गिरफ्त में आए थे और जो पुराने हैं वो वैसे भी कानूनी दांव-पेंच के अनुभवी हैं। इन माफियाओं की माफ किया मुहिम में चुनावी काल भी सहयोगी बन रहा है, क्योंकि मुहिम को लेकर अब राजनीतिक हस्तक्षेप भी समाप्त हो चुका है।

कांग्रेसियों का अपराध जब मुख्यमंत्री करेंगे… तो पुलिस वाले कहां दुबकेंगे…
कार्यालय उद्घाटन के लिए जमा हुए कांग्रेसियों ने भले ही अपने कार्यक्रम को बदलकर प्रणब दा की श्रद्धाजंलि सभा में परिवर्तित कर लिया हो, लेकिन भीड़ जुटाने में नेता तो बच गए… लेकिन कई कार्यकर्ता नप गए…इस छोटी सी बात को भले ही पुलिस वालों ने भाजपाई नेताओं के दबाव में आकर बतंगड़ बना दिया हो, लेकिन चुनौती तब बनेगी जब मुख्यमंत्री और सिंधियाजी मिलकर आने वाले दिनों में बड़ा कार्यक्रम करेंगे। भीड़ जुटाएंगे और लोगों को भी जिमाएंगे…तब पुलिस वाले चेहरा छुपाएंगे…जवाब नहीं दे पाएंगे…

कांग्रेस का सर्वे…बल्ले-बल्ले…
कांग्रेस द्वारा कराए गए सर्वे में अधिकांश सीटों पर जीत और बची-खुची पर टक्कर बताकर कार्यकर्ताओं का हौसला तो बढ़ाया गया है, लेकिन सर्वे के बाद भाजपाई और चौकन्ने हो गए हैं…अपनी बल्ले-बल्ले कराने के चक्कर में कहीं कांग्रेसी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी न मार लें… क्योंकि कांग्रेसी जीत देखकर घर बैठ जाएंगे और भाजपाई अपनी ताकत बढ़ाकर किला लड़ाएंगे…

दयालू दादा का दान… फंस गई तुलसी भैया की जान
सांवेर के दूल्हे भले ही तुलसी भैया हों, लेकिन तोरण की तलवार दयालू दादा, यानी रमेश मेंदोला के हाथों में है…दयालू दादा को बरात जिमाने का इस कदर शौक है कि वह चाहे जहां भोजन-भंडारा खोल डालते हैं… दयालू की यह दया ही तुलसी भैया को भारी पड़ रही है…चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले दयालू दादा सांवेर को जीतने के लिए इस कदर लोगों का पेट भरने और पेट भरकर वोट खींचने में लगे हैं कि तुलसी भैया खाते का हिसाब लगा-लगाकर परेशान हैं… दयालू दादा के लिए यह तो रोज का काम है, लेकिन तुलसी भैया के लिए यह तो बिन बुलाया ब्याह बनता जा रहा है…अब तक चवन्नी में चुनाव सरकाने वाले तुलसी भैया पता नहीं कितने चुनाव का हिसाब इस चुनाव में चढ़ा डालेंगे…हालांकि तुलसी भैया यह कहने में नहीं हिचकते कि दयालू और कृपालु, यानी रमेश मेंदोला और कैलाश विजयवर्गीय की जोड़ी तन-मन और धन से उन्हें जिताने में लगी है।

खनिज का खन्ना… कइयों का गन्ना…
खनिज विभाग के अधिकारी प्रदीप खन्ना का घर लोकायुक्त ने खोद डाला तो गड्ढे में पड़े खन्ना समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या बताएं और क्या छुपाएं…जमाने को भी पहली बार पता चल रहा है कि देश की मिट्टी कितना सोना उगलती है, क्योंकि खन्ना ने जो कुछ कमाया…वह मिट्टी-मुरम से ही कमाया…न केवल घर बनाया, बल्कि ऐश-अय्याशी का हर सामान भी जुटाया…उसकी चकाचौंध पर उसके ही महकमे के साथियों की नजर लग गई…जिन्होंने खन्ना के चूसे गन्ने का राज लोकायुक्त को बताया और उसे ठिकाने लगवाया… हालांकि गन्ने के इस रस को कइयों ने चखा, लेकिन अब छिलके तो खन्ना के ही निकलेंगे…

संकट में सुमित
सरकारी कोविड हॉस्पिटल के कर्ताधर्ता सुमित शुक्ला को लेकर विश्वास का संकट खड़ा हो गया है… दरअसल कलेक्टर मनीषसिंह ने उन पर भरोसा कर एमटीएच के कोविड हॉस्पिटल की जिम्मेदारी सौंपी…लेकिन इन्दौर शहर में हो रही कोरोना मौतों का बड़ा आंकड़ा जहां इसी अस्पताल से निकलकर सामने आता रहा, वहीं एक नर्स की मौत ने इलाज की पोल खोलकर रख दी… जो अस्पताल अपने स्टाफ को नहीं बचा सकता वह दूसरे मरीजों को कैसे बचाएगा…इन सबके बावजूद हालांकि सुमित शुक्ला को डर है कि सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की भी जिम्मेदारी सौंपी गई है… अब वह अस्पताल भी फ्लॉप स्पेशलिटी हॉस्पिटल न बन जाए…

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