खरी-खरी

बुझे हुए चिरागों को जलाकर रोशनी कहां पाओगे… जो अपने है उन्हें भी झुलसाओगे…

चुनाव आते ही शुरू हो गया चुनावी पतझड़…कोई आ रहा है, कोई जा रहा है…लेकिन वही आ रहा है और वही जा रहा है, जो अपना वजूद मिटा चुका है…धूप की तपन में झुलसा चुका है… पेड़ की शाख ने जिसे ठुकरा दिया… धूल में जिसने अपने वजूद को मिटा दिया… आबोहवा जिसके साथ नहीं है…जनता तो क्या नेताओं का जिस पर विश्वास नहीं है, उसे चुनावी मौसम की बयार में फडफ़ड़ाने का मौका मिल रहा है… उसे भी आज खबरों में मुकाम मिल रहा है…कोई भाजपा को छोडक़र कांग्रेस में जा रहा है… कोई कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम रहा है… लेकिन नुकसान केवल भाजपा का ही आंका जा रहा है, क्योंकि वह सत्ता में रहते हुए भी अपनों को संभाल नहीं पा रही है… नेताओं की भीड़ इतनी हो गई है कि संभाले नहीं संभल पा रही है… भाजपा के पास खुद के अपने इतने थे कि गाड़ी में सवार नहीं हो पा रहे थे…कोई लटककर तो कोई चढक़र जैसे-तैसे मुकाम पा रहे थे… उस पर सिंधिया सहित 22 और लद लिए…वो लदे तो लदे उनके दामन से बंधे हजारों अपनी-अपनी उम्मीदों का बोझ कांधे पर लादे भाजपा में चले आए…अब भाजपा अपने संभाले या मुहाजिरों का भाग्य संवारे…अपनी भाषा में मुहाजिर उन्हें कहते हैं, जो मतलब के चलते हाजिर होते हैं…अब दुर्भाग्य यह है कि भाजपा का मतलब निकल चुका है, लेकिन भाजपा में लदने वालों की हाजिरी खत्म नहीं हो रही है…यह बात मुहाजिर भी समझ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस में उनकी हालत गद्दार की तरह है तो भाजपा में बेगानों की तरह…भाजपा भी उन्हें धोया-निचोड़ा की तरह समझ रही है, लेकिन न लपेट पा रही है न फेंक पा रही है और चाह रही है कि खुद ही रुखसत हो जाएं तो ठीक है, वरना उन्हें ठोंकने वाले उनकी अपनी पार्टी में कम नहीं हैं… भाजपा में जहां घमासान है, वहीं कांग्रेस बटोरने में लगी है…हाल ही में भाजपा के बुझे दीपक से कांग्रेस ने अपने घर को रोशन किया…और दीपक की रोशनी से इस कदर दिवाली मनाई, मानो कोई सूरज उनके हाथ लग गया…भाजपा की भीड़ के सारे कुचले कांग्रेस की उम्मीद की गाड़ी में सवार होने को बेताब हैं और कांग्रेस भी दीया-बत्ती लेकर बैठी है…उन्हें किसी के आने से ज्यादा खुशी भाजपा छोडऩे की खबरों से होती है…भाजपा भी इन्हीं खबरों से परेशान है, वरना उसके लिए तो किसी का जाना पिंड छूटा जैसी स्थिति है… क्योंकि जो भी जा रहा है, उसका रस पहले ही वह नोंच चुकी है… अब सोचना कांग्रेस को है कि वह किसे अपनाए, किसे हडक़ाए… कौन है गद्दार, कौन है वफादार… कौन साथ निभाएगा और कौन भाजपा से आकर सेंध लगाएगा…चोट के अनुभवों से जख्मी कांग्रेस को इस बार खरोंच के दर्द से भी परहेज करना चाहिए… जो आए उसे गले लगाए या जो गए हैं उन्हें वापस बुलाए जैसी गलती दोहराने की सजा एक बार फिर जनता के फैसलों पर भारी पड़ सकती है, जिस तरह पिछली बार सत्ता पाकर भी गंवाने पर आंसू बहाना पड़े थे…

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