खरी-खरी

इस सादगी पर कौन ना मर जाए ए खुदा… देश लाशों से पटा पड़ा है और वो कीमत पूछते हैं…

चार सवाल लेकर जाओ… अच्छे बच्चों की तरह पढकऱ आओ… चार दिन बाद जवाब सुनाओ… मरते-पड़ते-गिरते-सिसकते हाथों में लाशें लिए रुआंसा देश जब कल सर्वोच्च न्यायालय की दहलीज पर अपनी मौतों का हिसाब और जान की अमान मांगने पहुंचा तो उसे अपनी उम्मीदों की भी लाश भी उस वक्त कांधे पर उठाकर लाना पड़ी जब अदालत ने चंद बेवजह के सवालातों का पुर्जा थमाकर जिम्मेदारों को विदा कर दिया… बात जिंदगी की हो रही थी… सवाल जान बचाने का था… डॉक्टर, अस्पताल, दवा, ऑक्सीजन और व्यवस्थाओं पर निर्णय थोपे जाने चाहिए थे…लोगों की जिम्मेदारी तय करना थी… सरकार को कटघरे में लाना था… तब बात वैक्सीन और उसकी कीमत पर की जा रही है… आज से ज्यादा आने वाले कल को तरजीह दी जा रही है… बात इतनी सी समझ में नहीं आ रही है कि देश किसी वैक्सीन की कीमत या दवाओं के दाम को लेकर नहीं, बल्कि हाथों में पैसों का अंबार लिए किल्लत और जिल्लत से जूझ रहा है… मनमाने दाम दे रहा है… घर-बार बेचने को तैयार है… अपनों की मौत के लिए सब कुछ कुर्बान है और आप कीमतों के अंतर पर बात कर रहे हैं… किसको कितनी ऑक्सीजन चाहिए… कितनी दे रहे हैं… कब तक देंगे पर बहस कर रहे हैं… सांसों के हिसाब के बजाए कीमतों का एहसास सरकार को करा रहे हैं… दरअसल ना याचिका लगाने वालों के पास कोई सक्षम प्लान था… ना सरकार के पास कोई जवाब… ना अदालतों के पास कोई आदेश था और ना जजों से कोई मांग… सरकार का यह जवाब ही सन्नाटे के लिए काफी था कि ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति की सक्षमता का जवाब देश में कोहराम मचा देगा… लोगों में डर बिठा देगा और अदालतें भविष्य की आशंका को देखकर खामोश हो गई… बात वैक्सीन की कीमतों पर आई और सभा समाप्त हो गई… दरअसल सरकार सुखे कुएं में पानी तलाश रही है… लौटे-लौटे भर पानी कुएँ में डाल रहे हैं… जब प्यास तड़पा रही है… तब कुएं खोदने की जुगाड़ की जा रही है… अब हाल और हालात दोनों साथ छोड़ चुके हैं… वक्त लगेगा… पता नहीं यह तूफान कब थमेगा और जब थमेगा तब तक कई गुलशन उजड़ जाएंगे… अदालत में चार सवालों के जवाब आए ना आए, लेकिन एक सवाल का जवाब इस देश के सरमाएदार कभी नहीं दे पाएंगे… उन लाशों का बोझ कौन उठा पाएगा, जिन्हें चार कांधे नहीं मिल पाए… जिन्होंने जीवनभर आंचल और आसरा दिया… उन्हें बिना चेहरा देख गैरों के हाथों विदा किया… जिस देश को बनाने में अपना सब कुछ दिया वहां ऐसा मिला सिला और किसी को नहीं हे कोई गिला….

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