वॉशिंगटन। यूनाइटेड नेशन (united nation) की महासभा में गत दिवस पाकिस्तान की तरफ से इस्लामोफोबिया पर काबू पाने के लिए 15 मार्च को ‘इंटरनेशन डे टू कॉम्बैट इस्लामोफ़ोबिया’ (International Day to Combat Islamophobia) यानी इस्लामोफ़ोबिया विरोधी दिवस (Anti-Islamophobia Day) मनाए जाने को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव पर जहां पाकिस्तान ने इसका स्वागत किया, वहीं भारत ने इस पर चिंता जताई है।
भारत ने प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि एक विशेष धर्म का डर इस स्तर पर पहुंच गया है कि उसे एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ गई है। हालांकि, तथ्य यह है कि अन्य धर्मों, विशेष रूप से हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और सिखों के खिलाफ भय का माहौल बढ़ रहा है।
पाकिस्तान द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि इस्लामोफोबिया पर प्रस्ताव पारित होने के बाद अन्य धर्मों पर भी इसी तरह के प्रस्ताव पारित किए जा सकते हैं और संयुक्त राष्ट्र एक धार्मिक मंच बन सकता है। इसलिए इस संकल्प को एक उदाहरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। तिरुमूर्ति ने कहा कि “संयुक्त राष्ट्र को ऐसे धार्मिक मुद्दों से दूर रहना चाहिए। ऐसा संकल्प दुनिया को एक परिवार के रूप में देखने के बजाय विभाजित कर सकता है और हमें शांति और सद्भावना के मंच पर एक साथ लाने के बजाय बांट सकता है।”
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 मार्च को इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए पाकिस्तान द्वारा प्रस्तावित एक प्रस्ताव को अपनाया। इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के 57 सदस्यों के अलावा, चीन और रूस सहित आठ अन्य देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया। प्रस्ताव पेश करते हुए संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम ने कहा कि इस्लामोफोबिया एक वास्तविकता है और यह प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसे दूर किया जाना चाहिए।
वहीं यूएन में फ्रांस के स्थायी प्रतिनिधि निकोलस डी रिवेरे ने कहा कि इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने वाला प्रस्ताव सभी तरह के भदभाव के खिलाफ लड़ाई का जवाब नहीं देता है। उन्होंने सवाल किया कि क्या हमें हर धर्म को समर्पित करने के लिए दिनों को तय करने की उम्मीद करनी चाहिए, प्रत्येक वर्ग के विश्वास या गैर-विश्वास के लिए। इन सभी मांगों को पूरा करने के लिए साल में पर्याप्त दिन नहीं हो सकते हैं। भारत की तरह फ्रांस ने भी इस प्रस्ताव चिंता जताई है और किसी खास मज़हब का इंतेखाब करने से मज़हीब अदमे बर्दाश्त के खिलाफ हमारी लड़ाई और भी कमज़ूर होगी।
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