ब्‍लॉगर

तालिबान आर्थिक प्रतिबंधों की जकड़ से निकल पाएगा?

– ललित मोहन बंसल

तालिबान ने बल प्रयोग से अफगानिस्तान की सत्ता हथिया ली। अब उसके सरपरस्त मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अगले कुछ दिनों में देश के राष्ट्रपति भी बन जाएँगे। इससे एशिया और अफ्रीका के जेहादी संगठनों ने खुशी का भी इजहार किया है। तालिबान की इस सफलता पर चीन और विशेषकर पाकिस्तान अत्यंत प्रसन्न है। रूस ने भी आशीर्वाद दे दिया है। चीन ने फिर से कच्चे तेल की सप्लाई शुरू कर दी है। लेकिन तालिबान अमेरिका और नाटो देशों के साथ विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के आर्थिक प्रतिबंधों की जकड़ में आ गया है। मुमकिन है, ये स्थिति उसे आने वाले समय में घुटने टेकने पर विवश कर दे और उसकी बीस अरब की इकॉनमी बीस दिन, बीस सप्ताह अथवा बीस महीनों में मटियामेट हो जाए। युद्ध विश्लेषक ग्राहम स्मिथ का मत है, ‘सामान्य स्थिति का लौटना तालिबान के व्यवहार पर निर्भर करेगा।’

अमेरिका की बहुचर्चित मूडी रेटिंग एजेंसी ने सोमवार को एक रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान के पदार्पण से क्षेत्र में भू राजनैतिक स्वार्थ टकराएँगे, आर्थिक जोखिम बढ़ेंगे और पाकिस्तान में शरणार्थियों के आने से मानवीय अधिकारों की अनदेखी होगी। चीन मित्रतापूर्ण संबंध चाहता है, तालिबान से ट्रेड और कारोबार बढ़ाना चाहता है, पर अपनी शर्तों पर। इसके पीछे चीन के भू राजनैतिक स्वार्थ हैं। वह ‘बिल्ट एंड रोड इनिशीएटिव’ परियोजना के तहत अपने माल की पहुँच सुगम करना चाहता है।

रूस ने भी तालिबान सरकार के गठन की कामना की है, तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान के काबुल पर कब्जे के समय प्रतिक्रिया ज़ाहिर की थी कि आज वह ‘दासता की बेड़ियों से मुक्त हो गया है। चीन को अपने पश्चमी प्रांत शिजियांग में तुर्क़ उईगर मुस्लिम समुदाय के उग्रवादी ‘ईस्ट तुरकिस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ से भय है, तो पाकिस्तान शरणार्थी समस्याओं के साथ तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान से आतंकित है। इसी तरह रूस भी नहीं चाहता कि सेंट्रल एशिया में उज़्बेकिस्तान से तालिबान से संबद्ध आतंकी संगठनों से रिश्ते बने।

बेहतर व्यवहार का दावा : तालिबान के प्रमुख प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद अमेरिकी और पश्चिमी मीडिया से बार-बार आश्वस्त करने में लगे हैं कि आज का तालिबान दो दशक पुराना तालिबान नहीं है। वह खूनखराबे से हटकर बालिका शिक्षा सहित महिलाओं का सम्मान व कामकाज के अधिकार देना चाहता है।

कैसे आर्थिक प्रतिबंध: संयुक्त राष्ट्र सहित अमेरिका और नाटो देशों ने एक आतंकवादी संगठन के रूप में तालिबान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं, तो विश्व बैंक ने एक वैधानिक सरकार की अनुपस्थिति में प्रतिवर्ष निर्धन देश के रूप में अफ़ग़ानिस्तान को दी जाने वाली 4% राशि अर्थात अस्सी करोड़ डालर की रकम रोक ली है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी बल प्रयोग से सत्ता पर काबिज होने तथा एक विधि सम्मत सरकार के गठन की गैरमौजूदगी मे 46 करोड़ डालर देने में असमर्थता ज़ाहिर की है। इसके लिए अमेरिका के जी ओ पी सिनेटरों की शिकायत पर यह निर्णय लिया गया था। यही नहीं, अमेरिका ने भी फेडरल रिजर्व ट्रेजरी से अफगानिस्तान की जमा पूँजी राशि नौ अरब डालर में से एक हिस्से के रूप में 42 करोड़ डालर की रकम रोक ली है। अफ़ग़ानिस्तान की इकॉनमी में करीब बीस डालर की अधिकतर जरूरतें विदेशी आर्थिक मदद से पूरी होती रही हैं।

खर्चा कहाँ से आएगा? अफगान सेना और पुलिस बलों पर अभीतक 5 से 6 अरब डालर प्रतिवर्ष का व्यय था। इसके अलावा सरकारी सेवाओं में काम करने वाले कर्मचारियों, अस्पताल और हेल्थ सेवा, स्कूल और कालेज, सफ़ाई कर्मियों का वेतन तथा परिवहन आदि पर एक बड़ी रकम की जरूरत होती है, जो अभीतक विदेशी आर्थिक मदद पर निर्भर थी। अफगानिस्तान का वैध निर्यात मात्र एक अरब डालर था, तो अवैध अफीम का निर्यात डेढ़ अरब डालर। अवैध निर्यात में तालिबान के लड़ाकों और आदिवासी क्षेत्रों के सरदार हड़प जाते थे। हाँ, तालिबान करों की वसूली में खूब माहिर है। उनके लड़ाके करों की चोरी नहीं होने देते। तालिबान की कोशिश रही है कि वह हर जिले में अपने चार-पाँच बंदूकधारी रखता है और करों की रकम वसूलता है। इसके विपरीत अशरफ गनी सरकार के कर्मचारी ही भ्रष्टाचार में करों के रूप में बड़ी रकम डकार जाते थे। तालिबान चाहे तो अफीम की खेती और उसके व्यापार से चार अरब डालर सकता है, जबकि पहाड़ियों के नीचे दबे एक खरब डालर के मूल्य के खनिज ताँबा, सोना, तेल, गैस, बॉक्साइट, बिजली के वाहनों के लिए रेयर अर्थ, लीथियम, लीड, जिंक, सल्फर और मार्बल आदि खनन कार्य में तुरंत नहीं तो एक दशक बाद बड़ी रकम पा सकता है।

तालिबान के भय से सेंट्रल बैंक के पूर्व गवर्नर अफजल अहमदी के देश छोड़कर भाग जाने, मुद्रा एक्सचेंज सेवाओं में अग्रणी वेस्टर्न यूनियन और मनीग्राम एक्सचेंज सेवाएँ बंद होने के कारण विदेशों से आने वाली डालर की आवक खत्म हो चुकी है। देश में नकदी की नितांत कमी से अफगानी मुद्रा का लोप हो गया है, इससे खाद्य पदार्थों के दाम 50 प्रतिशत बढ़ गए हैं। हेल्थ सेवाएँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, तो दैनिक मजदूरों की मजदूरी का संकट खड़ा हो गया है।

सेंट्रल बैंक सहित देश भर में ज्यादातर कमर्शियल बैंक बंद होने से स्थिति और भी संकटपूर्ण हो गई है। एटीएम खाली हैं। देश में नब्बे प्रतिशत लोग नकदी से कामकाज करते हैं। मात्र दस प्रतिशत अफगानी लोगों के बैंकों में खाते हैं। इस्लामिक हवाला का कारोबार प्रभावित हुआ है। फ़िच सोल्यूशंस की एशिया निदेशक अन्विता बसु ने कहा है कि स्थिति में तत्काल सुधार नहीं हुआ तो इकॉनमी बीस प्रतिशत नीचे जाएगी।

उम्मीदें: तालिबान ने सोमवार को सेंट्रल बैंक और इकानमी में सुधार के लिए हाजी मुहम्मद इदरीस की कार्यवाहक गवर्नर के रूप में नियुक्ति कर दी है। हाजी मुहम्मद को सेंट्रल बैंक के कामकाज का अता-पता नहीं है, पर वह तालिबान के अकाउंट बरसों से संभालते आए हैं। कार्यवाहक गवर्नर इदरीस ने सेंट्रल बैंक और कमर्शियल बैंकों के सुचारू कामकाज के निर्देश दिए हैं।

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