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लॉन्च के कुछ देर बाद ही आसमान में फट गया दुनिया का सबसे बड़ा ‘स्टारशिप’ रॉकेट

नई दिल्ली: स्पेसएक्स (SpaceX) इतिहास रचते-रचते रह गया. मंगल पर इंसानों को ले जाने वाले रॉकेट स्टारशिप (Starship) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है. लेकिन लॉन्चिंग भारतीय समयानुसार (Indian time) 20 अप्रैल 2023 की शाम करीब सात बजे के आसपास की गई. रॉकेट को दक्षिणी टेक्सास (southern texas) में बोका चिका (Boca Chica) स्थित स्टारेबस (Starbase) से छोड़ा गया. लॉन्च के चार मिनट बाद करीब 33 किलोमीटर की ऊंचाई पर रॉकेट फट गया. अब जांच के बाद ही पता चलेगा कि वहां क्या हुआ?

स्टारशिप दुनिया का सबसे बड़ा रॉकेट है. इसकी ऊंचाई 394 फीट है. व्यास 29.5 फीट है. यह रॉकेट दो हिस्से में बंटा है. ऊपर वाला हिस्सा जिसे स्टारशिप कहते हैं. यह अंतरिक्ष में यात्रियों को लेकर मंगल तक जाएगा. इसकी ऊंचाई 164 फीट है. इसके अंदर 1200 टन ईंधन आता है. यह रॉकेट इतना ताकतवर है कि पृथ्वी पर एक कोने से दूसरे तक मात्र एक घंटे के अंदर पहुंचा देगा. यानी इंटरनेशनल ट्रिप 30 मिनट या उससे थोड़े ज्यादा समय में पूरी.

दूसरा हिस्सा है सुपर हैवी (Super Heavy). यह 226 फीट ऊंचा रॉकेट है. जो रीयूजेबल है. यानी यह स्टारशिप को एक ऊंचाई तक ले जाकर वापस आ जाएगा. इसके अंदर 3400 टन ईंधन आता है. इसे 33 रैप्टर इंजन ऊर्जा प्रदान करते हैं. यह स्टारशिप को अंतरिक्ष में छोड़कर वायुमंडल पार करते हुए वापस समुद्र में गिरने वाला था.


सुपर हैवी रॉकेट से अलग होने के बाद स्टारशिप अपनी बदौलत धरती से 241 किलोमीटर ऊपर धरती का लगभग एक चक्कर पूरा करेगा. लॉन्च के 90 मिनट बाद वह प्रशांत महासागर में गिर जाएगा. अगर यह इस दौरान धरती की निचली कक्षा में चला जाता है, तो यह एक बड़ी सफलता होगी. इस रॉकेट में फिलहाल कोई पेलोड नहीं है.

रॉकेट के साथ जाने वाले पेलोड की जगह सिर्फ जानकारियां जमा की जाएंगी. यानी रॉकेट के उड़ान, टेलिमेट्री, नेविगेशन, टेकऑफ-लैंडिंग आदि की जानकारी हासिल की जाएगी. ताकि भविष्य में होने वाले जरूरी बदलावों को पूरा किया जा सके. स्टारशिप नासा के स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) से भी बड़ा है.

बोका चिका से लॉन्च होने के बाद स्टारशिप पूर्व की ओर बढ़ते हुए अंटलांटिक महासागर पार करेगा. हिंद महासागर पार करेगा. इसके बाद प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप के पास समुद्र में गिर जाएगा. भविष्य में इसे जब चांद या मंगल की यात्रा करनी होगी, तब इसे धरती की निचली कक्षा में रीफ्यूलिंग की जरुरत पड़ेगी. स्पेसएक्स इसके लिए धरती की कक्षा में चक्कर लगाने वाला फ्यूल डिपो भी बनाएगा.

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