इंदौर न्यूज़ (Indore News)

20 दिन में 1306 चिताएं जलीं तो 25 दिन में 134 शव दफन


– मुस्लिम इलाकों में कोरोना तो कोरोना, दूसरी बीमारियों पर भी नियंत्रण
– अप्रैल में मुस्लिमों पर कहर तो सितम्बर में हिन्दुओं पर सितम
इंदौर। सितम्बर माह के 20 दिनों में इंदौर के विभिन्न मुक्तिधामों में जहां 1306 चिताएं जलीं तो इसी माह के 25 दिनों में शहर के 8 कब्रिस्तानों में 134 शवों को सुपुर्दे खाक किया गया। इस लिहाज से प्रारंभिक दौर में मुस्लिम इलाकों में कहर ढाने वाले कोरोना को तो मुस्लिम समुदाय ने मात दी ही, सामान्य मौतों की स्थिति भी सुधरी है।
इंदौर शहर में लगभग 20 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है। शहर काजी के अनुसार शहर में 5 से 6 लाख मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। प्रारंभिक दौर में इंदौर शहर ही नहीं, बल्कि देशभर के मुस्लिम इलाकों में कोरोना ने कहर ढाया था। इस दौर में शहर के जिला प्रशासन ने बड़ी सख्ती के साथ मुस्लिम इलाकों के एक-एक घर में कोरोना मरीजों की जांच कर उन्हें अस्पताल पहुंचाया और तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराकर बड़ी तादाद में लोगों को ठीक कर घर भिजवाया। प्रशासन के इस प्रयास के दौरान ही शहर के टाटपट्टी बाखल में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने प्रशासन और डाक्टर की टीम पर पथराव तक किया था, लेकिन उसके बाद कोरोना की गंभीरता को देखते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने प्रशासन के साथ सहयोग करना शुरू किया, क्योंकि प्रारंभिक दौर में अप्रैल माह में ही कोरोना ने मुस्लिम इलाकों में इस कदर कहर ढाया था कि घर-घर में मौतें होने लगी थीं। समाज के लोगों ने प्रशासन से मौतों को इस डर से छुपाया कि उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया जाएगा, लेकिन बाद में प्रशासन ने एक-एक व्यक्ति की जांच कर संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल और परिवार को होटलों से लेकर मैरिज गार्डन तक में पहुंचाकर इलाके को सुरक्षित कर लिया था। प्रारंभिक दौर में किए गए इस उपाय का परिणाम यह है कि पांच माह बाद ही सितम्बर में जहां इंदौर के 9 मुक्तिधामों में केवल 20 दिनों में ही 1306 चिताएं जलीं, वहीं शहर के कब्रिस्तानों में 25 दिनों बाद भी दफन किए गए शवों की संख्या 134 रही, यानी हिन्दुओं के मुकाबले मुस्लिमों की मृत्युदर मात्र 10 प्रतिशत रही। उसका कारण यह है कि मुस्लिम समुदाय में अप्रैल के बाद सभी लोगों में हर्ड इम्युनिटी, यानी कोरोना से लडऩे की एंटीबॉडी निर्मित होती चली गई और वे कोरोना के साथ ही मौतों को भी मात देने में कामयाब रहे।
अप्रैल को छोड़ दें तो शहर के 8 कब्रिस्तानों में 8 माह में 1083 किए सुपुर्दे खाक
शहर के 8 कब्रिस्तानों से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष के जनवरी माह से लेकर सितम्बर की 25 तारीख तक कुल 1943 लोगों को सुपुर्दे खाक किया गया। इनमें अप्रैल माह में ही 715 लोगों की मौत हुई। यदि मौतों के इन आंकड़ों को घटा दिया जाए तो बचे 8 माह में अब तक समाज के 1228 लोग सुपुर्दे खाक किए गए, जबकि सितम्बर माह के 20 दिनों में ही इंदौर के मुक्तिधामों में 1306 चिताएं जलीं। इसी माह के 25 दिनों में 134 मुस्लिमों के शव दफनाए गए। यानी अप्रैल माह ने मुस्लिमों पर कहर ढाया तो सितम्बर में हिन्दुओं पर मौतों का सितम हुआ।
शहर के लिए चौंकाने वाली खबर है कि प्रारंभिक दौर में लापरवाही के लिए मुस्लिमों को कोसने वाले शहर में अब हिन्दू समाज के लोग इस कदर बेपरवाह हो चुके हैं कि अस्पताल तो अस्पताल श्मशानों में भी चिताओं के लिए पहले आओ-पहले पाओ की तर्ज पर कतारें लगी हुई हैं। शहर के अनलॉक होने के बाद मौतों ने अपना रुख इंदौर के हिन्दू बहुल इलाकों की ओर कर लिया है। इन इलाकों में कोरोना के साथ ही इलाज के अभाव में अन्य बीमारियों से मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। सितम्बर के 20 दिनों में कोरोना से ही जहां 312 लोगों की मौत हुई थी, वहीं लगभग हजार लोग अन्य बीमारियों के चलते मारे गए। मुस्लिम समुदाय में घटती मौतों का कारण जहां हर्ड इम्युनिटी रही, वहीं अप्रैल माह के दौरान बड़ी तादाद में लोगों ने संक्रमित होकर एंटीबॉडी बना ली थी। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय में शारीरिक श्रम की बहुलता होने के कारण उनका इम्युन पावर भी स्ट्रांग होता है। जिला प्रशासन द्वारा इसी बात को ध्यान में रखते हुए पिछली बार मुस्लिम इलाकों में ही सीरो सर्वे कराया गया था, ताकि इस बात का पता चल सके कि इन इलाकों में कितने लोगों को कम लक्षण या बिना लक्षण का कोरोना होकर चला गया है और इस सर्वे ने इस बात को साबित भी किया था।
जेसीबी से कर्बें खोदना पड़ीं
अप्रैल माह का आलम यह था कि जहां बाणगंगा कब्रिस्तान में सिर्फ कब्र खोदने के लिए 30 से 35 आदमियों की टीम लगी थी, वहीं चंदन नगर सहित अन्य कब्रिस्तानों में भी कब्रें खोदने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल किया गया।

प्रारंभिक दौर की हर्ड इम्युनिटी अब खत्म होने लगी है… मुस्लिम इलाकों में भी बढऩे लगे हैं कोरोना मरीज
मुस्लिमों की मौतों का प्रतिशत हिन्दुओं के मुकाबले भले ही 10 प्रतिशत रह गया हो, लेकिन शहर काजी इशरत अली ने समाज के लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि प्रारंभिक दौर में कई लोगों को गंवाने के बाद हासिल की गई एंटीबॉडी अब समाप्त होने लगी है, क्योंकि कोरोना से जीतकर शरीर में पैदा की गई इस बीमारी से लडऩे की क्षमता की उम्र 5 से 6 माह ही रहती है। इस कारण एक बार फिर मरीज बढऩे लगे हैं। उन्होंने बताया कि हर दिन उनके पास बीमार लोगों के फोन आते हैं कि उन्हें अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। इसलिए वैक्सीन आने तक सभी लोगों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।

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