ज़रा हटके देश

पृथ्‍वी पर पौधों की 800 प्रजातियां तेजी से हुई विलुप्त, कई पर मंडराया संकट

नई दिल्‍ली। पेड़-पौधे पृथ्‍वी (Earth)का श्रंगार होता हैं। पृथ्‍वी (Earth) पर मौजूद सभी रचनाओं में पेड़ सबसे सुंदर और परिचित हैं। इनसे पृथ्‍वी (Earth) की पहचान है। यहां मौजूद पेड़ों (the trees) की करीब 60 हजार विविध प्रजातियां पृथ्वी के बायोमास का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। प्रकृति (Nature) ने पृथ्वी (Earth) पर दसियों लाख किस्म के जीव-जंतु रचे, बहुतों के बारे में तो हम जानते भी नहीं हैं, लेकिन मानवीय गतिविधियों ने इन्हें भीषण नुकसान पहुंचाया है। इसकी वजह से ये न केवल लुप्त हो रही हैं, बल्कि लुप्त होने की रफ्तार भी तेजी से बढ़ी है।

अगर हम 18वीं सदी से अब तक की बात करें तो दुनिया से पेड़-पौधों की 800 प्रजातियां खत्म हो चुकी है। हजारों प्रजातियां ऐसी स्थिति में आ गईं है कि वो पर्यावरण में कोई योगदान नहीं दे रही हैं। कुछ तो इतनी दुर्लभ हो चुकी हैं कि वो प्रजनन भी नहीं कर पा रहे हैं। इंग्लैंड के रॉयल बॉटैनिक गार्डेन्स के वैज्ञानिकों का मानना है पेड़-पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने का सही रिकॉर्ड न हो पाना भी एक मुसीबत है। अगर डिटेल में स्टडी करेंगे तो विलुप्त होने वाले पेड़-पौधों की संख्या बहुत ज्यादा है।

जानकारी के लिए बता दें कि ये पृथ्वी के वन आवरण के वितरण, संयोजन और संरचना को नियंत्रित करने के अलावा पारिस्थितिकी सेवाएं भी मुहैया कराते हैं। पृथ्वी की जैव विविधता के विकास के साथ-साथ पेड़, जीवों व वनस्पतियों को आवास उपलब्ध कराने और भोजन, ईंधन, लकड़ी, औषधीय उत्पादों व अन्य चीजों के जरिए जीवन व आजीविका को बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

धरती की संवहनीयता को बनाए रखने में पेड़ों के महत्व को लेकर काफी जागरुकता के बाद भी इनकी विविधता, वितरण और संरक्षण की स्थिति को लेकर लंबे समय से हैरान कर देने वाली दूरी बनी हुई है। इस दूरी को भरने के प्रयास के तौर पर सितंबर 2021 में पहली बार “द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज” रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट का प्रकाशन यूके में वनस्पति संरक्षण पर काम करने वाली गैर लाभकारी संस्था बोटैनिक गार्डेंस कंजरर्वेशन इंटरनेशनल (बीजीसीआई) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर्स स्पीशीज सर्वाइवल कमिशन (आईयूसीएन/एसएससी) के तहत काम करने वाले वैज्ञानिकों और संगठनों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क ग्लोबल ट्री स्पेशलिस्ट ग्रुप ने किया है।


इतनी विविधता है देश में
यूनाइटेड नेशन कन्वेशन ऑन बॉयोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) जैविक विविधता का पूरा डाटा जुटाता है। भारत भी देश में मौजूद जैविक विविधता की सूची लगातार अपडेट करता है। पिछली रिपोर्ट के अनुसार यह है देश की स्थिति।
– 45 हजार प्रजातियां हैं पेड़-पौधों की
– 91 हजार जीवों की प्रजातियां
– 8.58 प्रतिशत स्तनधारियों की प्रजातियां
– 13.66 प्रतिशत पक्षियों की प्रजातियां भी
– 7.91 प्रतिशत उभयचर और 4.66 प्रतिशत मछलियां
– 11.80 प्रतिशत का आंकड़ा पेड़-पौधों के मामले में

यह रिपोर्ट दुनियाभर में लुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे 58,497 पेड़ों की प्रजातियों पर 5 साल तक किए गए गहन अध्ययन का परिणाम है। रिपोर्ट का सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि दुनियाभर में 17,510 (30 प्रतिशत) पेड़ों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं, जिनमें से 142 पहले ही जंगलों में विलुप्त हो चुकी हैं। अगर इन आंकड़ों में किसी ऐसी प्रजाति को शामिल किया जाए, जिसके बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है (रिपोर्ट में “अपर्याप्त डेटा” के तौर पर वर्गीकृत) तो यह अनुमान बढ़कर 38.1 प्रतिशत हो जाता है। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में समशीतोष्ण क्षेत्रों की तुलना में सबसे ज्यादा वृक्ष विविधता है। अधिकतर प्रजातियां नियोट्रोपिक्स (40.4 प्रतिशत) में स्थित हैं, इसके बाद इंडो-मलाया क्षेत्र (23.5 प्रतिशत), एफ्रोट्रोपिक्स (15.8 प्रतिशत), ऑस्ट्रालेशिया (12.7 प्रतिशत), पेलीआर्कटिक क्षेत्र (10.2 प्रतिशत), नीआर्कटिक और ओशिनिया (प्रत्येक में 3 प्रतिशत से कम) का नंबर आता है (देखें, वैश्विक हरित क्षेत्र,)।

गंभीर रूप से लुप्तप्राय सूची में कुछ महत्वपूर्ण स्थानिक प्रजातियों में से इलेक्स खासियाना, आदिनांद्रा ग्रिफिथआई, पायरेनेरिया चेरापुंजियाना और एक्विलरिया खासियाना शामिल हैं, जो पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में पाई जाती हैं। इसके साथ ही केरल की अगलिया मालाबेरिका, डायलियम ट्रैवनकोरिकम, सिनामोमम ट्रैवनकोरिकम व बुकाननिया बरबेरी भी इस सूची में हैं, जबकि तमिलनाडु की बर्बेरिस नीलगिरिएंसिस व मेटियोरोमिर्टस वायनाडेन्सिस के साथ ही अंडमान क्षेत्र की शायजिअम अंडमानिकम और वेंडलांडिया अंडमानिकम शामिल हैं। इन प्रजातियों से न सिर्फ लकड़ी, अगर और ईंधन के जरिए आर्थिक लाभ मिलते हैं, बल्कि इनका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व भी है। ये प्रजातियां देश के अक्षय वनों का अभिन्न अंग हैं।

इनमें मसाले (जैसे इलिसियम ग्रिफिथआई), इत्र (एक्वीलेरिया मैलाकेंसिस), दवा (कमिफोरा वाइटी), लकड़ी (मैगनोलिया लैनुगिनोज), फल (एलियोकार्पस प्रुनिफोलियस), सजावटी उत्पाद (रोडोडेंड्रोन वाटी) और ईंधन (उल्मस विलोसा) का उत्पादन करने वाली प्रजातियां शामिल हैं। इन प्रजातियों के लिए प्रमुख खतरों में वनों की कटाई, आवास को क्षति, लकड़ी और गैर-लकड़ी उत्पादों के लिए अत्यधिक दोहन, कृषि गतिविधियां और विदेशी कीटों और बीमारियों का प्रसार शामिल हैं। अत्यधिक दोहन ने देश के कुल वन क्षेत्र को काफी हद तक बदल दिया है। दुर्भाग्य से बहुत से लोग पेड़ों को “पैसे कमाने की मशीन” के रूप में देखने लगे हैं।

यहां तक कि कई सदियों तक वैज्ञानिकों ने सिर्फ 537 पौधों का ही दस्तावेजीकरण किया था। उनका रिकॉर्ड बनाया गया। पिछले 22 सालों के बीच में वैज्ञानिकों ने हर साल 2100 से 2600 नई प्रजातियों का कैटालॉग बनाना शुरू किया। सिर्फ इतना ही नहीं ऐसी प्रयोगशालाएं बनाई गईं जहां पर दुर्लभ और विलुप्त हो रहे पौधों को संभाल कर रखा जा सके। उन्हें पनपने का मौका दिया जा सके, लेकिन पेड़-पौधों के खत्म होने से धरती पर नई तरह की आफत आने की आशंका है।

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