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26/11 मुंबई हमला: देविका की गवाही से फांसी पर लटका था कसाब, लेकिन सरकार का यह वादा आज भी अधूरा

मुंबई। 26/11 के आतंकवादी हमलों (Mumbai Terrorist ) के दौरान आतंकवादी की गोली से बची मुंबई की 8 वर्षीय बच्ची देविका रोटावन उस दिन को याद कर आज भी सहम जाती है। उसे सरकार द्वारा किए गए अधूरे वादे को लेकर भी मलाल है। सरकार ने उससे घर उपलब्ध कराने का वादा किया था, लेकिन यह आज तक अधूरा ही है। मुंबई (Mumbai) 26-11 हमले में शामिल 10 आतंकवादियों में से सिर्फ अजमल आमिर कसाब (Ajmal Amir Kasab) को ही जीवित पकड़ा गया था। बाकी को ढेर कर दिया गया था। इस मामले में लगभग चार साल तक केस चला। 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई थी। इस पूरे केस में देविका (Devika) एक प्रमुख गवाह थी।

कसाब ने नौ अन्य भारी हथियारों से लैस पाकिस्तानी आतंकवादियों (Pakistani terrorists) के साथ देश की आर्थिक राजधानी में लगभग 60 घंटे तक खूनी तबाही मचाई। इस हमले में 60 घंटे में कुल 166 लोग मारे गए थे। नौ हमलावर भी मारे गए। 300 लोग घायल भी हो गए।

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (Chhatrapati Shivaji Maharaj Terminus) भवन के अंदर भीड़ पर जब कसाब और उसके साथी ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं, तो देविका भी वहीं थी। 300 लोगों के साथ वह भी इस हमले में घायल हो गई थी।


देविका अब 23 साल की हो चुकी है। देविका को आज भी स्पष्ट रूप से याद है कि कैसे वह अपने पिता नटवरलाल रोटावन के साथ पुणे जाने के लिए स्टेशन पर इंतजार कर रही थी।वह अपने भाई भरत और उसके परिवार से मिलने के लिए जा रही थी।

देविका ने कहा, “तभी हमने गोलियों की आवाजें सुनीं। लोग चीखने-चिल्लाने लगे और इधर-उधर भागने लगे। हम भी वहां फंस गए। दूसरों की तरह भागने की कोशिश की, लेकिन गिर गई।” देविका बताती है कि तभी उसने दाहिने पैर में दर्द महसूस किया। पैर सुन्न पड़ चुका था। उसने खून बहता हुआ देखा। उसे भी गोली मार दी गई थी। देविका ने आगे कहा, “जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मैं वहीं गिर गई और अगले दिन ही होश में आई।”

उसे किसी तरह पास के सर जेजे. अस्पताल ले जाया गया और फिर अगले दिन उसके दाहिने पैर में लगी एके -47 की गोली को निकालने के लिए उसकी बड़ी सर्जरी की गई।

आपको बता दें कि देविका के पिता भी अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाहों में से एक थे। उन्होंने कहा, “देविका तब बहुत छोटी थी। उसने सिर्फ दो साल पहले अपनी मां सारिका को खो दिया था।”

सर्जरी के बद देविका राजस्थान के पाली जिले के अपने पैतृक दांव सुमेरपुर चली गई, जहां पूरे परिवार ने उसकी अच्छी देखभाल की। हालांकि, उसे जल्द ही कसाब के खिलाफ अदालती कार्यवाही में भाग लेने के लिए मुंबई बुलाया गया। जून 2009 में देविका और उसके पिता की गवाही ने कसाब के ताबूत में अंतिम कील ठोक दी। भागने के सभी कानूनी मार्गों को समाप्त करने के बाद आखिरकार उसे फांसी पर लटका दिया गया।

देविका दिसंबर में 24 साल की हो जाएगी। उसने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद स्नातक की पढ़ाई कर रही है। उसे अगले साल नौकरी की उम्मीद है। देविका के परिवार को मुआवजे के तौर पर कुल 13.5 लाख रुपये मिले। रोटावांस ने कहा कि शुरू में परिवार को मुआवजे के रूप में लगभग 3.5 लाख रुपये मिले। इसके बाद चिकित्सा सहायता में 10 लाख रुपये मिले।

उन्होंने कहा, “हमें ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत एक घर देने का वादा किया गया था, लेकिन पिछले 14 वर्षों से अभी तक आवंटित नहीं किया गया है।”

उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों के दरवाजे लगतार खटखटाए हैं और कानूनी उपाय भी तलाश रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीएम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की बात करते हैं, लेकिन देविका की चिंता कहां है?

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