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पुरानी और नई कर व्यवस्था में क्या है अंतर, कौन सी बेहतर? जानिए किसमें है ज्यादा फायदा

नई दिल्ली (New Delhi)। आम बजट 2023-24 (Budget 2023) में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) द्वारा इनकम टैक्स (Income Tax) से जुड़े नियमों में बदलाव की घोषणा करने के बाद से ही बहुत-से नौकरीपेशा लोग असमंजस में हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि पुरानी टैक्स व्यवस्था (tax regime) बरकरार है या नहीं, नई टैक्स व्यवस्था में बदलाव का अर्थ क्या है, और इन बदलावों का उनकी कर देयता पर क्या असर होगा, या आसान शब्दों में कहें, तो उन्हें इनकम टैक्स में किए गए नए बदलावों से कितना लाभ होगा. आज हम आपके लिए आपके सभी सवालों के जवाब तो लाए ही हैं, हम आपको यह भी बताएंगे कि नई दरों से कितनी कमाई (earnings) करने वाले को कितनी बचत होगी.

सबसे पहले, यह समझना ज़रूरी है कि वित्तमंत्री ने नई टैक्स व्यवस्था को डीफ़ॉल्ट व्यवस्था घोषित (declared default) किया है, लेकिन पुरानी व्यवस्था को खत्म नहीं किया गया है, और अब भी करदाताओं द्वारा चुनने के लिए पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प मौजूद रहेगा. सो, लाइफ इंश्योरेंस, पीपीएफ, बच्चों की स्कूल फ़ीस आदि के अलावा होम लोन पर ब्याज, नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) या मकान किराया भत्ता जैसी छूट हासिल करते रहने के इच्छुक लोग पुरानी टैक्स व्यवस्था में ही पुरानी दरों पर ही टैक्स जमा कराते रह सकेंगे.

हम आपको पुरानी टैक्स व्यवस्था, मौजूदा नई टैक्स व्यवस्था और बुधवार को प्रस्तावित नई टैक्स व्यवस्था में लागू होने वाले टैक्स का आकलन कर टेबल के ज़रिये आपको यह भी समझाएंगे कि किस प्रणाली में रहने पर आपको कितना टैक्स अदा करना होगा.

हमने चार ऐसे नौकरीपेशा लोगों के उदाहरण लिए हैं, जिनकी आय क्रमशः 7 लाख रुपये वार्षिक, 10 लाख रुपये वार्षिक, 12 लाख रुपये वार्षिक तथा 15 लाख रुपये वार्षिक हैं. ये लोग इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80सी के तहत मिलने वाली छूट, मकान किराया भत्ते के तौर पर मिलने वाली छूट, NPS के अंतर्गत ली जाने वाली छूट आदि भी हासिल करते हैं. तो किस व्यवस्था में किसे कितना टैक्स देना होगा, इन तीन टेबलों से समझें.

 

पुरानी टैक्स व्यवस्था वाली पहली टेबल में आप देखेंगे, चारों लोगों को मानक कटौती का लाभ मिला है, धारा 80सी के तहत भी चारों ने ही अधिकतम बचत की है, चारों ही लोगों ने NPS में भी 50,000 रुपये का निवेश किया है, और मकान किराया भत्ता या होम लोन पर चुकाए गए ब्याज पर भी छूट हासिल की है.

पहली टेबल (पुरानी टैक्स व्यवस्था) में 7 लाख रुपये वार्षिक आय वाले पहले शख्स की करयोग्य आय सभी तरह की छूट पाने के बाद 3,70,000 रुपये रह गई है, जिस पर उसकी कर देनदारी 6,240 रुपये होने के बावजूद इनकम टैक्स एक्ट की धारा 87ए के तहत मिली छूट के बाद शून्य हो गई है. कुल 4 लाख रुपये की कटौतियों और छूट के बाद 10 लाख रुपये वार्षिक आय वाले दूसरे शख्स की करयोग्य आय 6,00,000 रुपये रह जाती है, जिस पर उसे 33,800 रुपये का इनकम टैक्स चुकाना होता है. इसी प्रकार, छूट और कटौतियों को समाहित करने वाली पुरानी व्यवस्था में 12 लाख रुपये और 15 लाख रुपये प्रति वर्ष कमाने वाले लोगों को भी क्रमशः 75,400 रुपये और 1,06,600 रुपये का इनकम टैक्स देना होगा.


दूसरी टेबल (मौजूदा नई टैक्स व्यवस्था) में भी इन्हीं चार लोगों के देय आयकर की गणना की गई है, लेकिन इस व्यवस्था में उन्हें किसी प्रकार की छूट या कटौती उपलब्ध नहीं है, सो इन चारों की देनदारी क्रमशः 33,800 रुपये, 78,000 रुपये, 1,19,600 रुपये और 1,95,000 रुपये हो जाती है.

तीसरी टेबल (प्रस्तावित नई टैक्स व्यवस्था) में फिर एक बार इन्हीं चार लोगों के इनकम टैक्स की कैलकुलेशन की गई है, लेकिन इस बार इन्हें मानक कटौती का लाभ मिलेगा, और इसके अलावा धारा 87ए की छूट सीमा बढ़ाए जाने व नई दरों की बदौलत 7 लाख रुपये वार्षिक आय वाले शख्स को एक बार फिर कोई कर नहीं देना होगा. 10 लाख रुपये वार्षिक आय वाले शख्स को 54,600 रुपये चुकाने होंगे, 12 लाख रुपये वार्षिक आय वाले शख्स को 85,800 रुपये इनकम टैक्स के रूप में देने होंगे, और 15 लाख रुपये वार्षिक आय वाले शख्स को कुल 1,45,600 रुपये का टैक्स अदा करना होगा.

सो, अब आप देख सकते हैं कि अगर आप कटौतियों और छूट के मद में 2.5-3 लाख रुपये से ज़्यादा की छूट हासिल कर रहे हैं, तो पुरानी टैक्स व्यवस्था में बने रहने में आपको लाभ है, वरना फायदा नई टैक्स व्यवस्था को अपना लेने में ही है.

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