
नई दिल्ली । जर्मन राजदूत डॉ. फिलिप एकरमैन (German Ambassador Dr. Philipp Ackermann) ने आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में प्राकृतिक खेती (natural farming) की एक अनोखी पहल पर अनुभव साझा किया। उन्होंने इसे ‘कूटनीति में आज का टूल’ बताते हुए सराहना की। फिलिप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, ‘जर्मन विकास बैंक KFW ने स्थानीय महिलाओं को गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल कर मिट्टी को उर्वर बनाने और पौधों की सेहत सुधारने में सहायता मुहैया कराई।’ राजदूत ने महिलाओं की ओर से गोबर मिश्रण तैयार करने की तस्वीरें भी साझा कीं, जिसमें पारंपरिक साड़ी पहने महिलाएं जमीन पर बैठकर विभिन्न सामग्रियों को मिलाती नजर आ रही हैं। उन्होंने इसे प्रभावशाली बताते हुए कहा कि गोबर और गोमूत्र के ऐसे उपयोग देखकर वे चकित हैं।
यह पहल आंध्र प्रदेश में महिलाओं को सशक्त बनाने और पर्यावरण-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने का हिस्सा है, जो सदियों पुरानी भारतीय परंपराओं पर आधारित है। जर्मन सहायता से महिलाएं प्राकृतिक उर्वरक तैयार कर रही हैं, जो रासायनिक खादों का विकल्प प्रदान करता है। राजदूत की इस पोस्ट पर इंटरनेट यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। इसमें कुछ ने इसे सदियों पुरानी भारतीय परंपरा बताया, जबकि अन्य ने गायों की सुरक्षा और पूंजीवाद से जोड़कर टिप्पणियां कीं। यह पहल भारत-जर्मनी संबंधों में विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की मजबूती को दर्शाती है।
प्राकृतिक खेती पर जोर देने की जरूरत
बता दें कि प्राकृतिक खेती को जैविक खेती या जीरो-बजट खेती के रूप में भी जाना जाता है। यह एक ऐसी कृषि पद्धति है जो रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और कृत्रिम संसाधनों के इस्तेमाल के बिना प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर खेती करने पर जोर देती है। यह तरीका मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरण संरक्षण और किसानों की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। भारत में प्राकृतिक खेती को सुभाष पालेकर जैसे कृषि विशेषज्ञों ने लोकप्रिय बनाया है। यह आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है, जिसे पूरे देश में फैलाने की जरूरत है।
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