विदेश

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने बताई सच्चाई, तिलमिलाए इमरान खान ने उठाया ये कदम

इस्लामाबाद। अफगानिस्तान (Afghanistan) के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) ने तालिबान के मुद्दे पर पाकिस्तान (Pakistan) को बेनकाब क्या किया, इमरान खान (Imran Khan) गुस्से से तिलमिला गए। इस तिलमिलाहट में उन्होंने पाकिस्तान में अफगानिस्तान के राजदूत को तलब किया और अपनी भड़ास निकाल दी। हालांकि, वह खुद भी जानते होंगे कि अशरफ गनी ने जो कहा, उसमें गलत कुछ भी नहीं है। पाकिस्तान लगातार अफगान को अशांत करने की कोशिश करता रहा है और यह बात कई मौकों पर सामने आ चुकी है।

आपत्ति पत्र भी किया जारी
पाकिस्तान (Pakistan) ने सोमवार को अफगानिस्तान (Afghanistan) के राजदूत नजीबुल्लाह अलीखेल के समक्ष अपनी नाराजगी व्यक्त की। पाक ने इस संबंध में एक आपत्ति पत्र भी जारी किया। हालांकि विदेश मंत्रालय ने उस बयान का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है, जिसकी वजह से पाकिस्‍तानी सरकार नाराज है। जाहिर है ऐसा करके वह सार्वजनिक तौर पर पुन: अपनी आलोचना नहीं करवाना चाहता होगा।


Trust में कमी का दिया हवाला
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया को बताया कि इस मामले को सरकार ने गंभीरता से लिया है और अफगानिस्तान से कड़ा विरोध व्यक्त किया है। प्रवक्ता ने कहा कि तालिबान के संबंध में जो भी बात कही गई है, उसका कोई आधार नहीं है और ये सभी आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे आरोप लगाने से एक दूसरे के प्रति विश्वास में कमी आती है।

क्या कहा था Ashraf Ghani ने?
इससे एक पहले अफगानी राष्ट्रपति ने सीधे तौर पर कहा था कि पाक ने तालिबान को समर्थन देने के लिए संगठित प्रणाली विकसित कर रखी है। तालिबान के सभी कार्य पाकिस्तान से संचालित होते हैं। यहां तक कि तालिबान की भर्ती भी पाक में की जाती है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान लंबे समय से हक्कानी नेटवर्क से लेकर तालिबान तक सभी आतंकवादी संगठनों का अभ्यारण्य रहा है। ऐसे में अशरफ गनी ने केवल वही कहा, जो सही है, लेकिन इमरान खान को यह सच्चाई पसंद नहीं आई।

इन Cities का लिया था नाम
अफगान के राष्ट्रपति ने कहा था तालिबान का पाक में एक प्रभाव क्षेत्र है। इसके क्वेटा, मीरमशाह और पेशावर शहरों में तालिबान के निर्णय लिए जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तान को ही तालिबान के साथ शांति वार्ता पूरी कराने के लिए आगे आना चाहिए। अफगानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका की अब बहुत सीमित भूमिका है। मुख्य भूमिका क्षेत्रीय स्तर के देशों की है, उनमें पाकिस्तान विशेष रूप से शामिल है।

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