ब्‍लॉगर

अफगानिस्तान संकट और भारत

– ललित मोहन बंसल

अमेरिका के प्रवासी भारतीय समुदाय में एक स्पष्ट धारणा है कि चीन भू राजनैतिक स्वार्थों के वशिभूत है तो व्लादिमिर पुतिन सर्वकालीन महान बनने की चाह में शीतयुद्ध रणनीति के खेल में व्यस्त हैं। ये दोनों ही देश तालिबान की छत्रछाया में पोषित आतंकी गिरोह के ‘डंक’ से आहत तो हैं, पर मिलकर साझी रणनीति में भागीदार बनने से आँख चुराते हैं। सोमवार को 15 सदस्यीय सं.रा. सुरक्षा परिषद में भारत सहित 13 सदस्यों ने अफगानिस्तान की सरजमीं को आतंकी हमलों से रोके जाने के प्रस्ताव पर मतदान हुआ तो इन दोनों देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया पर अपने वीटो अधिकार का उपयोग भी नहीं किया। इसमें पुतिन-शी की मंशा झलकती है। वे आतंकवाद के नाम पर सहमत होते हुए भी एकमत नहीं हैं।

भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी करनी-कथनी में अंतर नहीं है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘काबुलीवाला’ के कथानक में लाखों ‘पश्तून और ताजिक’ समुदाय भारत के गाँवों में अपनेपन का प्रतिबिंब देखते हैं। एक भरोसे की झलक देखते है, जो अन्यत्र नहीं है। तालिबान को सौदागर मिल जाएँगे, एक सच्चे दोस्त के रूप में भारत की जरूरत बनी रहेगी है, जो देशवासियों के बुझे दिलों को रोशन कर सके। यह बात दोहा में तालिबान के राजनैतिक आफिस में डिप्टी कमांडर शेर मुहम्मद अब्बास सटेंकजाई से अधिक कौन जानता है ?

भारत बखूबी परिचित है कि तालिबान-2 के सम्मुख पहले से ज्यादा चुनौतियाँ हैं तो अवसर और संभावनाएँ भी कम नहीं हैं। तालिबान के भू राजनैतिक धरातल पर विकल्प खुले हैं, उनकी सोच में बदलाव आ रहे हैं। वे भले ही तंगदिली से बंधे हैं, न चाहते हुए इस्लाम और शरिया की सोच को बढ़ावा देने के लिए बाध्य दिखाई पड़ रहे हैं। वह पाकिस्तान, सऊदी अरब और यू ए ई से मान्यता लेने के साथ साथ बड़े देशों-चीन, रूस और ईरान सहित इस्लामिक देशों के आगे हाथ फैला रहा है, तो इस्लामिक देशों के अनन्य मित्र और पहले से कहीं सुदृढ़ भारत की महत्ता को अस्वीकार नहीं कर रहा है। उसे ज्ञात है कि अफगानिस्तान के निर्माण में भारत के तीन खरब डॉलर के प्रोजेक्ट कार्यों को नज़रंदाज करना सहज नहीं है, ख़ासतौर पर अफ़ग़ान के नए संसदीय भवन, खुली सड़कें, स्कूली इमारतें, स्वास्थ्य केंद्रों आदि में वास्तु और शिल्पकला की अनूठी छाप दिखाई पड़ती है। ये सब ऐसे यादगार उदाहरण हैं, जो एक सामान्य जन के दिलो दिमाग को झकझोरने के लिए काफी है। अपने देश को आगे ले जाने के लिए तालिबान ने भारत से हाथ बँटाने की इच्छा जताई है।

दोहा (कतर) में तालिबान के राजनैतिक आफिस में डिप्टी कमांडर शेर मुहम्मद अब्बास सटेंकजाई ने खुद ब खुद भारतीय दूतावास में राजदूत दीपक मित्तल से भेंट की। भारतीय राजदूत ने बातचीत में अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों, मानवीय और महिला अधिकारों के प्रति भारत की चिंताएं जताई। जैश ए मुहम्मद और लश्कर ए तैयबा जैसे संगठनों के नापाक इरादों के बारे में स्थिति से अवगत कराया। तालिबानी नेता ने बातचीत में भरोसा दिलाया कि तालिबान सरकार भारत के खिलाफ अपनी सरजमीं किसी आतंकी संगठन को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा। इन्हीं शेर मुहम्मद ने भारत के साथ पूर्व संबंधों को और मधुर बनाने के लिए राजनैतिक, आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाए जाने और दो देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए एयर कारिडोर सेवाओं के वक्तव्य दिए थे। बता दें, यही शेर मुहम्मद चार दशक पूर्व देहरादून डिफेंस अकादमी में शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर चुके हैं।

फिलहाल, भारत ‘प्रतीक्षा करो और निगाहे गड़ाए रखो’ के मोड में है। भारत ने काबुल स्थित अपने मिशन के सभी सहकर्मियों को स्वदेश बुला लिया है। तालिबान को मान्यता देना, अफगानिस्तान में नए निवेश में भागीदार बनना अथवा अपने आधे अधूरे प्रोजेक्ट में हाथ बँटाए जाने पर चुप है। बेशक, सेंट्रल एशियाई देशों-उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिसतान, तुर्कमेनिस्तान आदि देशों में भारत की तुलना में चीन के साथ कई गुणा ज़्यादा कारोबार के मद्देनजर भारत डिजिटल, तापी गैस पाइपलाइन और पर्यटन संबंधों में नए आयाम स्थापित करने को आतुर है, लेकिन सीमापार आतंकवाद और अपने देश की सुरक्षा एवं अस्मिता उसकी प्राथमिकताएँ बनी रहेंगी। भारत निःसंदेह चहबहार बंदरगाह को एक ट्रांजिट केंद्र और फ़्री ट्रेड जोन बनाने के अपने प्रयास से चूकना नहीं चाहेगा।

पिछले दो वर्षों में जम्मू कश्मीर में फिजा बदली है, भारतीय सुरक्षा बलों ने कश्मीर में सीमापार आतंकवाद से निपटने में बहादुरी दिखाई है। इस बात का तालिबान और पाकिस्तान, दोनों को इल्म है। जैश ए मुहम्मद और लश्कर ए तैयबा भले ही काबुल ‘फतह’ पर खुशी जाहिर करे, इन दोनों गुटों को भारत के सुरक्षाकवच का भान है। हिंद प्रशांत महासागर में ट्रेड और सुरक्षा के लिए क्वाड जरूरतें पूरी करता है, तो फिर शंघाई सहयोग परिषद का मौजूदा स्थितियों में उतना औचित्य कहाँ है ? पाकिस्तान खुद कराची, पेशावर और सिंध आदि बड़े शहरों में इस्लामिक स्टेट, टीटीपी सहित अनेक आतंकी गुटों से जूझ रहा है। उसके पास कोई विकल्प नहीं है।

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