इंदौर न्यूज़ (Indore News) ब्‍लॉगर

और विजयवर्गीय ‘कैलाश’ पर चढ़ते चले गए

 


दोस्तों की दुआ… ईश्वर की कृपा… जंग जीतने जैसा हौंसला…
आसान नहीं है सवा सौ करोड़ के देश में 100 बन पाना
बहुत मुश्किल है सवा सौ करोड़ में से सौ बन पाना…अपनी राह खुद बनाना…हर राह से मंजिल पाना…जमाने में इस कदर खो जाना कि हर जगह खुद को पाना…जो कोई सोच न सके उस डगर पर कदम बढ़ा जाना…वक्त की हर चुनौती को मुस्कराते हुए गले लगाना…जो काम कोई न कर सके उसे अंजाम तक पहुंचाना…कैलाश विजयवर्गीय ( Kailash Vijayvargiya) को जो जानते हैं उनके लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वो देश के सौ दिग्गजों में से एक हैं…सूची बनाने वालों ने अपने चयन का चाहे जो नजरिया बनाया हो, लेकिन उनके चाहने वालों की निगाहों में उनकी सरलता, सदाशयता, धार्मिक प्रवृत्ति, समर्पित भावनाएं, जुझारू प्रवृत्ति, संस्कारित चरित्र, पारिवारिक निष्ठा, बड़ों का सम्मान, छोटों पर अधिकार… जैसी अनेक खूबियां उनमें हैं, जो उन्हें सबसे अलग बनाती हैं…इन सबसे बड़ी उनमें मित्रता की पवित्रता एक ऐसी खूबी है, जो उन्हें न केवल बेमिसाल बनाती है, बल्कि उनमें ऊर्जा, चेतना और ऐसी दृढ़ता पैदा कर जाती है कि वो चट्टानों से भी टकरा जाते हैं…वो मित्रता (Friendship) की ऐसी मिसाल कहलाते है जो अपनों के लिए चाहे जो कर जाते हैं…जब मित्रों से जमाना मुंह फेर लेता है तब वो हाथ बढ़ाकर उसे गले से लगाते हैं…उसमें साहस भरकर उसे संघर्ष के लायक बनाते हैं…मामूली पार्षद से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले विजयवर्गीय को पार्टी ने कई बार चुनौतियों में झोंका…इन्दौर के क्षेत्र क्रमांक चार के कांग्रेसी किले में विधानसभा का टिकट देकर क्षेत्र का चरित्र परिवर्तन करने और उसे भाजपा की झोली में डालकर चैन की सांस लेने से पहले ही उन्हें श्रमिक क्षेत्र के ऐसे इलाके में झोंक दिया गया, जहां कांग्रेस (Congress) और कम्युनिस्ट  (Communist) दोनों ही मुकाबले पर खड़े थे, लेकिन विजयवर्गीय ने उस क्षेत्र का ऐसा चरित्र बदला कि पूरा इलाका इस कदर उनका अपना हो गया है कि इलाके के किसी भी घर में शादी हो वंदनवार विजयवर्गीय के घर पर सजते और किसी भी घर में हलका सा भी गम पसरे विजयवर्गीय दौड़ पड़ते…मुफलिसों के इस फक्कड़ इलाकों में विजयवर्गीय ने हौसलों की इस कदर जेब भरी कि हर शख्स विश्वास से मालामाल हो गया…कंधे पर हाथ धरना…सबको अपने बराबर समझना…कहने से पहले दर्द को समझना…मांगने से पहले जरूरत को पूरी करना …इस इलाके के घर-घर की ऐसी सौगात बन गई, जिसके नायक बनकर उभरे विजयवर्गीय ने इलाके में नेतृत्व की शृंखला खड़ी कर दी…सिपहसालार बनाए और हर साथी में समर्पण की वही निष्ठा भरी कि नेता चुनाव में केवल वोट मांगने जाते हैं पर इनके साथी पांच साल साथ निभाते हैं और चुनाव के वक्त घर जाकर सो जाते हैं…मित्रों के लिए चाहे जो करने की धुन में सवार विजवयर्गीय ने जब अपने दाएं हाथ कहे जाने वाले विश्वस्त रमेश मेंदोला (Ramesh Mendola) के लिए पार्टी से टिकट मांगा तो पार्टी ने समर्पण की ऐसी शर्त रखी कि कोई भी राजनीतिज्ञ ऐसी चुनौती स्वीकार नहीं करता, लेकिन उन्होंने हंसते-हंसते अपने साथी को अपने क्षेत्र की विरासत सौंपकर विरोधियों का किला भेदने के लिए महू जाकर लडऩे और जीतने की चुनौती स्वीकार कर ली…विजयवर्गीय की इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए उनके चुनावी चाणक्य मेंदोला अपना चुनाव क्षेत्र मतदाताओं के हवाले कर महू जा पहुंचे और विजयवर्गीय को जितवाकर उन नताओं को पैगाम पहुंचाया कि राजनीति हांसिल करने का नाम नहीं, बल्कि हौसलों का इम्तिहान है…ऐसे ही कई इम्तिहानों से गुजरे विजयवर्गीय चुनौतियों के चाणक्य बनते रहे…पार्टी ने उन्हें हरियाणा में परखा… कांग्रेसी हाथों से हरियाणा छीनकर भाजपा की झोली में डालने वाले विजयवर्गीय पार्टी के मुखिया अमित शाह को इस कदर भा गए कि उन्हें सत्ता से निकालकर संगठन की चौखट थमा दी…पश्चिम बंगाल जैसे एक अनजान प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपकर परिणामों की अपेक्षा करने वाले शाह के पास खोने को कुछ नहीं था, लेकिन पाने के लिए एक राज्य के साथ विजयवर्गीय खुद थे…लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की सीढ़ी में 18 पायदान जोडक़र चमत्कार करने वाले विजयवर्गीय से पार्टी को राज्य जीतने की उम्मीद है…लेकिन पार्टी को इस राज्य में शून्य से शिखर तक पहुंचाने के लिए विजयवर्गीय ने स्वयं को झोंककर, परिवार को छोडक़र, मित्रों से मुंह मोडक़र जिस कदर स्वयं को समर्पित किया उसे देखकर मोदी विरोधी ममता भी हतप्रभ रह गईं…बंगाल को जीतना चीते के मुंह में हाथ डालकर निवाला निकालने जैसा एक ऐसा जतन है, जिससे जूझते विजयवर्गीय कई बार जान पर खेल चुके हैं…हिंसा में फंस चुके हैं…साजिशों में घिर चुके हैं, लेकिन हनुमान प्रतिमा की स्थापना के संकल्प के लिए 16 साल तक उपवास करने वाले महाकाल के भक्त और भजनों के सुरसाधक विजयवर्गीय कई बार विपदाओं को परास्त कर ममता की लंका जला चुके हैं…बंगाल के आने वाले परिणामों से पहले खुद को देश के सौ दिग्गजों में शामिल करने वाले विजयवर्गीय के चहेतों के जेहन में फिर भी एक सवाल कौंधता रहता है कि इतनी ऊंचाई के बावजूद उन्हें सत्ता का सिरमौर क्यों नहीं बनाया जाता…लेकिन विजयवर्गीय मानते हैं कि जितना उन्होंने पार्टी के लिए किया पार्टी ने उससे बढक़र मान दिया…राज्य के सीमित क्षेत्र से निकालकर राष्ट्र की सेवा में सौंपने जैसे विकल्प को विजयवर्गीय सबसे बड़ा पुरस्कार है… वैसे भी विजयवर्गीय चाहते तो बहुत पहले बहुत कुछ पा जाते… लेकिन स्वाभिमानी चरित्र के चलते सब कुछ स्वीकारने जैसी परम्पराओं का निर्वाह न कर पाने का परिणाम यह रहा कि उमा भारती के कटाक्षों को स्वीकार न कर पाने के कारण वो उस वक्त मुख्यमंत्री पद से दूर हो गए, जब उमाजी सत्ता छोडक़र जा रही थीं…उन्होंने ही बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनवाया और जब गौर में अभिमान नजर आया तो अपने मित्र शिवराजसिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बिठवाया…जब गौर को हटाया तो प्रदेश शिवराजजी के हाथों में आया…विजयवर्गीय ने मंत्री बनकर साथ निभाया, लेकिन जब विचारों में मतभेद नजर आया तो सत्ता छोडक़र संगठन की सेवा में खुद को लगाया… अभी भी उनके चहेते उनकी सत्ता में वापसी चाहते हैं, लेकिन वो संगठन की सेवा को सत्ता से बड़ा मानते हैं…एक ऐसा संगठन जो उन्होंने जहां बुलाता है वहां पहुंच जाते हैं…सुबह दिल्ली में बिताते हैं तो शाम को बंगाल में नजर आते हैं…मित्र याद करें तो इन्दौर चले आते हैं… अपनों की खुशी हो या गम वो चाहे जहां अवतरित हो जाते हैं… इसीलिए विजयवर्गीय देश के सौ स्वर्णिम लोगों में जगह पाते हैं…

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