मुंबई । उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (CM Eknath Shinde) के बीच की राजनीतिक लड़ाई (Political Battle) ने न केवल शिवसेना (Not only Shivsena) को विभाजित किया है (Have Divided), बल्कि पार्टी के नेताओं और समर्थकों (Party Leaders and Supporters) के परिवारों को भी (Even the Families) बांट दिया है (Has Divided) । इस राजनीतिक लड़ाई का पहला और सबसे हाई-प्रोफाइल शिकार खुद ठाकरे परिवार ही है जहां उद्धव ठाकरे के बड़े भाई जयदेव की पूर्व पत्नी स्मिता और उनके भतीजे निहार शिंदे गुट में शामिल हो गए हैं। हालांकि जयदेव के बेटे जयदीप उद्धव ठाकरे के साथ हैं। शिवसेना के बंटवारे का असर कई परिवारों पर पड़ता नजर आ रहा है।
शिवसेना के बंटवारे का असर कीर्तिकर परिवार में भी देखा गया जब शिवसेना सांसद गजानन कीर्तिकर इस महीने की शुरुआत में उद्धव का साथ छोड़ शिंदे गुट में शामिल हो गए, जबकि उनके बेटे अमोल अभी भी उद्धव ठाकरे के साथ हैं। नंदुरबार में एक जिला शिवसेना नेता का परिवार भी पार्टी में चल रही इस फूट से नहीं बच सका। शिवसेना के जिला प्रमुख और नंदुरबार जिला परिषद के सदस्य गणेश पराडके ने ठाकरे गुट के साथ रहने का फैसला किया है, जबकि उनके बड़े भाई विजय जो परिषद के सदस्य भी हैं अब प्रतिद्वंद्वी समूह के सदस्य हैं।
इसी तरह ठाणे में पार्टी के मजबूत सहयोगी आनंद दिघे के परिवार पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। आनंद दिघे को शिंदे अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। आनंद दिघे ठाणे जिले के एक शक्तिशाली शिवसेना नेता थे। 2001 में एक सड़क दुर्घटना के बाद उनका निधन हो गया था। अब यह परिवार भी विभाजित होता नजर आ रहा है। उद्धव ठाकरे ने आनंद दीघे के भतीजे केदार को अपनी पार्टी का ठाणे जिला प्रमुख नियुक्त किया है, जबकि उनकी चाची और आनंद दीघे की बहन अरुणा गडकरी पिछले महीने बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में प्रतिद्वंद्वी सेना समूह की दशहरा रैली में नजर आई थी।
मुंबई विश्वविद्यालय के डॉ संजय पाटिल कहते हैं कि भले ही पाला बादल रहे लोग इसे एक वैचारिक आवरण दे रहे हैं, लेकिन ऐसा राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है। व्यावहारिकता और स्थानीय राजनीतिक समीकरण इन फैसलों में भूमिका निभा रहे हैं। राज्य में राजनीतिक स्थिति अभी भी अस्थिर है उनमें से कई एक ही समय में दो नावों में सवार होने की कोशिश कर रहे हैं।
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