खरी-खरी

अंधेरे में तीर… दोनों ही दल मीर…


एक सप्ताह के लिए दोनों ही दलों की सरकार… न नतीजों की दरकार और न मतगणना का इंतजार… कमलनाथजी कमलछाप अधिकारियों की सूचियां बनवा रहे हैं… शिवराजजी तंत्र-मंत्र, पूजा-अनुष्ठान… प्रभाव-दबाव का इस्तेमाल कर अपनी कुर्सी पक्की करने की जुगाड़ लगा रहे हैं… दोनों ही दलों के नेता सवा सौ पार के नारे लगा रहे हैं… हर प्रत्याशी खुद को विधायक मान रहा है… निर्दलीय भी मूंछों पर ताव देता नजर आ रहा है… बराबरी की स्थिति में खुद को सत्ता का निर्णायक मान रहा है… जनता हर प्रत्याशी को बधाई देकर पीछा छुड़ा रही है… चुनाव जीते-न जीते, पर चंद दिनों की विधायकी हर नेता में नजर आ रही है… बड़ी अजीब सी स्थिति से गुजर रहे प्रदेश में इस बार जीत के सारे दावे और अनुमान फेल नजर आ रहे हैं… कांग्रेसी से मिलते हैं तो वो अपना गणित बताता है… भाजपाई लाड़ली बहना का गहना पहनकर अपनी सीटें गिनाता है और सुनने वाला कठपुतली की तरह सर हिलाता है… लेकिन सच यह है कि बेहद ही रोमाचंक नतीजों के इंतजार में बैठी प्रदेश की जनता का मिजाज जब वोटिंग मशीनों से निकलकर बाहर आएगा तो इस बात का फैसला हो जाएगा कि खामोशी की भी जुबां होती है…लोग कहते नहीं, लेकिन हकीकत बयां होती है… कांग्रेस जीती तो यह सच स्वीकार करना पड़ेगा कि जनता ने कांग्रेस को नहीं जिताया, बल्कि भाजपा को हराया है, क्योंकि कांग्रेस ने तो चुनाव लड़ा ही नहीं… खुद कमलनाथ ने बोला कि हमारा चुनाव जनता लड़ेगी और यह सच भी है कि अब कांग्रेस के पास न धनबल है न संगठन की ताकत…न नेताओं की कतार है और न प्रचारकों की पहुंच…इस बार पार्टी नहीं प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा… हार हुई तो उनकी और जीत हुई तो उनकी…लेकिन सरकार बनी तो कांग्रेस की और भाजपा जीती तो यह जीत पार्टी की आक्रामकता, रणनीति, योजना और संगठन की ताकत के साथ खैरातों की सौगात ही होगी…भाजपाइयों ने पैसा लगाया ही नहीं, बहाया है…पार्टी ने चुनाव लड़ा नहीं, धावा बोला है…संगठन ने सक्रियता नहीं दिखाई, एकजुटता भी बताई लेकिन यदि भाजपा चुनाव हारी तो ठीकरा मुख्यमंत्री के सर फोड़ा जाएगा…सरकार पर दाग लगाया जाएगा… कार्यकर्ता और नेताओं की उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया जाएगा… इस बार जीत की जंग में शिवराजजी एक साथ दो मन्नतें मांगते नजर आएंगे… पहले तो पार्टी चुनाव जीते और दूसरी यह कि उनका मुख्यमंत्री का पद कायम रहे… उधर नाथ खेमा खामोश है… नाथ के पास आंकड़े तो हैं, लेकिन जीत का दावा नहीं है… कोई जोश भी नहीं और जश्न भी नहीं है… जीते तो सिकंदर और हारे तो घर के अंदर… पूरे चुनाव में हैरानी-परेशानी यह रही कि कमलनाथ योजना बनाते थे और शिवराज इक्का दागते थे… हजार रुपए की लाड़ली बहना के मुकाबले कमलनाथ 1500 का नारी सम्मान लाए तो शिवराज ने बहनों को तीन हजार की लोरी सुना दी और 1250 की राखी भी बंधवा ली… 500 की गैस टंकी लाए तो शिवराज ने साढ़े 400 में बुकिंग कर डाली… इधर कमलनाथ योजना लाते, उधर शिवराज पलीता लगाते तो नाथ ने खामोशी की योजना बना ली… यह खामोशी अब भी बरकरार है… बस 3 दिसम्बर का इंतजार है… या तो खामोशी गूंज बनेगी या फिर खामोश ही रहेगी….

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