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लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर फिर से सियासी मसला, प्राण प्रतिष्ठा के न्योते पर फंसा विपक्ष…

नई दिल्‍ली (New Dehli) । अयोध्या में राम मंदिर अटूट आस्था का विषय है. एक ऐसी आस्था, जिसे श्रद्धालु सदियों तक कायम रखते रहे, तब भी जब मंदिर नहीं बना था. मंदिर को लेकर राजनीति भी होती रही है. बीजेपी अपने घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाती रही है. अब जब मंदिर बन रहा है तो इंडिया अलायंस के नेता न्योता मिलने के बावजूद कार्यक्रम में शामिल होने पर फैसला नहीं ले पा रहे हैं.

अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का वक्त नजदीक आ गया है. राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से अतिथियों को न्योता दिया जा रहा है. इन न्योतों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बयानबाजी भी तेज हो गई है. जिन दलों और नेताओं को न्योता दिया गया है, वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि कार्यक्रम में जाना है या नहीं? कुछ नेता तो स्पष्ट रूप से इंकार कर चुके हैं और बीजेपी पर राजनीतिकरण का आरोप लगा रहे हैं. यानी लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर फिर से सियासी मसला बनता जा रहा है. जानिए इंडिया अलायंस में शामिल पार्टियों का राम मंदिर में जाने को लेकर अभी तक क्या रुख है?


बता दें कि अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान है. कार्यक्रम के लिए कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से लेकर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और एचडी देवगोड़ा तक का निमंत्रण भेजा गया है. ट्रस्ट ने करीब 6 हजार लोगों को निमंत्रण पत्र भेजा है. लेकिन अब विपक्ष धार्मिक कार्यक्रम का राजनीतिकरण का आरोप लगाकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है. चूंकि कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं ऐसे में ये मुद्दा सियासी रूप गरम भी होता दिख रहा है.

‘राजनीतिक भंवर में फंसे विपक्षी दल’

विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक इस बात को लेकर बंटा हुआ है कि अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होना है या नहीं. एक तरफ पार्टियों को डर है कि यदि वे इसमें शामिल नहीं हुए तो उन्हें हिंदू विरोधी बताकर घेरा जाएगा तो दूसरी तरफ उन्हें यह भी लगता है कि यदि वे शामिल हुए तो बीजेपी के हाथों में खेले जाने के आरोप लगाए जाएंगे. फिलहाल, विपक्ष का इंडिया गुट गंभीर राजनीतिक भंवर में फंस गया है.

शशि थरूर का बयान स्पष्ट करता है कांग्रेस की विचारधारा?

तो दुविधा क्या है? कांग्रेस नेता शशि थरूर का बयान इसे पूरी तरह स्पष्ट कर देता है. थरूर ने गुरुवार को कहा, …यदि आप जाते हैं तो इसका मतलब है कि आप बीजेपी के हाथों में खेल रहे हैं. यदि आप नहीं जाते हैं तो इसका मतलब है कि आप हिंदू विरोधी हैं, यह बकवास है.

थरूर आगे कहते हैं कि वामपंथी दल इस मामले पर आसानी से निर्णय ले सकते हैं क्योंकि उन्हें किसी भी धर्म में विश्वास नहीं है. कांग्रेस के भीतर सीपीआई (एम) या बीजेपी की कोई विचारधारा नहीं है. हम हिंदुत्व को एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में देख रहे हैं. इसका हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए हम ना तो सीपीआई (एम) हैं और ना ही बीजेपी. हमें इस मामले पर निर्णय लेने के लिए समय दें.

‘विपक्ष के लिए एक जैसा स्टैंड लेना मुश्किल’

अलग-अलग विचारधारा वाले विपक्ष के इंडिया ब्लॉक को एक जैसा रुख अपनाना मुश्किल हो रहा है. इसके पीछे यह माना जा रहा है कि अगर कार्यक्रम में जाने का फैसला करते हैं तो यह बीजेपी को बढ़त देने जैसा होगा, क्योंकि एक समय राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी ही अगुआकार के तौर पर सबसे आगे खड़ी रही.

राम मंदिर के न्योते पर इंडिया गुट कैसे बंटा हुआ है?

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी पहले राजनेता थे, जिन्होंने प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण ठुकरा दिया था. 26 दिसंबर को येचुरी ने कहा, वे अयोध्या कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने न्योते को अस्वीकार करने का कारण धार्मिक कार्यक्रम का ‘राजनीतिकरण’ बताया. सीताराम येचुरी का कहना था कि इस उद्घाटन समारोह में जो हो रहा है, वह यह है कि इसे एक राज्य प्रायोजित कार्यक्रम में बदल दिया गया है जिसमें प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और संवैधानिक पदों पर बैठे अन्य लोग शामिल हैं. यह लोगों की धार्मिक आस्था का सीधा राजनीतिकरण है जो संविधान के अनुरूप नहीं है.

टीएमसी के भी शामिल होने की संभावना नहीं

सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस भी सीपीएम की लाइन पर चल सकती है. सूत्रों ने बताया कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के राम मंदिर कार्यक्रम में शामिल ना होने की संभावना है. पश्चिम बंगाल में वैचारिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) दोनों इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं. हालांकि, टीएमसी ने आधिकारिक तौर पर अपने फैसले की घोषणा नहीं की है, लेकिन इसकी प्रमुख ममता बनर्जी के करीबी सूत्रों का कहना है कि पार्टी बीजेपी के राजनीतिक नैरेटिव में शामिल होने से सावधान है. यह भी कहा जा रहा है कि तृणमूल को यह संदेह है कि बीजेपी मंदिर निर्माण को 2024 के आम चुनाव में एक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल कर सकती है.

उद्धव गुट बोला- 22 जनवरी के बाद जाएंगे अयोध्या

गुरुवार को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने भी राम मंदिर कार्यक्रम को लेकर बयान दिया है. उद्धव गुट भी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है. शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने घोषणा की कि उसका कोई भी कार्यकर्ता या नेता 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा. राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा, यह सब राजनीति है. कौन बीजेपी के कार्यक्रम में शामिल होना चाहता है? यह कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं है. यह बीजेपी का कार्यक्रम है, यह बीजेपी की रैली है. बीजेपी का कार्यक्रम खत्म होने के बाद हम (अयोध्या) जाएंगे.

वही, बीजेपी नेता और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने गुरुवार को राम मंदिर उद्घाटन के लिए आमंत्रित लोगों से कार्यक्रम में शामिल होने का अनुरोध किया. ठाकुर ने कहा, 450 वर्षों से ज्यादा का इंतजार खत्म हो रहा है. भारत में लोगों की कई पीढ़ियों का सपना साकार हो रहा है. जिन लोगों को राम मंदिर के अभिषेक के लिए आमंत्रित किया गया है, मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि वे समारोह में शामिल हों. केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि लोग अयोध्या आने लगे हैं और तीर्थयात्रियों को वहां जाने से पहले उचित जानकारी होनी चाहिए ताकि उन्हें भीड़ से असुविधा ना हो.

कांग्रेस की दुविधा- राम मंदिर कार्यक्रम में शामिल हों या नहीं?

इंडिया ब्लॉक की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस से सबसे ज्यादा मुश्किल या कह लीजिए धर्म संकट में दिख रही है. विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने 21 दिसंबर को कहा कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने प्रतिष्ठा समारोह के लिए कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रण भेजा है. एक हफ्ते बाद भी कांग्रेस ने इस बात की कोई घोषणा नहीं की है कि पार्टी नेता इस कार्यक्रम में शामिल होंगे या नहीं. जानकार कहते हैं कि कांग्रेस को ऐसा रुख अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है जिससे उसे चुनावी मैदान में ज्यादा नुकसान ना हो.

‘कांग्रेस पर दोहरे चरित्र का आरोप लगाकर घेराबंदी’

इधर, समस्त केरल जेम-इयातुल उलमा(समस्थ) केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) से जुड़ा हुआ है. इसके नेता ने कांग्रेस को उसके दोहरे रवैये के लिए आड़े हाथ लिया है. IUML केरल में कांग्रेस की साझेदार है. समस्थ ने कहा, कांग्रेस को दुविधा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उसे चिंता है कि अगर वो राम मंदिर कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई तो उत्तर में उसके वोट कम हो जाएंगे.

दरअसल, पिछले कुछ समय से कांग्रेस को बीजेपी का मुकाबला करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलते हुए देखा गया है. इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने से उसे कम से कम उत्तरी राज्यों के बड़े वोटबैंक में नुकसान हो सकता है. और अगर इस कार्यक्रम में शामिल होती है वो बीजेपी के हाथों में खेलेगी. इस दुविधा को सबसे अच्छी तरह से कांग्रेस नेता शशि थरूर ने समझाया.

‘लोगों को फैसला लेने का अधिकार’

शशि थरूर ने कहा, लोगों को आमंत्रित किया गया है और लोगों को ही तय करने दें कि वे जाना चाहते हैं या नहीं. मैं मंदिर को एक राजनीतिक मंच नहीं मानता. किसी राजनीतिक कार्यक्रम में ना जाने से आप हिंदू विरोधी नहीं हो जाते. थरूर से जब पूछा गया कि क्या इस फैसले का 2024 के चुनाव पर असर पड़ेगा तो उन्होंने कहा, कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करना और यह कहना कि यदि आप जाते हैं तो इसका मतलब है कि आप बीजेपी के हाथों में खेल रहे हैं. यदि आप नहीं जाते हैं तो इसका मतलब है कि आप हिंदू विरोधी हैं. यह बकवास है. मुझे लगता है कि प्रत्येक नागरिक को अपना फैसला लेने का अधिकार है. उन्होंने कहा, चुनाव इतना आसान नहीं है. ना ही यह किसी व्यक्तिगत निर्णय के बारे में है.

‘जिन्हें निमंत्रण नहीं गया, वो भी उलझन में’

वहीं, इंडिया ब्लॉक में शामिल सपा, एनसीपी समेत जिन दलों को अब तक निमंत्रण नहीं मिला है, वे भी उलझन में देखे जा रहे हैं. प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, मेरा मानना है कि बिना भगवान की इच्छा के कोई दर्शन नहीं करने जा सकता. बिना उनके इच्छा के कोई दर्शन नहीं कर पाता और भगवान का बुलावा कब-किसको आ जाए, कोई कह नहीं सकता.”

शरद पवार ने कहा, ‘पता नहीं कि वह (भाजपा) इस मुद्दे का इस्तेमाल राजनीतिक या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कर रही है. हमें खुशी है कि मंदिर बन रहा है, जिसके लिए कई लोगों ने योगदान दिया है.’ शरद पवार विपक्षी नेताओं के गठबंधन में वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. हालांकि कई दफा उनका रुख इंडिया ब्लॉक से इतर रहा है. ऐसे में अभी तक उनके अयोध्या जाने की प्लानिंग को लेकर सस्पेंस बना हुआ था. हालांकि शरद पवार ने साफ किया है कि उन्हें इस समारोह का आमंत्रण नहीं भेजा गया है.

बताते चलें कि राम मंदिर के साथ एक राजनीतिक आंदोलन जुड़ा हुआ है और पार्टियां और उनके नेता जो निर्णय लेते हैं, उन्हें राजनीति के चश्मे से देखे जाने और चुनावी नतीजे प्रभावित होने का जोखिम रहता है.

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