भोपाल। स्वच्छ सर्वेक्षण-2022 को लेकर नगर निगम अधिकारियों ने कमर कस ली है। राजधानी के गली-मोहल्ले व चौराहों की साफ-सफाई के साथ रंगाई-पुताई का काम चल रहा है। हालांकि इस बार स्वच्छता में नंबर वन बनने के लिए सिटीजन फीडबैक भी जरूरी है लेकिन इसमें लोग रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इसका असर स्वच्छता रैकिंग पर पड़ेगा। जबकि निगम की टीम लोगों को जागरूक करने के साथ अपने शहर के लिए वोट करने को प्रेरित कर रही है। इसके स्वच्छ सर्वेक्षण में 600 नंबर जोड़े जाएंगे। वहीं इंदौर को स्वच्छता में नंबर वन बनाने में वहां के रहवासियों का अहम योगदान है। यही वजह है कि इंदौर हर बार स्वच्छता में नंबर रहता है।
सीवेज के पानी को रिसाइकिल कर उसे उपयोग में लाने में हम काफी पीछे हैं। मुख्य रूप से कलियासोत व कोलांस नदी और बड़ा व छोटा तालाब में कई छोटे-बड़े नाले भी आकर मिल रहे हैं। राजधानी में बीते सालों में दस से अधिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया गया। बावजूद इसके शहर के जलस्रोतों में सीवेज के पानी को मिलने से नहीं रोका जा सका है। लगभग 23 लाख की आबादी वाले शहर भोपाल में रोजाना 850 टन गीला और सूखा कचरा निकलता है। यहां अभी सौ टन कचरे से ही खाद्य व अन्य सामान बनाया जा रहा है। राजधानी में करीब छह हजार सफाई कर्मचारी आठ सौ गाडिय़ों से रोजाना शहर में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन कर रहे हैं। लगातार मानीटरिंग न होने से झुग्गी क्षेत्रों से रोजाना कचरा नहीं उठाया जा रहा है। दिन में तीन बार की सफाई पर भी शहर के प्रमुख बाजारों पर ही फोकस है। लेकिन स्वच्छता से राजधानीवासियों को जोडऩे में भोपाल नगर निगम पूरी तरह से असफल साबित हो रहा है। हालांकि पिछली बार के मुकाबले इस बार सिटीजन फीडबैक अच्छा रहा, लेकिन बावजूद आम लोग अब तक नहीं जुड़ पाए हैं। Share: