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स्वतंत्र देव के इस्तीफे के बाद बड़ा सवाल? दलित, OBC या ब्राह्मण चेहरा किस पर BJP खेलेगी दांव?


नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद बुधवार को स्वतंत्र देव सिंह ने संगठन की कमान छोड़ दी है. उन्होंने अपना इस्तीफा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेज दिया है. सियासी रूप से देश के सबसे अहम प्रदेश में बीजेपी के नए सेनापति को लेकर चर्चा तेज है. स्वतंत्र देव सिंह का जो भी उत्तराधिकारी होगा, उसी के अगुवाई में 2024 के लोकसभा चुनाव होंगे. ऐसे में सवाल है कि बीजेपी यूपी में अपना नया अध्यक्ष ब्राह्मण, दलित या फिर ओबीसी समुदाय में से किसे बनाएगी.

यूपी की सियासत में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाने के 20 साल के सियासी पैटर्न को देखें तो किसी ब्राह्मण समुदाय के हाथों में कमान दिए जाने की सबसे ज्यादा संभावना दिख रही है, जिसके चलते कई ब्राह्मण नेताओं के नाम चर्चा में हैं. वहीं, पार्टी का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव पर है. सूबे के सियासी और जातीय समीकरण को देखते हुए दलित और ओबीसी समुदाय में में से किसी को संगठन की कमान सौंपने के कयास लगाए जा रहे हैं.

ब्राह्मण चेहरे को मिलेगी कमान?
उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के लिए ब्राह्मण समुदाय से जिन नामों पर चर्चा तेज है, उसमें पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, कन्नौज के सांसद एवं प्रदेश महामंत्री सुब्रत पाठक, अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम, नोएडा के सांसद डॉ. महेश शर्मा और प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं.

ब्राह्मण समुदाय के नाम की चर्चा के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि बीजेपी पिछले दो दशक से लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी की कमान यूपी में ब्राह्मण समुदाय के हाथ में देती रही है तो विधानसभा चुनाव के दौरान ओबीसी समुदाय के अध्यक्ष बनाकर उतरती है.

2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान केशरीनाथ त्रिपाठी, 2009 चुनाव में रमापति राम त्रिपाठी, 2014 में लक्ष्मीकांत वाजपेयी और 2019 में महेंद्र नाथ पांडेय प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. इसी के चलते ब्राह्मण समुदाय के अध्यक्ष बनने की ज्यादा संभावना दिख रही है, क्योंकि नए अध्यक्ष के नेतृत्व में 2024 के लोकसभा चुनाव होना है. ऐसे में देखना है कि ब्राह्मण समुदाय से किसे बीजेपी की कमान मिलती है?

ओबीसी-अतिपिछड़ा वर्ग से कौन होगा
बीजेपी का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव पर है. इसके मद्देनजर योगी सरकार गठन में बीजेपी ने जाति और क्षेत्रीय समीकरण को साधने की कवायद की है. अब संगठन की कमान एक मजबूत हाथ में सौंपकर अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखना चाहती है. ऐसे में सूबे के जातीय समीकरण को देखते हुए ओबीसी समुदाय या अतिपिछड़ा वर्ग समुदाय में से भी किसी को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप सकती है. यूपी के अध्यक्ष पद छोड़ने वाले स्वतंत्र देव सिंह ओबीसी समुदाय के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं, जिसके चलते उनके उत्तराधिकारी के तौर पर किसी ओबीसी समुदाय से ही किसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चा है.


बीजेपी सूबे में दलितों और ओबीसी पर बहुत अधिक ध्यान दे रही है. पार्टी ब्राह्मण चेहरों से इतर ओबीसी और दलित के बीच अध्यक्ष के चयन पर विचार कर सकती है. स्वतंत्र देव सिंह कुर्मी हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि ओबीसी चेहरे के साथ बदलना उन्हें ठीक रहेगा. पहले केशव प्रसाद मौर्य और फिर स्वतंत्र देव सिंह प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर बीजेपी ने ओबीसी मतदाताओं पर अपनी पकड़ जो बनाई है, उसे खोना नहीं चाहती है. ऐसे में चुनाव हारने के बावजूद केशव प्रसाद मौर्य का डिप्टी सीएम बने रहना एक स्पष्ट संदेश है कि पार्टी ओबीसी वोट खोने का जोखिम नहीं उठाएगी. सूबे में 52 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोटर हैं, जो किसी भी राजनीतिक दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.

केशव से लेकर बीएल वर्मा तक दावेदार
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पिछड़े वर्ग से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर भी मुहर लग सकी है. बीते दिनों केशव की दो दिवसीय दिल्ली यात्रा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं से मुलाकात की थी. केशव के नेतृत्व में भी बीजेपी ने 2017 में 325 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया था. ऐसे में उनके नाम की चर्चा भी चल रही है, लेकिन साथ ही केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी भी प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं.

केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा ओबीसी के लोध समुदाय से आते हैं, जो बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है. कल्याण सिंह के दौर से ही लोध बीजेपी के साथ है. ऐसे में बीएल वर्मा की चर्चा तेज है, जो रुहेलखंड से आते हैं. वहीं, भूपेंद्र सिंह चौधरी जाट समुदाय से आते हैं. जाट समुदाय से आने वाले दूसरे नेता व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के नाम की भी चर्चा है. वहीं, ओबीसी कैंप से मंत्री धर्मपाल सिंह के नाम पर विचार किया जा रहा है. इसके अलावा प्रदेश संगठन में महामंत्री का पद संभाल रहे अमरपाल मौर्य का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में है.

दलित चेहरे भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में
उत्तर प्रदेश चुनाव में दलितों ने बीजेपी का खुलकर समर्थन किया था और इस समुदाय से कोई नेता चुनना भी एक विकल्प हो सकता है. बीजेपी लगातार दलित वोटों पर फोकस कर रही है. ऐसे में दलित चेहरे के तौर पर केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा, कौशांबी के सांसद विनोद कुमार सोनकर, एमएलसी लक्ष्मण आचार्य और इटावा के सांसद राम शंकर कठेरिया को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है. इस तरह बीजेपी किसी दलित को प्रदेश की कमान सौंप कर बड़ा सियासी संदेश दे सकती है.

बता दें कि गैर-यादव ओबीसी में लगभग 58 प्रतिशत ने 2017 में भाजपा को वोट दिया था, यह हिस्सेदारी 2022 में लगभग 65 प्रतिशत हो जाने जाने का अनुमान है. ऐसे ही दलित समुदाय का बड़ा तबका बीजेपी के साथ जुड़ा है. बीजेपी ने पहले गैर-जाटव दलितों को साधने में सफल रही है तो अब जाटव वोटों में सेंधमारी के लिए लगातार कवायद कर रही है. ऐसे में बीजेपी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है, जिसे चलते सियासी समीकरण बनाने के लिए पार्टी किसी दलित पर दांव खेल सकती है.

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