पटना। दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi assembly elections) के परिणाम ने बिहार (Bihar) की राजनीति में भी सुगबुगाहट ला दी है. एक ओर जहां एनडीए (NDA) का जोश और कॉन्फिडेंश हाई है, वहीं आरजेडी और तेजस्वी यादव के लिए नई सियासी राह सामने आने की चर्चा छिड़ गई है. सवाल पूछे जा रहे हैं कि जब 47 साल के प्रवेश वर्मा ने दिल्ली में कमाल दिखा दिया है तो क्या 34 साल के तेजस्वी यादव बिहार में वही कमाल करने वाले हैं?
दरअसल, जिस तरह से प्रवेश वर्मा ने लंबे वक्त से दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहे अरविंद केजरीवाल जैसे कद्दावर नेता को चुनावी मात दी है बिहार को लेकर संदर्भ में तेजस्वी यादव के लिए इस बात की चर्चा होने लगी है कि क्या आने वाले बिहार विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार क्या अरविंद केजरीवाल हो जाएंगे, और क्या तेजस्वी यादव बिहार के प्रवेश वर्मा बनने वाले हैं?
दरअसल, अरविंद केजरीवाल के सामने प्रवेश वर्मा की जीत का एक सिरा बीते दिनों बिहार की सियासी चर्चा से भी जुड़ा हुआ है. राजद और जदयू के एक साथ आने की खूब चर्चा होने लगी थी. नए राजनीतिक बदलाव की अटकलबाजियों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के फिर से साथ होने को लेकर कयास लगने लगे थे. इसी बीच लालू यादव ने ऑफर देकर बिहार की सियासत में नई गर्माहट पैदा कर दी थी. लेकिन, सियासी सरगर्मी बढ़ी ही थी कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने उस पर पानी फेर दिया. तेजस्वी यादव ने तब साफ तौर पर कहा कि बिहार में कोई बदलाव नहीं होगा और हम सीधे चुनाव में जाएंगे. जाहिर तौर पर तेजस्वी यादव का यह बयान बिहार की राजनीति के को देखते हुए बहुत बड़ा था. क्योंकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक बैलेंसिंग फैक्टर के तौर पर जाना जाता है वह जिधर भी जाएंगे सत्ता उधर ही चली जाएगी. लेकिन आती हुई सत्ता को तेजस्वी यादव ‘ना’ कहने पर क्यों उतर आए?
तेजस्वी यादव की स्ट्रेटजी को समझिये
राजनीति के जानकार इसे तेजस्वी यादव की रणनीति का यह हिस्सा बताते हैं. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि प्रवेश वर्मा ने जिस तरह से दिलेरी दिखाई और अरविंद केजरीवाल जैसे कद्दावर नेता के सामने ने केवल खड़ा किया, बल्कि उन्हें चुनावी लड़ाई में मात दे दी, तेजस्वी यादव की रणनीति को भी उस संदर्भ में देखा जाना चाहिये. तेजस्वी यादव भला अब के राजनीति के दौर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ क्यों जाएं? जिस तरह से तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सामने खुद को एक युवा नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू किया है, भविष्य की सोच को लेकर आगे बढ़ने की बात वह करते हैं. बिहार के लोगों की जेहन में वह यह भर देना चाहते हैं कि युवा जोश पर भरोसा करिये…नीतीश कुमार को टायर्ड और रिटायर्ड बताकर उनसे दूरी बना रहे हैं और थके हारे बताकर यह भी बताया जा रहा है कि बिहार की जनता अभी युवा नेतृत्व के बारे में सोचे.
अपनी लकीर खींचना चाहते हैं तेजस्वी
रवि उपाध्याय कहते हैं, तेजस्वी यादव ने कई बार यह भी बताने की कोशिश की है कि वह नीतीश कुमार का सम्मान तो करते हैं, लेकिन अब उनके साथ की राजनीति में वह आगे नहीं बढ़ाना चाहते. वह अपनी लकीर स्वयं खींचना चाहते हैं. बकौल रवि उपाध्याय तेजस्वी यादव के सामने तो अभी सियासी संसार का बड़ा विस्तार होना है. वह 34 वर्ष के हैं और राजनीति में आए हुए 11 साल भी हो गए हैं. उन्होंने दो-दो का सरकारों के कार्यकाल का अनुभव भी लिया है. बिहार की जनता से वह कनेक्ट भी हो रहे हैं. उनकी सभाओं में जबरदस्त भीड़ उमड़ती है. उनका आत्मविश्वास भी हाई है. वह कई मुद्दों को इस आधार पर सामने रखते हैं कि- मैं देख ले लूंगा. जाहिर तौर पर तेजस्वी यादव की स्ट्रैटेजी भी साफ दिख रही है कि वह नीतीश को ‘ना’ कहते हैं और खुद पर भरोसा करते हैं.
तेजस्वी के सवालों से घिरी नीतीश सरकार
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि तेजस्वी यादव कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना राजनीतिक गुरु भी बताते हैं और राजनीति कैसे की जाती है इसका गुर भी वह जान गए हैं. तेजस्वी यादव पूरा सम्मान देने की बात कहते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व को अपने निशाने पर कई बार लेते हैं. कटाक्ष करते हैं… टायर्ड और रिटायर्ड वाली बात कहकर खुद को युवा जोश वाला बताकर अपने आप को प्रोजेक्ट भी करते हैं. वहीं, बीते 19 वर्षों की नीतीश कुमार की सत्ता बिहार में है जाहिर तौर पर कई लंबी सरकारों के दौर में कई खामियां भी उभर कर आती हैं. नीतीश कुमार की सरकार पर भी ऐसे ही आरोप लगते हैं. नीतीश सरकार में ब्यूरोक्रेसी के हावी हो जाने की बात हो या फिर नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह के सवाल खड़े करना, यह तेजस्वी यादव की रणनीति का भी हिस्सा है.
अरविंद केजरीवाल की हार के मायने
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, हाल में बिहार के राजनीति को जानने समझने वाले एक चर्चा लगातार सुनते होंगे कि एक ब्यूरोक्रेट डीके की चर्चा हमेशा तेजस्वी यादव करते हैं. वह ‘डीके टैक्स’ की बात कहकर सीधे तौर पर नीतीश कुमार की सरकार के भ्रष्टाचार की बाद कहते हैं. जाहिर तौर पर नाम तो डीके का है, लेकिन निशाने पर नीतीश कुमार की सरकार है. नीतीश कुमार के बारे में यह कहा जाने लगा है कि वह कई ब्यूरोक्रेट्स के भरोसे ही अपनी सरकार चलाते हैं. इस बात को तेजस्वी यादव ने अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया है. वहीं, नीतीश कुमार के गिरते स्वास्थ्य का बड़ा सवाल भी बिहार की राजनीति में सामने आ चुका है. बहरहाल दिल्ली में प्रवेश वर्मा की राजनीति ने एक नई लहर पैदा कर दी है. युवा जोश के आगे अरविंद केजरीवाल जैसे कद्दावर नेता की हार यह बताती है कि अब जनता किस प्रकार से सोचने लगी है. तो क्या बिहार की जनता भी कुछ ऐसा ही सोच रही है.
क्या बिहार के प्रवेश वर्मा बनेंगे तेजस्वी यादव?
हालांकि, यह आगामी विधानसभा चुनाव में के परिणाम से नजर आएगा, लेकिन जिस तरह से राजद के पोस्टर से लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी को भी एक हद तक किनारे किया जा रहा है और तेजस्वी यादव पूरे तौर पर प्रोजेक्ट हो रहे हैं, यह काफी कुछ संकेत करता है. तेजस्वी यादव जिस प्रकार नीतीश कुमार को निशाने पर ले रहे हैं वह काफी कुछ राजद के सियासी भविष्य को इंगित करता है. इस बीच में यह भी चर्चा चली है कि नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार राजनीति में आएंगे. दूसरी ओर प्रशांत किशोर भी होड़ में लगे हैं. वहीं, तीसरी दावेदारी चिराग पासवान की भी है. ऐसे में बिहार का सियासी मुकाबला भी दिलचस्प मोड़ पर आ गया है. हालांकि, फिलहाल नीतीश कुमार के सामने पुख्ता तौर पर तेजस्वी यादव ही खुद को स्थापित करते हुए दिख रहे हैं. जाहिर तौर पर इन सब के बीच बड़ा सवाल यही है कि क्या तेजस्वी यादव बिहार के प्रवेश वर्मा बनने वाले हैं?.
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