नई दिल्ली (New Delhi) । बात साल 2008 की है। भारतीय कुश्ती महासंघ (Wrestling Federation of India) के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan Singh) तब भी सांसद (Member of parliament) तो बीजेपी (BJP) के ही थे लेकिन पार्टी से तब मोहभंग हो चुका था और वह अलग राह पकड़ चुके थे। वह समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के काफी नजदीकी हो चले थे। उधर, लेफ्ट दलों की बैसाखी पर केंद्र की मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार चल रही थी लेकिन अमेरिका से परमाणु डील के विरोध में 60 सांसदों वाले लेफ्ट दलों ने कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। यह घटनाक्रम 2009 के लोकसभा चुनावों के ठीक एक साल पहले हुआ था।
22 जुलाई, 2008 को लोकसभा में तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विश्वास मत प्रस्ताव पेश किया था। सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव तब मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस के लिए संकटमोचक बनकर सामने आए थे। उनके कंधे पर जरूरी वोटों का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी थी। विश्वास प्रस्ताव पर चली लंबी चर्चा और बहस के बाद सदन में वोटिंग हुई।
मुलायम की पार्टी सपा के तब 39 सांसद लोकसभा में थे लेकिन उनके ही छह सांसदों ने सरकार के खिलाफ वोट डाला था। इनमें चार बागी- मुनव्वर हसन, एसपी सिंह बघेल, राजनारायण बुधोलिया और जयप्रकाश रावत के अलावा अतीक अहमद और अफजल अंसारी भी शामिल थे। तब मुलायम सिंह ने अपने नजदीकी रिश्तों को भुनाते हुए बृजभूषण शरण सिंह और निर्दलीय बालेश्वर यादव से मनमोहन सिंह सरकार के पक्ष में मतदान करवाया था।
543 सदस्यों वाली लोकसभा में तब सरकार के पक्ष में 275 और विपक्ष में 256 वोट पड़े थे। इस तरह मनमोहन सिंह की सरकार पर सं संकट टल गया था। मुलायम सिंह यादव ने इस उपकार के बदले में बृजभूषण शरण सिंह को 2009 में कैसरगंज से समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार बनाया था। सिंह ने इस चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की थी लेकिन जल्द ही सपा से उनकी राहें जुदा हो गईं। 2014 में फिर से बीजेपी ने उन्हें मान-मनौव्वल के साथ कैसरगंज संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया, जहां उन्होंने 73000 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी।
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