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पूर्वोत्तर के आदिवासी क्षेत्रों में लागू नहीं होगा CAA, जानिए इसकी वजह

नई दिल्ली (New Delhi)। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (Citizenship (Amendment) Act, 2019), पूर्वोत्तर राज्यों (North-eastern states.) के अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों (Tribal areas.) में लागू नहीं किया जाएगा, जिसमें संविधान की 6वीं अनुसूची के तहत विशेष दर्जा प्राप्त क्षेत्र भी शामिल हैं। कानून के मुताबिक, इसे उन सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू नहीं किया जाएगा, क्योंकि इन प्रदेश के लोगों को यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की आवश्यकता होती है।


आईएलपी अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर में लागू है। अधिकारियों ने सोमवार को अधिसूचित कानून के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि आदिवासी क्षेत्रों को भी सीएए के दायरे से छूट दी गई थी। यहां संविधान की 6 वीं अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदें बनाई गई थीं।

सीएए किन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है?
असम, मेघालय और त्रिपुरा में ऐसी स्वायत्त परिषदें अस्तित्व में हैं। इनमें असम में कार्बी आंगलोंग, दिला हसाओ और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल क्षेत्र, मेघालय में गारो हिल्स और त्रिपुरा में आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं। सीएए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है।

नए कानून में क्या प्रावधान हैं?
नागरिकता अधिनियम में देशीयकरण द्वारा नागरिकता का प्रावधान किया गया है। आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी साल 11 महीने भारत में रहना चाहिए। कानून में छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) और तीन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से संबंधित व्यक्तियों के लिए 11 वर्ष की जगह छह वर्ष तक का समय है।

कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।

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