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कर्ज के बोझ से दबे मालदीव की बाहें मरोड़ रहा है चीन, सारे जेवरात बेचने के बाद भी नहीं चुका पाएगा रकम

कोरोना महामारी के कारण मालदीव की अर्थव्यवस्था को हुए भारी नुकसान के बीच चीन ने यहां एक बार फिर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण एशिया में मालदीव की अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी का सबसे बुरा असर पड़ा है। उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इस साल 19.5 फीसदी गिरावट आने का अंदेशा है। गुजरे अप्रैल में ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी ऐसे हालात के बारे में चेतावनी दी थी। आईएमएफ ने कहा था कि कोरोना संकट के कारण मालदीव के कर्ज संकट में फंस जाने का खतरा है। मालदीव की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर आधारित है। कोरोना संकट के बीच पर्यटन लगभग ठहर सा गया है।   

मालदीव पर इस समय मौजूद कुल कर्ज में चीन का हिस्सा 53 फीसदी है। इसे लौटाने की समयसीमा के बारे में पिछले सितंबर में मालदीव सरकार ने चीन से बातचीत शुरू की थी। तब माले स्थित चीनी राजदूत ने यह कहा था कि चीन ने मालदीव को जी-20 कर्ज वापसी पहल के तहत मिलने वाले द्विपक्षीय सरकारी कर्ज को रोक दिया है। लेकिन इसका लाभ मालदीव की कंपनियों को नहीं मिला, जिन्होंने करोड़ों डॉलर के कर्ज ले रखे हैं। इस कारण मालदीव की एक बड़ी कंपनी कर्ज अदायगी के शिड्यूल में पिछड़ गई। उसने 12 करोड़ 70 लाख डॉलर का कर्ज ले रखा था। इस डिफॉल्ट के बाद जुलाई में खबर आई कि चीन के आयात-निर्यात बैंक ने मालदीव की सरकार को एक करोड़ डॉलर का कर्ज तुरंत लौटाने को कहा है। मालदीव में पिछली सरकार के शासनकाल में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टेस के लिए सरकार और कंपनियों ने बड़े पैमाने पर चीन से कर्ज लिए। जानकारों के मुताबिक 2018 में जब इब्राहीम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति बने, तो उनके सामने सबसे पहली चुनौती इसका अंदाजा लेने की थी कि चीन का कितना कर्ज उनके देश पर है। मालदीव के सेंट्रल बैंक ने अनुमान लगाया कि मालदीव सरकार पर चीन का 600 अरब डॉलर का कर्ज है। जबकि मालदीव की कंपनियों ने 900 अरब डॉलर के कर्ज चीन से लिए थे। चूंकि इस सारे कर्ज में मालदीव सरकार गारंटर बनी थी, इसलिए अगर ये कंपनियां फेल होती हैं, तो उनके कर्ज भी सरकार को ही चुकाने होंगे।

यही मालदीव पर मंडरा रहे कर्ज संकट की वजह है। अगर अर्थव्यवस्था आम दिनों की तरह ठीक से चल रही होती, तो मालदीव सरकार कर्ज चुकाने की बेहतर स्थिति में होती। लेकिन कोरोना महामारी के कारण उसकी आर्थिक स्थिति खुद बिगड़ गई है। ऐसे में चीन उसे अपने पाले में फिर से लाने की कोशिश कर रहा है। गौरतलब है कि मोहम्मद सोलिह ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने देश में चीन के प्रभाव को सीमित करने की कोशिश की। उनकी विदेश नीति भारत की तरफ ज्यादा झुकी रही है। चीन के विदेश मंत्रालय ने पिछले दिनों कहा कि मालदीव में चीन के सहयोग चल रही परियोजनाएं मालदीव के विकास की जरूरतों के मुताबिक हैं। उनसे मालदीव की जनता का जीवन स्तर सुधरेगा। सोलिह मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं, जिसके अध्यक्ष फिलहाल पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद हैं। नशीद का झुकाव हमेशा से भारत की तरफ रहा है। उन्होंने सीएनएन टीवी चैनल को बताया कि उनके देश पर चीन का कर्ज मालदीव के जीडीपी के आधा के बराबर पहुंच चुका है। लेकिन चीनी अधिकारियों ने इस आंकड़े को गलत बताया है।

नशीद के मुताबिक चीन का कर्ज समयसीमा के मुताबिक चुकाने के लिए अगले 31 दिसंबर तक मालदीव को आठ करोड़ 30 लाख डॉलर की जरूरत पड़ेगी। इसके अतिरिक्त 2021 में उसे 32 करोड़ डॉलर की आवश्यकता इसी मकसद से होगी। अगले साल मालदीव सरकार को जितनी आय होगी, उसका 53 फीसदी कर्ज चुकाने में चला जाएगा। इस रकम का 80 फीसदी हिस्सा चीन को जाएगा। इसी हफ्ते नशीद ने ट्विटर पर लिखा कि चीन के कर्ज का बोझ उठाना मुश्किल होता जा रहा है। अगर हम अपने बाप-दादाओं के सारे जेवरात बेच दें, तब भी कर्ज नहीं चुका पाएंगे। जानकारों के मुताबिक मालदीव की आज जो हालत है, यही चीन के कर्ज से बड़ी परियोजना चला रहे बहुत से दूसरे देशों की आगे चल कर हो सकती है। मालदीव के विश्लेषकों का कहना है कि अगर मोहम्मद सोलिह सरकार ने अपनी विदेश नीति संतुलित करने की कोशिश नहीं की होती, तो शायद चीन कर्ज चुकाने की समयसीमा में छूट दे देता। लेकिन अब उसने कहा है कि चीन मालदीव को कर्ज अदायगी की समयसीमा, ब्याज दरों और ग्रेस पीरियड में काफी एडजस्टमेंट कर चुका है।

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