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UP में कम सीटों पर भी चुनाव लड़ लेगी कांग्रेस लेकिन सपा को करना होगा ये ‘समझौता’

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए बने विपक्षी गठबंधन में सीट शेयरिंग का फाइनल फॉर्मूला तय नहीं है. सपा ने अपनी ओर से कांग्रेस के लिए 11 सीटें तय कर दी हैं, लेकिन उस पर कांग्रेस ने अपनी सहमति की मुहर नहीं लगाई. सपा और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अखिलेश यादव के साथ कांग्रेस नेताओं की बैठक होनी है, जिसके बाद फाइनल सहमति बन सकेगी. ऐसे में कांग्रेस की अब आगे की रणनीति है कि गठबंधन धर्म निभाने के लिए भले ही कम सीटें मिले, लेकिन शर्त है कि वो सेफ सीट होनी चाहिए ताकि 2024 में जीत की गारंटी हो?

सपा के साथ सीट शेयरिंग के दौरान कांग्रेस की तरफ से पहले 30 सीटों का दावा किया गया था. फिर बात 23 पर आ गई. हर हाल में चुनाव लड़ने को बेकरार कांग्रेस नेता अब 17 से 18 सीट पर भी मान जाने को तैयार हैं जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए 11 सीटें तय कर दी गई हैं. सपा के द्वारा सुझाई गई सीटों की संख्या ही नहीं बल्कि जो सीटें दी जा रही हैं, उस पर कांग्रेस सहमत नहीं है. कांग्रेस की मंशा अपने नेताओं के लिए सेफ सीट की है, जिसके लिए बलिया से लेकर भदोही, अमरोहा और रामपुर जैसी सीटें उसके निशाने पर हैं.

कांग्रेस ने तय किए कैंडिडेट के नाम
कांग्रेस ने यूपी की जिन सीटों पर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है, उसके लिए बकायदा उन सीटों पर कैंडिडेट के नाम भी तय कर रखे हैं. बलिया से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय, भदोही से राजेश मिश्रा, रामपुर से पूर्व सांसद बेगम नूरबानो, बाराबंकी से कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया के पुत्र तनुज पुनिया, सुल्तानपुर से पूर्व एमएलसी दीपक सिंह, सहारनपुर से पूर्व सांसद इमरान मसूद, बहराइच से पूर्व सांसद कमल किशोर कमांडो के लिए बासगांव सीट की डिमांड है. इसके अलावा फतेहपुर सीकरी से राजबब्बर और महाराजगंज से राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत को उतारने की तैयारी में है.

अखिलेश की 11 सीटों पर कांग्रेस असहमत
सपा ने कांग्रेस को सीट देने से पहले यह भी पूछा था कि जो सीटें मांग रहे हैं, उन पर लड़ाने के लिए संभावित कांग्रेस के पास प्रत्याशी कौन है और उसके जीत का आधार क्या है. इस आधार पर कांग्रेस ने सीटवार कुछ प्रत्याशियों के नाम INDIA गठबंधन के साथ साझा किए थे. सपा के साथ कांग्रेस नेताओं की चार राउंड की बैठक के बाद नतीजा कुछ नहीं निकला तो अखिलेश यादव ने 11 सीटें तय कर दी थी. कांग्रेस इस फॉर्मूले पर सहमत नहीं है, लेकिन पार्टी ने मन बनाया है कि अगर गठबंधन धर्म निभाने के लिए उसे कम सीटों से भी संतोष करना पड़ेगा तो तैयार है, लेकिन जीत वाली सीटें चाहिए होंगी. इसके अलावा कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि उनके सीनियर लीडर जो चुनाव लड़ना चाहते हैं, उन्हें एडजस्ट किया जाए.


सपा का यादव-मुस्लिम-शाक्य समीकरण
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद फ़र्रुख़ाबाद से टिकट चाहते हैं. वे कांग्रेस की एलांयस कमेटी के मेंबर भी हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने वहां से नवल किशोर शाक्य को टिकट दे दिया है. अखिलेश नहीं चाहते हैं कि सलमान खुर्शीद के कारण कन्नौज और मैनपुरी में उनका समीकरण खराब हो. पत्नी डिंपल यादव को उन्होंने मैनपुरी से टिकट दिया है. पड़ोसी जिलों फ़र्रुख़ाबाद और एटा से अखिलेश ने शाक्य जाति के नेताओं को उम्मीदवार बनाया है ताकि यादव-मुस्लिम-शाक्य समीकरण के जरिए जीत दर्ज करने में सफल रहे. कांग्रेस हरहाल में फर्रुखाबाद सीट चाहती है.

सपा नेता आजम खान के चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराए जाने और उनके जेल में रहने के चलते रामपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस अपना दावा कर रही है, जहां से दो बार की सांसद रही बेगम नूरबानो को उतारना चाहती है. मुस्लिम समीकरण के जरिए कांग्रेस अपनी जीत की उम्मीद लगाए हुए है. इसी तरह से बसपा से निकाले गए दानिश अली के लिए अमरोहा सीट चाहती है तो इमरान मसूद के लिए बिजनौर सीट की आस लगाए है. इसके अलावा मुरादाबाद सीट की भी कांग्रेस ख्वाहिश जता रही है, जहां से किसी बड़े मुस्लिम नेता को चुनाव लड़ाने की मंशा है.

बलिया से टिकट चाहते हैं कांग्रेस के अजय राय
कांग्रेस के यूपी अध्यक्ष अजय राय इस बार वाराणसी के बदले बलिया से टिकट चाहते हैं. वे अब तक वाराणसी से ही चुनाव लड़ते रहे हैं. पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर मुरली मनोहर जोशी तक के खिलाफ लड़े, पर कभी जीते नहीं. उन्हें लगता है कि बलिया उनके लिए लकी हो सकता है, क्योंकि बलिया समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है. इस सीट पर कांग्रेस यादव-मुस्लिम के साथ भूमिहार समीकरण बनाने की रणनीति के सहारे जीत का सपना संजोय रखा है. यादव-मुस्लिम-भूमिहार समीकरण बलिया सीट जीत पर कांग्रेस के लिए जीत की गारंटी बन सकता है.

कांग्रेस के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा वाराणसी के बजाय भदोही से क़िस्मत आज़माना चाहते हैं. वे वाराणसी के रहने वाले हैं और उ्न्होंने यहां से 2024 में जीत दर्ज की थी. भदोही सीट पर ब्राह्मण, मुस्लिम और यादव वोटों के समीकरण के दम पर राजेश मिश्रा को एक फिर से संसद पहुंचने का मौका मिल सकता है. इसकी वजह यह भी है कि वाराणसी सीट पर इस बार सपा चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति बनाई है. इसके अलावा कांग्रेस सुल्तानपुर में दीपक सिंह को लड़ा कर यादव-मुस्लिम-ठाकुर वोट जीत की गारंटी के तौर पर देख रही है, जिन्हें जोड़कर जीत सकती है. 2009 में कांग्रेस मुस्लिम और ठाकुर समीकरण के सहारे जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस की डिमांड पर क्या सपा तैयार होगी?

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