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न्याय के इंतजार में उपभोक्ता, फोरम कोर्ट में 2 हजार मामले लंबित

July 01, 2025

  • शिकायत के लिए उज्जैन के लोग इंदौर और अन्य शहर जाने को मजबूर

उज्जैन। जिला उपभोक्ता फोरम में पिछले दो साल से सुनवाई नहीं हो रही है और कोर्ट में लगभग 2000 मामले लंबित हैं। बावजूद सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही हैं। ऐसे में अब उपभोक्ता अपने हक की लड़ाई के लिए इंदौर और अन्य फोरम कोर्ट जाने को मजबूर हैं।

उल्लेखनीय है कि उज्जैन में सरकारी और निजी कंपनियों की मनमानी रोकने और उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जगाने वाले जिला उपभोक्ता फोरम के अधिकारी कर्मचारी लंबे समय से शासन की उदासीनता का शिकार बने हुए हैं। यही वजह है कि 24 माह बाद भी उज्जैन फोरम कोर्ट में कमेटी के सदस्यों की भर्ती रुकी हुई है। इसके कारण सुनवाई और दूसरा काम प्रभावित हो रहा है। वहीं 2000 मामलों के उपभोक्ता फोरम कोर्ट के चक्कर लगाकर हैरान और परेशान हैं। उनका कहना है कि दूसरे राज्य और जिलों में हर हफ्ते इसके फैसले आ रहे हैं, जरूरतमंदों को न्याय मिल रहा है, परंतु उज्जैन फोरम कोर्ट की अर्जी का निराकरण तो दूर, कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि मामलों की सुनवाई कब शुरू होगी। ऐसे में अब यहां दर्ज मामलों का निपटारा नहीं हो पा रहा है। इससे उपभोक्ताओं की विश्वसनीयता भी खत्म हो रही है। इधर, नए मामलों में नोटिस तो पुराने प्रकरणों में पेशी तारीख बढ़ाकर उपभोक्ताओं को वापस लौटाया जा रहा है। कुच पीडि़त उपभोक्ताओं के मुताबिक वापस लौटने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। सरकार जब नई नियुक्ति करेगी तब उन्हें राहत मिलने की उम्मीद है।


यह है नियम….
सरकारी नियमों के अनुसार जिला उपभोक्ता फोरम के कोर्ट में सुनवाई और फैसले के दौरान अध्यक्ष के साथ दो सदस्यों का रहना अनिवार्य होता है। इसके लिए एक महिला और एक पुरुष का कोटा फिक्स है, जिनमें आयोग और सरकार की अनुशंसा के बाद नियुक्तियाँ होती हैं। इनका कार्यकाल चार वर्ष का होता है। इनके रिटायरमेट के बाद भर्ती प्रक्रिया दोबारा नए सिरे से शुरू होती है। इस पद के लिए सामाजिक क्षेत्र में दस साल का अनुभव और ग्रेज्युएट होना आवश्यक है। जिला उपभोक्ता फोरम आयोग को नामों की सूची भेजता है, जिसके बाद आयोग सिलेक्शन कर इन्हें प्रेसिडेंट के साथ सुनवाई और फैसलों पर विचार-विमर्श करने का अधिकार देता है। वर्तमान में जिला उपभोक्ता कोर्ट उज्जैन में सदस्यों के दोनों पद खाली पड़े हैं। ऐसे में शिकायती मामलों की सुनवाई और सामान्य कामकाज भी पूरी तरह से ठप हैं। केवल सप्ताह में एक व दो दिन सुनवाई हो रही हैं।

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