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कोरोना महामारी मुआवजाः राज्यों की खिंचाई

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

सर्वोच्च न्यायालय ने उन प्रदेश-सरकारों को कड़ी झाड़ लगाई है, जिन्होंने कोरोना महामारी के शिकार लोगों के परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया है। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश था कि प्रत्येक मृतक के परिवार को 50 हजार रु. का मुआवजा दिया जाए। सभी राज्यों ने कार्रवाई शुरू कर दी लेकिन उसमें दो परेशानियां दिखाई पड़ीं।

एक तो यह कि मृतकों की संख्या कम थी लेकिन मुआवजों की मांग बहुत ज्यादा हो गई। दूसरी परेशानी यह कि मृतकों की जितनी संख्या सरकारों ने घोषित की थी, उनकी तुलना में मुआवजे की अर्जियां बहुत कम आईं। जैसे हरियाणा में मृतकों का सरकारी आंकड़ा था- 10,077 लेकिन अर्जियां आईं सिर्फ 3003 और पंजाब में 16,557 के लिए अर्जियां सिर्फ 8786 अर्जियां। जबकि कुछ राज्यों में इसका उल्टा हुआ। जैसे महाराष्ट्र में मृत्यु-संख्या 1,41,737 थी लेकिन अर्जियां आ गई 2 लाख 13 हजार ! ऐसा ज्यादातर राज्यों में हुआ है।

ऐसी स्थिति में कुछ राज्यों में मुआवजे का भुगतान आधे लोगों को भी अभी तक नहीं हुआ है। इसी बात पर अदालत ने अपनी गंभीर नाराजगी जताई। उसने बिहार और आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिवों को तगड़ी फटकार लगाई और उन्हें कहा कि वे अपनी जिम्मेदारी शीघ्र नहीं पूरी करेंगे तो अदालत अगला सख्त कदम उठाने पर मजबूर हो जाएगी। जजों ने यह भी कहा कि आपकी सरकार ने महामारी के शिकार मृतकों के जो आंकड़े जारी किए हैं, उनकी प्रामाणिकता संदेहास्पद है। उन्होंने कहा कि बिहार जैसे प्रांत में मृतक-संख्या सिर्फ 12 हजार कैसे हो सकती है? अदालत ने गुजरात सरकार से पूछा है कि उसने 4 हजार अर्जियों को किस आधार पर रद्द किया है। अदालत ने कहा है कि किसी भी अर्जी को रद्द किया जाए तो उसका कारण बताया जाए और अर्जी भेजनेवालों को समझाया जाए कि उस कमी को वे कैसे दूर करें?

अदालत ने सबसे ज्यादा चिंता उन बच्चों की की है, जिनके माता और पिता, दोनों ही महामारी के शिकार हो गए हैं। ऐसे अनाथ बच्चों के जीवन-यापन, शिक्षा और रख-रखाव की व्यवस्था का सवाल भी अदालत ने उठाया है। उसने सरकारों से यह भी कहा है कि वे गांव और शहरों में रहनेवाले गरीब और अशिक्षित परिवारों को मुआवजे की बात से परिचित करवाने का विशेष प्रयत्न करें। मान लें कि अदालत ने उन कुछ अर्जियों का जिक्र नहीं किया, जो फर्जी भी हो सकती हैं तो भी क्या? ऐसी गैर-कोरोना मौतों के नाम पर मुआवजा शायद ही कोई लेना चाहेगा और चाहेगा तो भी वही चाहेगा, जो बेहद गरीब होगा। ऐसे में भी राज्य उदारता दिखा दे तो कुछ अनुचित नहीं होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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