इंदौर न्यूज़ (Indore News)

अवैध कॉलोनी काटो और करोड़ों कमाओ, वैध कॉलोनाइजर फिर मूर्ख साबित

  • अग्निबाण एक्सपोज… शिवराज की चुनावी घोषणाओं से रियल इस्टेट कारोबार को साफ सुथरा करने के प्रयासों को झटका, अदालती आदेशों से लेकर रेरा जैसी संस्थाओं की जरूरतें भी फिजुल साबित

इंदौर (Indore)। एक से बढक़र एक लोक लुभावनी चुनावी घोषणाएं की जा रही हैं, जिसके चलते सरकारी खजाने (public treasury) की तो बैंड बजना ही है, वहीं अवैध कार्यों को वैध किए जाने का संरक्षण अलग मिल रहा है। विधानसभा चुनाव (assembly elections) के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने जहां अवैध कॉलोनियों को वैध करने की शुरुआत की, वहीं उन्होंने 31 दिसम्बर 2022 तक की अवैध कॉलोनियों को वैध करने की घोषणा भी कर डाली। एक तरफ तो रियल इस्टेट कारोबार को साफ-सुथरा करने के दावे किए जाते हैं, तो दूसरी तरफ अवैध निर्माण करने वालों को इस तरह फायदा पहुंचाया जाता है। वैध कॉलोनी काटने वालों का कहना है कि उन्हें ढेर सारी अनुमतियों के साथ चक्कर तो काटना ही पड़ते हैं, वहीं लाखों रुपए की फीस भी चुकाना पड़ती है। दूसरी तरफ अवैध कॉलोनी काटने वालों को कोई अनुमति नहीं लेना पड़ती और फिर जनता को आगे कर उनके अवैध कार्य वैध भी हो जाते हैं। अदालती आदेशों से लेकर रेरा जैसी नियामक संस्थाओं की जरूरतों पर भी इस तरह के फैसले सवालिया निशान लगा देते हैं।

पूर्व में की गई नोटबंदी और उसके बाद अभी 2000 के नोट बंद करने के पीछे भी ये कारण बताए जाते हैं कि इससे कालेधन पर रोक लगेगी और सबसे ज्यादा कालाधन रियल इस्टेट में ही खपाया जाता है, जिसके चलते केन्द्र सरकार ने रेरा जैसे कानून भी बनाए और रियल इस्टेट को साफ-सुथरा करने के दावे भी किए गए। खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान चलवाए, तो दूसरी तरफ अवैध कॉलोनियों को वैध करने के तमाम मापदण्डों को शिथिल किया गया। पूर्व में 31 दिसम्बर 2016 तक की अवैध कॉलोनियों को ही वैध किया जाना था और उसके बाद की कॉलोनियों के खिलाफ प्रशासन, निगम और अन्य विभागों को कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। मगर कल अवैध कॉलोनियों को वैध करने के लिए जो आयोजन किया गया उसमें मुख्यमंत्री ने 31 दिसम्बर 2022 तक अस्तित्व में आई अवैध कॉलोनियों को वैध करने की घोषणा के साथ ही लिया जाने वाला विकास शुल्क भी माफ कर दिया।


इससे नगरीय निकायों से लेकर पंचायतों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा, क्योंकि उन्हें अब 100 फीसदी मूलभूत सुविधाएं अपने खजाने से जुटाना पड़ेगी, जिसमें पहले मात्र 20 फीसदी ही राशि भूखंडधारकों से ली जा रही थी, वह भी अब माफ कर दी। बिल्डर-कालोनाइजरों का दो टूक कहना है कि वैध काम करने की बजाय अवैध काम करना ज्यादा फायदेमंद है। किसी तरह की अनुमति की झंझट नहीं और नियमों से अधिक निर्माण कर लो तो कम्पाउंडिंग का फायदा, वहीं दूसरी तरफ अवैध कॉलोनी काट दो तो सडक़, बिजली, पानी की सुविधा भी देने की जरूरत नहीं। वह भी शासन मुफ्त में उपलब्ध करवाएगा। अनियोजित विकास को जहां ऐसे निर्णयों से खुला निमंत्रण मिलता है, तो दूसरी तरफ अवैध कॉलोनाइजेशन को भी बढ़ावा मिलेगा। वैध कॉलोनी काटने वाले एक बार फिर मूर्ख साबित हुए हैं। अभी मास्टर प्लान के इंतजार में ही 79 गांवों में अनुमतियां ठप पड़ी हैं। दूसरी तरफ बिना अनुमति बनी अवैध कॉलोनियां धड़ाधड़ वैध की जा रही है।

45 से 50 फीसदी प्लोटिंग एरिया मिलता है वैध कॉलोनी में
अवैध कॉलोनाइजर को जहां कम से कम 9-9 मीटर चौड़ी सडक़ बनाने की अनिवार्यता नहीं रहती, तो 10 फीसदी गार्डन के साथ अन्य प्रावधान भी नहीं करना पड़ते। जबकि वैध कॉलोनी में सडक़ों की चौड़ाई से लेकर अन्य नियमों का सख्ती से पालन कराया जाता है, जिसके चलते 45 से 50 फीसदी तक ही प्लोटिंग एरिया मिलता है। जबकि अवैध कॉलोनी में यह प्लोटिंग एरिया 80 फीसदी तक पहुंच जाता है और मनमाने तरीके से भूखंड काटकर बेच दिए जाते हैं।

सैकड़ों आवासीय प्रोजेक्टों को है वैध अनुमतियों का इंतजार
एक तरफ अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया आसान की जा रही है, तो दूसरी तरफ सैंकड़ों वैध आवासीय प्रोजेक्टों को महीनों से अनुमतियों का ही इंतजार है। अग्निबाण ने ही पिछले दिनों 79 गांवों में पिछले डेढ़-दो साल से ठप पड़ी अनुमतियों का मामला उठाया था, जिसके लिए धारा 16 लागू की गई है। इतना ही नहीं, जो नक्शे मंजूर हो गए, मगर उनमें आश्रयनिधि का झमेला रह गया, उस बारे में भी शासन ने इंदौर के नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय को अभी तक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। बाबू से लेकर अफसरों के चक्कर काटने, तमाम एनओसी हासिल करने के बावजूद ये प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं, तो दूसरी तरफ अवैध निर्माणों को वोट बैंक के चक्कर में प्रश्रय मिल रहा है।

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