इंदौर न्यूज़ (Indore News)

1 जुलाई से शुरू हुई साइबर सेल नाकाम

  • इधर भी ध्यान दें कलेक्टर, ऑफलाइन की चाहत में ऑन है भ्रष्टाचार
  • नामांतरण के प्रकरण नहीं पहुंच रहे साइबर तहसील, ताकि पटवारी, आरआई और तहसीलदारों का रुतबा रहे कायम

इंदौर। घूसखोरी में पकड़ाए हातोद के पटवारी दीपक मिश्रा के प्रकरण ने तहसील कार्यालयों में नामांतरण से लेकर जमीन के सभी कामों पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया है। राजस्व विभाग की पहल पर यदि अमल किया होता तो भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकती थी।

नामांतरण के पेंडिंग मामलों के निराकरण को लेकर राजस्व विभाग ने 1 जून से साइबर तहसील शुरू की है, जहां तहसीलदारों को फेसलेस नामांतरण की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सांवेर तहसील में सबसे पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उन जमीनों के सीधे नामांतरण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिन खसरा नंबर की पूरी जमीन एक साथ बिकी हो। ऐसे प्रकरण संपदा से सीधे साइबर तहसील में आ जाएंगे। इसके लिए अलग से केस दर्ज करने की जरूरत नहीं होगी और ऑटो जनरेट होकर साइबर तहसील से नामांतरण किए जाकर निराकृत होंगे।


इसकी जानकारी भू-स्वामी को वॉट्सऐप पर मिल जाएगी, उसे दफ्तर आने की जरूरत नहीं होगी। सारी प्रक्रिया ऑनलाइन पूरी करना थी, लेकिन ऊपरी कमाई के चक्कर में तहसील कार्यालयों में अभी काम ऑफलाइन मोड में ही संचालित किया जा रहा है। राजस्व विभाग ने अपने निर्देश में साफ कहा था कि अन्य प्रकरणों का काम ऑफलाइन होगा, लेकिन नामांतरण का काम फेसलेस होगा। इसका फायदा यह होगा कि बल्क में बेची जाने वाली जमीन के नामांतरण के लिए भू-स्वामी को कलेक्टर और तहसील ऑफिस के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।

1 महीने में गिने-चुने प्रकरण
कलेक्टोरेट में आ रहे आवेदकों की संख्या को देखकर इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभी फेसलेस प्रक्रिया सिर्फ कागजों पर ही है। गिने-चुने प्रकरण ही इसके आधार पर निराकृत किए जा रहे हैं। कलेक्टोरेट में आए दिन किसानों और अपनी जमीनों के प्रकरण निपटाने आने वाले आवेदकों और अधिकारियों के बीच झड़प होती रहती है। अफसरों के अनुसार कुछ महीनों बाद इस व्यवस्था में और सुधार करेंगे और साइबर तहसील के काम को और अधिक जनोपयोगी बनाने के काम किए जाएंगे।

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